आगामी 15 नवंबर को जगेंगे भगवान विष्णु, होगी तुलसी और शालिग्राम की शादी
बेगूसराय, 13 नवंबर (हि.स.)। पर्व-त्योहार के पावन माह कार्तिक में अगला सोमवार (15 नवंबर) सनातन धर्मावलंबियों के लिए बहुत ही पावन तिथि है। कहा जाता है कि चार माह पहले देवशयनी एकादशी के दिन क्षीरसागर में सोए भगवान विष्णु 15 नवंबर देवोत्थान एकादशी के दिन जग जाएंगे।
इसके साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा तथा सबसे पहले तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन कर मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी। दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले सनातन धर्मावलंबी देवोत्थान एकादशी, देव उठान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से मनाते हैं। लेकिन लक्ष्य एक ही है क्षीर सागर में सोए भगवान विष्णु के जगाने के अवसर को उत्सव के रूप में मनाना। यूं तो यह एकादशी तमाम जगहों पर मनाया जाता है, लेकिन राजा जनक के समय से देश-दुनिया में चर्चित मिथिला में इस दौरान कुछ अलग ही उत्साह रहता है।
हर घर में कोई ना कोई व्रत कर विधि विधान से पूजा-अर्चना करता है। वर्षों से एकादशी व्रत करते आ रहे लोग इस दिन विशेष पूजा करवा कर समारोह पूर्वक व्रत का समापन भी करते हैं। इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन का भी विशेष महत्व है, जिसके कारण तमाम गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र गढ़पुरा के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि साल में होने वाले 24 एकादशी में इस देवोत्थान एकादशी का विशिष्ट महत्व है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में विख्यात तिथि को भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन पर चले जाते हैं। शास्त्र पुराणों के अनुसार माना गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं। देवताओं का शयन काल मानकर इन चार महीनों में विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य नहीं होता है।
इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को क्षीर सागर में सोए भगवान विष्णु जागते हैं। इस अवसर पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह पूरे धूमधाम से मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है। भगवान विष्णु के जगने के बाद सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। विद्वतजन एवं वांग्मय के अनुसार इस चतुर्मास का प्रकृति सेे भी सीधा संबंध है। दीपावली और छठ के तुरंत बाद होने वाला यह एकादशी वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव से सामंजस्य बैठाने का भी संदेश देता है।
जगत के आत्मा कहे जाने वाले सूर्यदेव इस दिनों में बादलों में छिपे रहते हैं।, इसलिए वर्षा के इस चार महीनों में भगवान विष्णु सो जाते हैं। जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो जाग उठते हैं और सबको अपने भीतर जागने का संदेश देेेतेे हैं। इन महीनों मेंं एक जगह ठहरने की मान्यता है। भगवान को साक्षी मानकर धर्म और शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले साधु-संत इन दिनों में एक जगह तुलसी का पौधा लगाकर निवास करते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज और अध्यात्म की चर्चा होती थी, देवताओं के उठने के बाद वहां से विदा होते समय साधु-संत लगाए गए तुलसी के पौधा का विवाह कराते थे।