देहरादून, 15 जुलाई (हि.स.)। विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में पलायन बड़ी समस्या है। उत्तर प्रदेश के कार्यकाल से ही लगातार पलायन चलता रहा है और अब उत्तराखंड बनने के बाद भी यह पलायन रुका नहीं है। वर्तमान त्रिवेंद्र सरकार ने पलायन रोकने के लिए पलायन आयोग की संरचना की। अब पलायन आयोग भी मानने लगा है कि प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। 400 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम नागरिक हैं।
हाल ही में पलायन आयोग की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार अकेले अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार लोगों ने पलायन किया है। यही स्थिति प्रदेश की 646 पंचायतों की है, जिसमें 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट में 73 फीसदी परिवारों की मासिक आय पांच हजार रुपये से कम बताई गई है। आयोग ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव को पलायन की मुख्य वजह बताया है। गत 17 सितंबर 2017 में पलायन आयोग का गठन किया था और आयोग ने साल 2018 में सरकार को अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी थी।
इस संदर्भ में प्रमुख समाजवादी नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सहयोगी रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरवीर सिंह कुशवाहा मानते हैं कि पलायन का कारण सरकारी लापरवाही है। हर आदमी को रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए, इसके साथ ही साथ शिक्षा और स्वास्थ्य भी चाहिए। उन्होंने कहा कि 2018 तक खाली हो चुके थे 1734 गांव, जिनमें मुख्यमंत्री के जिले में सर्वाधिक है।
उन्होंने आयोग की रिपोर्ट की चर्चा करते हुए कहा कि 2011 में उत्तराखंड के 1034 गांव खाली थे। साल 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके हैं, राज्य में 405 गांव ऐसे थे, जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं। उनका मानना है कि पलायन आयोग भी मानने लगा है कि प्रदेश के 3.5 लाख से अधिक घर वीरान पड़े हैं, जहां रहने वाला कोई नहीं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के गृह जनपद पौड़ी में ही अकेले 300 से अधिक गांव खाली हैं। खाली पड़े गांवों को भूतिया गांव कहा जाने लगा है। इनका लाभ अराजक तत्वों को मिल रहा है जो देवभूमि उत्तराखंड के लिए उचित नहीं है।पलायन आयोग की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कुशवाहा ने कहा कि आयोग के अनुसार पलायन के मामले में इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिले शीर्ष पर रहे हैं। युवाओं का पलायन सबसे अधिक हो रहा है।