कुशीनगर, 24 सितम्बर (हि.स.)। यह वह दौर था जब साल 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध बीत चुका था। देश एक तरफ युद्ध के दुष्परिणामों को झेल रहा था। दूसरी तरफ लोग गरीबी व खाद्यान्न के संकट का सामना कर रहे थे। ठीक उसी समय एकात्म मानववाद व अंत्योदय के प्रणेता प.दीनदयाल उपाध्याय गरीब के भोजन की हकीकत जानने के लिये कुशीनगर के प्रवास पर आए थे।
पण्डित जी ने तबके जनसंघ के कार्यकर्ता और बाद में विधायक चुने गए श्रीनारायण उर्फ भुलई भाई से कहा कि “वह जहां भी जा रहे हैं लोग मिलकर पहले से इतनी व्यवस्था कर दे रहे हैं कि गरीब वास्तव में खाता क्या है, यह वह जान ही नहीं पाते हैं”। तब भुलई भाई ने पण्डित जी व अपने साथी स्व.सहदेव प्रसाद को साथ लिया और खजुरी गांव के एक कार्यकर्ता स्व.जगेसर प्रसाद गुप्त के घर दोपहर में बिना सूचना दिए पहुंच गए और तत्काल जो भी बना हो वही भोजन करने की इच्छा व्यक्त की। तब जगेसर प्रसाद ने आगुन्तकों को अचार मिर्च के साथ धनकोदई की भात व उड़द की दाल परोसी थी। जगेसर गुप्त का घर क्या एक फूस की झोपड़ी थी। जिसमें झुककर भुलई भाई के शब्दों में कहें तो ‘निहुरकर’ ही जाया जा सकता था। भोजन करते वक्त पण्डित जी यह हिदायत भी दिए कि थाली में अन्न का एक कण भी न छूटे।
106 साल के भुलई भाई यह संस्मरण सुनाते हुए कहते हैं कि आज भी वह पण्डित जी की दी हुई हिदायत का पालन करते हैं। भुलई भाई बताते है कि उन्होंने पण्डित जी के साथ तरुण भारत, राष्ट्रधर्म, पांचजन्य व आर्गेनाइजर के प्रकाशन में सम्पादन व छपाई का भी कार्य किया। तब छपाई की मशीन हाथ पैर का इस्तेमाल कर चलाई जाती थी। पण्डित जी अखबार छापते-छापते गीत भी गाते थे। ‘सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है’ यह उनका प्रिय गीत था।
एक दूसरे का नामकरण किये थे पण्डित जी व अटल जी
उस दौरान अटल जी कहीं से आते तो पण्डित जी को ‘तूफानीराम’ कहकर भोजन की मांग करते थे। पण्डित जी अटल जी को ‘थुलथुलदास’ कहकर भोजन करने को कहते थे। लखनऊ में दोनों लोगों के साथ भुलई भाई भी साईकिल से अखबार बेचते थे। भुलई भाई बताते हैं कि कुशीनगर के दौरे के दो साल बाद ही पण्डित जी का देहावसान हो गया था।
राजनीति में गिरते स्तर से चिंतित हैं भुलई भाई
वर्तमान राजनीति में गिरते स्तर से भुलई भाई खासे चिंतित है। उनका कहना है कि राजनीति में शुचिता व मर्यादा बेहद जरूरी है। सिर्फ विरोध कर देश का भला नहीं किया जा सकता। अच्छाइयों का आदर भी करना सीखना होगा। उनके दौर में भी विरोध होता था परंतु शालीन व मर्यादित तरीके से होता था। सत्ता पक्ष व विपक्ष एक दूसरे के जनहितकारी बातों का सम्मान करते थे और उसे लागू भी करते थे। राजनीति में अच्छे लोग आयेंगे तभी स्थिति सुधरेगी।
जनहित में छोड़ दी सरकारी नौकरी
साल 1977 में जनसंघ के टिकट पर विधायक चुने गए श्रीनारायण उर्फ भुलई भाई ने जनहित के स्कूल की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। एक नवम्बर 1914 को जिले के रामकोला विकास खण्ड के पगार गांव में पैदा हुए भुलई भाई ने आगरा विश्वविद्यालय से एमए व गोरखपुर विश्वविद्यालय से बीएड करने के बाद 1962 में डिप्टी सब इंस्पेक्टर पद पर बेसिक शिक्षा विभाग में नौकरी की शुरूआत की। 1966 से 1970 तक वे डिप्टी इंस्पेक्टर पद पर देवरिया में कार्यरत रहे। नौरंगिया से विधायक चुने जाने से पहले उन्होंने 3 मार्च 1974 को नौकरी से इस्तीफा दे दिया। वह पुनः वर्ष 1977 में भी वे विधायक चुने गए।
भुलई भाई बताते हैं कि 1952 में विजयादशमी के दिन जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी व पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ जनसंघ की स्थापना हुई तभी से वे संगठन से जुड़े थे। वह दो वर्ष तक जनसंघ में राष्ट्रीय प्रचारक रहे। बीते 22 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन कर भुलई भाई से बातचीत की और स्वास्थ्य का हाल जाना। भुलई भाई जब विधायक हुए तब नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारक थे।