देवेन्द्र फडणवीस : लो…लौट आया समुंदर…

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मनीष कुलकर्णी

गढ़चिरौली के घने जंगलों से लेकर मुंबई के मलाबार हिल तक फैले महाराष्ट्र के सियासी फलक पर फिलहाल एक ही नाम गूंज रहा है- देवेन्द्र गंगाधरराव फडणवीस। तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले फडणवीस ने 2019 में विरोधियों को चेताया था, “मैं समुंदर हूं, मेरे किनारों पे घर मत बनाना।” उस वक्त उनकी खूब हंसी उड़ाई गई थी। लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में लौटे फडणवीस ने इसे सच कर दिखाया।

महाराष्ट्र की सियासत का अपना अलग रंग है। राज्य की स्थापना से लेकर अधिकांश समय तक यहां कांग्रेस और एनसीपी ही सत्ता में रही है। फुले, शाहूजी और आंबेडकर का नाम लेकर राजनीति करने वाले इस राज्य में शरद पवार और स्व. बालासाहब ठाकरे राजनीति के दो प्रमुख केन्द्र माने जाते रहे हैं। बालासाहब के बाद राज्य में उनके जैसी राजनीतिक हैसियत रखने वाला दूसरा नेता नहीं उभरा।

वहीं, जोड़-तोड़, शह-मात की सियासत करने वाले शरद पवार को चुनौती देने वाला कोई नहीं था। महाराष्ट्र कि राजनीति में अब तक वही होता रहा जो पवार चाहते थे। लेकिन पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के युवा स्वयंसेवक ने पवार को ललकारा, इतना ही नहीं पवार के सारे समीकरण ध्वस्त कर अपना परचम बुलंद किया। नतीजतन, कभी राज्य की सियासत को अपनी जेब में रखने वाले शरद पवार की पार्टी को महज 10 विधायकों से संतोष करना पड़ा।

राजनीतिक यात्रा में 2024 लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो देवेंद्र फडणवीस का करियर ग्राफ लगातार ऊपर ही बढ़ रहा है। सिर्फ 22 साल की उम्र में नागपुर में पार्षद बनने से जो सफर शुरू हुआ था अब वो महाराष्ट्र के तीसरी बार सीएम बनने तक पहुंच गया है।

अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाले फडणवीस महाराष्ट्र के दूसरे ऐसे सीएम हैं, जिन्होंने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया। उनसे पहले वसंतराव नाईक ने 1967-72 के बीच अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा किया था। इस रिकॉर्ड की बराबरी फडणवीस 2014-19 के बीच कर चुके हैं और अब तो कई नए रिकॉर्ड बनाने की बारी है।

फडणवीस की राजनीतिक यात्रा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शुरू हुई। वह 1990 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हुए। 1992 में नागपुर के रामनगर वार्ड से पहला नगर निगम चुनाव जीते और 22 वर्ष की उम्र में सबसे युवा पार्षद बने। उसके बाद 1997 में फडणवीस नागपुर के सबसे युवा मेयर बने और भारत के दूसरे सबसे युवा मेयर बने।

इसके बाद 1999 से 2024 तक लगातार 6 बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए हैं। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को 105 सीटें मिली थी लेकिन ऐन वक्त पर शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाया। नतीजतन फडणवीस को नेता प्रतिपक्ष बनना पड़ा। इस दौरान उन्होंने अपनी नई सियासी भूमिका बखूबी निभाई। कोरोना महामारी के समय राज्य में हो रही धांधलियों पर फडणवीस ने कड़ा प्रहार किया।

इसी दौरान फडणवीस के चलते राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख को जेल जाना पड़ा था। बदले पर उतारू महाविकास आघाडी (मविआ) के नेताओं ने फडणवीस पर बड़े, गहरे और निजी प्रहार किए। फडणवीस के व्यक्तित्व से लेकर उनके पारिवारिक सदस्यों तक की कड़ी आलोचना हुई। इसके बावजूद फडणवीस शांत रहे, अपना काम करते रहे।

समय-समय पर अपमान का घूंट पीकर फडणवीस ने 2022 में शिवसेना को पहला झटका दिया। जब एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना का बड़ा कुनबा भाजपा से जा मिला। बगावत से बौखलाए उद्धव ठाकरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद समय-समय पर फडणवीस की राह मे रोड़े अटकाने वाले शरद पवार का नंबर आया।

फिर महाराष्ट्र की राजनीति में वह हुआ जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी। शरद पवार के सगे भतीजे अजित और उनके 80 फीसदी सहयोगी फडणवीस से जा मिले। इस बगावत से केवल एनसीपी ही नहीं टूटी बल्कि पवार का परिवार भी बिखर गया। महाराष्ट्र की राजनीति में इसे सियासी सुनामी करार दिया गया था।

फडणवीस और मविआ नेताओं में शह और मात का यह खेल 2024 के लोकसभा चुनाव में बदल गया। मविआ को मिली जीत से भाजपा के खेमे में निराशा छाने लगी। भाजपा के समर्थक भी यह मानने लगे थे कि विधानसभा चुनाव बहुत मुश्किल होगा। वहीं, मविआ के नेता अपनी जीत के सपने देखने लगे थे। लेकिन फडणवीस ने दोबारा अपनी पार्टी को निराशा के अंधेरों से बाहर निकाला।

एक ओर लाडली-बहना योजना का आगाज किया, दूसरी ओर किसान, मजदूर, गांव, गरीब सबसे संपर्क बनाया, बढ़ाया और अपनी जीत सुनिश्चित की। जिसके दम पर अकेली भाजपा को 133 सीटे मिली, वहीं सहयोगियो को मिला कर 230 सीटों का मजबूत खेमा फडणवीस के पीछे खड़ा होकर हुंकार भर रहा है- “लो…लौट आया समुंदर….!”

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)


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