दिल्ली को पराली के प्रदूषण से निजात मिलने की उम्मीद
नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (हि.स.)। सर्दियों में दिल्ली एनसीआर को पराली प्रदूषण से निजात मिल सकती है।हरियाणा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में इस बार धान की पराली में कमी आई है। एनसीआर में हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में धान का कुल रकबा चालू वर्ष के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में 7.72 प्रतिशत कम हो गया है। इसी प्रकार, गैर-बासमती किस्म से कुल धान की पराली की मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 12.42 प्रतिशत कम होने की संभावना है।
पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक पराली की मात्रा में कमी लाने की दिशा में उठाए गए कदमों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। केन्द्र सरकार और हरियाणा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश राज्य सरकारें फसलों में विविधता लाने के साथ-साथ धान की पूसा-44 किस्म के उपयोग को कम करने के उपाय कर रही हैं। गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली को जलाना प्रमुख चिंता का विषय है। फसल विविधीकरण और पूसा-44 किस्म के स्थान पर कम अवधि तथा अधिक उपज देने वाली किस्में पराली जलाने के मामले में नियंत्रण के लिए बनाए गई योजना का हिस्सा हैं।
हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष धान की पराली की कुल मात्रा में कमी आएगी। इस वर्ष पंजाब में धान की पराली की कुल मात्रा 1.31 मिलियन टन (2020 में 20.05 मिलियन टन से घटकर 2021 में 18.74 मिलियन टन), हरियाणा में 0.8 मिलियन टन (2020 में 7.6 मिलियन टन से 2021 में 6.8 मिलियन टन) और उत्तर प्रदेश में 0.09 मिलियन टन (2020 में 0.75 मिलियन टन से 2021 में 0.67 मिलियन टन) तक घटने की संभावना है।
संबंधित राज्यों में पराली की कुल मात्रा 2020 में 28.4 मिलियन टन थी, जो अब 2021 में घटकर 26.21 मिलियन टन होने की उम्मीद है। गैर-बासमती किस्म में और भी कमी होने की उम्मीद है। विशेष रूप से गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली की मात्रा 2020 में पंजाब में 17.82 मिलियन टन से घटकर 2021 में 16.07 मिलियन टन और हरियाणा में 2020 में 3.5 मिलियन टन से घटकर 2021 में 2.9 मिलियन टन होने की उम्मीद है।
दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण को कम करने के लिए गठित वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग एक व्यापक ने पराली की समस्या का निवारण करने के लिए सभी संबंधित राज्यों को निर्देश जारी किए थे। इसके अलावा भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की सिफारिशों के अनुसार सीएक्यूएम ने इसे बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारों के साथ सकारात्मक प्रयास किया था। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों के साथ-साथ पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में भी पानी की अत्यधिक खपत करने वाली धान की फसल वाले क्षेत्र को वैकल्पिक फसलों की ओर मोड़कर फसल विविधीकरण कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं।