डॉ. रंजन कुमार त्रिपाठी ने भारत वर्ष के गौरवान्वित इतिहास का व्याख्यान करते हुए अपने वक्तव्य का आरंभ किया । उन्होंने भ्रष्टाचार पर विस्तार में चर्चा की तथा भ्रष्टाचार निवारण हेतु सर्वप्रथम वैचारिक एवं मानसिक भ्रष्टाचार को त्याग कर सदाचरण करने का निवेदन किया । उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार, राजनीतिक विकास, लोकतंत्र, आर्थिक विकास, वातावरण, लोगों के स्वास्थ्य सहित अनेक क्षेत्रों को प्रभावित कर देश को दुर्बल बना रहा है इसलिए यह अत्यावश्यक है कि जनता को सतर्क, सुग्राही बनाकर भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के प्रयासों की दिशा में प्रेरित किया जाए । उन्होंने आर्थिक एवं राजनैतिक भ्रष्टाचार पर भी प्रकाश डाला । उन्होंने भारत के महापुरुषों के जीवन वृतांतों का उदाहरण देते हुए श्रोताओं से भारतवर्ष के संस्कारों और सदाचरण को अपने भीतर जीवंत कर भ्रष्टाचार से स्वयं को दूर रखने तथा उसके अंत हेतु कार्यशील बनने का आवाहन किया ।
डॉ. रामशरण गौड़, अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड ने लघु कथा के माध्यम से श्रोताओं को बताया कि किस प्रकार बीते कुछ वर्षों में भारत जैसे सदाचारी राष्ट्र में भी भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया है । उन्होंने सभी से कार्यस्थल पर तथा उसके बाहर भ्रष्टाचार न करने तथा अपने कार्यों का सद्भाव, सत्यनिष्ठा तथा पारदर्शिता के साथ निष्पादन करने का आग्रह किया । उन्होंने बताया कि सदाचरण का निर्वहन करते हुए ही मानव एक सुकून और संतुष्टीपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है । साथ ही उन्होंने सभी से परिश्रम को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने का संकल्प लेने का भी निवेदन किया ।
तत्पश्चात अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड द्वारा कार्यक्रम में उपस्थित सभी जनों को सतर्कता जागरूकता शपथ दिलवाई गई ।
श्री आर. के. मीणा, पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया ।