लॉकडाउन में दाने-दाने को मोहताज हैं घुमंतू जातियां

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नई दिल्ली, 10 मई (हि.स.) । कोरोना संक्रमण रोकने के लिए लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन में घूमंतू जातियों के लोग दाने-दाने को मोहताज हैं। कभी-कभार ही भरपेट भोजन मयस्सर हो रहा है। दिल्ली सरकार गरीब, दिहाड़ी मजदूर और अन्य जरूरतमंदों को दोनों वक्त का भोजन उपलब्ध कराने के लिए राज्यभर में 1780 से अधिक भोजन केंद्र चला रही है। सरकार का दावा है कि इन भोजन केंद्रों पर प्रतिदिन 20 लाख से अधिक लोग दोनों वक्त का भोजन कर रहे हैं। पर, घुमंतू जातियों को कोई पूछने वाला नहीं है। जबसे लॉकडाउन है तभी से इनके समक्ष दो जून की रोटी का संकट है। दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रहने वाले इस समाज के लोगों ने राज्य सरकार से मदद की गुहार लगायी है।
दिल्ली शहर में कई स्थानों पर घुमंतू जातियों के डेरे हैं। इनमें से एक डेरा तुगलकाबाद रेलवे सटेशन के निकट भी है, जिसे वाट कैम्प कहते हैं। यहां पर रहने वाली महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान में ही रहती हैं। स्थानीय लोग इन्हें धुर्रों के नाम से पुकारते हैं। इस समुदाय के लोग अक्सर बाजारों एवं अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के सामने घूमते-टहलते दिख जाते हैं। इन्हें इनके परिधानों के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है, जहां इनके छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियां अक्सर लोगों से मदद मांगते दिखाई देते हैं। वहीं इस समुदाय के पुरुष विभिन्न स्कूलों में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर और अन्य करतब दिखाकर दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं।
वाट कैम्प में रहने वाले 40 वर्षीय राजू का कहना है, “कोरोना से हम पर बड़ी दिक्कत आ गयी है। गरीब आदमी हैं, कभी-कभार ही भरपेट भोजन मिल पा रहा है। बच्चे भूखों मर रहे हैं। बीस दिन में एक बार राशन मिला है, पर गैस के पैसे नहीं हैं, चार बच्चे हैं, बीबी है, मां है लेकिन पैसे नहीं हैं। सरकार कुछ मदद कर दे तो अच्छा रहता।”
राजू की आठ साल की बेटी अंजलि से पूछा गया कि आपको आज खाना मिला है? तो कहने लगी, “पापा को काम ही नहीं मिल रहा है। गैस भी नहीं है, गैस आएगा तब तो खाना मिलेगा।”
एक और परिवार की 70 वर्षीय लक्ष्मी ने कहा, “हमारे पास राशन कार्ड नहीं है। जैसे-तैसे आधा पेट भोजन हो पा रहा है। 41 वर्षीय बेटी चांदनी अपने तीन बच्चों को लेकर राजस्थान से यहां आकर लॉकडाउन के कारण फंस गयी है। हो सके तो सरकार से राशन दिला दीजिए।”

 


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