संगोष्‍ठी आयोजन:महर्षि दयानंद सरस्‍वती जयंती के उपलक्ष्य में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी मुख्यालय में “महर्षि दयानंद सरस्‍वती का भारत के उन्‍नयन में योगदान” 

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नई दिल्ली, 12 मार्च: महर्षि दयानंद सरस्‍वती जयंती के उपलक्ष्य में दिनांक 12 मार्च 2021 को दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी मुख्यालय में  “महर्षि दयानंद सरस्‍वती का भारत के उन्‍नयन में योगदान” विषय पर एक संगोष्‍ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्‍य अतिथि के रूप में माननीय लोकसभा सांसद एवं भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय से पूर्व राज्‍यमंत्री डॉ. सत्‍यपाल सिंह उपस्थित रहे । कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध समाज सेवी श्री विनय आर्य ने की । यह कार्यक्रम दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ के सान्निध्‍य में आयोजित किया गया ।  मुख्‍य वक्‍ताओं में दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड के उपाध्यक्ष एवं दिल्‍ली नगर निगम के पूर्व महापौर श्री महेश चंद शर्मा, दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड के सदस्य श्री सुभाष चंद्र कंखेरिया, सामाजिक कार्यकर्ता श्री प्रशांत शर्मा , आर्य कन्‍या गुरूकुल की मंत्री श्रीमती सुनीता बुग्‍गा उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संयोजन दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड के सदस्य एवं प्रसिद्ध समाज सेवी श्री परीक्षित डागर द्वारा किया गया । श्री शिवम् छाबड़ा, उद्योगपति एवं  निदेशक, एमएच -1 विशेष रूप से उपस्थित रहे I गणमान्य अतिथियों द्वारा वेद मंत्र के जाप सहित दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया ।

अपने स्‍वागत भाषण में डॉ. रामशरण गौड़, अध्‍यक्ष, दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड ने सभी अतिथियों का स्‍वागत किया और विशेष रूप से मुख्‍य अतिथि डॉ. सत्‍यपाल सिंह का कार्यक्रम में कीमती समय देने के लिए आभार व्‍यक्‍त किया । उन्‍होंने बताया कि महर्षि दयानंद सरस्‍वती ने भारत ही नहीं पूरे विश्‍व कल्‍याण के लिए सारा जीवन लगा दिया । सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के महर्षि जी ने तीन मुख्‍य कार्य किए – पहला उन्‍होंने पाखण्‍ड का विरोध किया । दूसरा नारी समाज का उत्‍थान और तीसरा सामाजिक समानता के लिए कार्य किया । उन्‍होंने मुख्‍य अतिथि डॉ. सत्‍यपाल सिंह जी को भारत का गौरव कहा और बताया कि सिंह  जी ने पुलिस कमिश्नर के रूप में भी बहुत ख्‍याति प्राप्‍त की थी । डॉ. गौड़ ने विशेष रूप से महाशय धर्मपाल जी को याद किया जो आजीवन महर्षि दयानंद सरस्‍वती जी के पद-चिन्‍हों पर चलते रहे ।

श्री परीक्षित डागर जी ने मुख्‍य अतिथि डॉ. सत्‍यपाल सिंह जी का बहुत आभार व्‍यक्‍त किया और उनके पुलिस विभाग से राजनीति के सफर से श्रोताओं को अवगत कराया । उन्‍होंने महर्षि दयानंद सरस्‍वती जी द्वारा समाज के उत्‍थान के लिए किए गए कार्यों को साझा किया  ।

डॉ. सत्‍यपाल सिंह जी ने कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए अध्‍यक्ष, दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड का विशेष आभार व्‍यक्‍त किया और महर्षि दयानंद सरस्‍वती को पिछले पॉंच हजार वर्षों में जितने महापुरूष हुए हैं उन सब में अग्रणी बताया । उन्‍होंने बताया कि वर्तमान में लोग स्‍वार्थ, सम्‍प्रदाय, अशुद्ध राजनैतिक कारणों से महर्षि को उतना सम्‍मान नहीं देते जितना देना चाहिए । उन्‍होंने बताया कि महर्षि दयानंद जी स्‍वराज्‍य का मंत्र देने वाले पहले व्‍यक्ति थे । उन्‍होंने सभी से महर्षि दयानंद की प्रसिद्ध पुस्‍तक ‘’सत्‍यार्थ प्रकाश’’ पढ़ने और जीवन में धारण करने का आह्वान किया । उन्‍होंने बताया कि किसी भी क्षेत्र का कोई भी प्रश्न नहीं जिसका उत्तर ‘’सत्‍यार्थ प्रकाश’’ में न हो । महर्षि जी ने नारी का उत्‍थान, स्‍वदेशी जागरण, समानता के अधिकार के लिए जीवन पर्यन्‍त कार्य किया । उन्‍होंने जोर देकर कहा कि हर समस्‍या का हल ‘सत्‍यार्थ प्रकाश’ में समाहित है ।

श्री महेश चंद शर्मा जी ने महर्षि को अद्भूत प्रतिभा का धनी बताया । उन्‍होंने बताया कि महर्षि जी ने ही सर्वप्रथम सुराज से स्‍वराज की बात की थी । इसके लिए उन्‍होंने 1855 में हरिद्वार में महाकुंभ  में हिंदी भाषा के लिए महर्षि द्वारा किए गए शास्‍त्रार्थ का उदाहरण देकर स्‍वामी जी के जीवन के अहम पहलुओं की चर्चा की । उन्‍होंने महर्षि जी के हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए व्‍यापक दृष्टिकोण को सबके सामने रखा ।

श्रीमती सुनीता बुग्‍गा जी ने बताया कि महर्षि दयानंद सरस्‍वती युगदृष्‍टा, समाज-सुधारक एवं महान दार्शनिक थे और उन्‍होंने स्‍वामी जी की जीवनी पर प्रकाश भी डाला । श्रीमती बुग्‍गा जी ने महर्षि को नारी सम्‍मान का अग्रणी बताया । महर्षि जी ने अज्ञानता को दूर किया और वेदों का प्रचार-प्रसार किया । उनके हिन्‍दी प्रेमी होने , विधवाओं का उत्‍थान, जातिसूचक शब्‍दों का विरोध, जीव-हत्‍या को पाप समझना आदि उनके कार्यों को सबके साथ साझा किया । उन्‍होंने बताया कि सोलह संस्‍कारों का जीवन में क्‍या महत्‍व है और यज्ञ और गुरूकुल की परंपरा आज के युग में कितनी सार्थक है । साथ ही उन्‍होंने नई शिक्षा नीति का स्‍वागत किया और आशा प्रकट की कि इससे स्‍वामी जी के विचारों का व्‍यापक प्रचार-प्रसार हो सकेगा । उन्‍होंने अपनी मॉं की लिखी कविता, ‘’तुम अमर हुए हो विष पीकर’’ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया ।

श्री प्रशांत शर्मा जी ने अपने वक्‍तव्‍य में स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती के स्‍वतंत्रता आंदोलन में योगदान, मूर्तिपूजा का विरोध, वेदों का ज्ञान, नमक आंदोलन की नींव रखने वाले इत्‍यादि अनेक कार्यों का उल्‍लेख किया । उन्‍होंने बताया कि स्‍वामी जी सत्‍य के लिए लड़ते रहे, उनके मन में अपने-पराये का कोई स्‍थान नहीं था । वे महान देशभक्‍त थे । उन्‍होंने कोरोना काल में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के प्रयासों को स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती के सिद्धांतों से प्रेरित बताया । उन्‍होंने बताया कि अब भारत के प्रति विदेशों का नजरिया बदला है ।

अपने अध्‍यक्षीय भाषण में श्री विनय आर्य जी ने सभी वक्‍ताओं को धन्‍यवाद दिया । उन्‍होंने स्‍वामी जी को देश का निर्माणकर्ता बताया और महारानी विक्‍टोरिया के 1857 के चार्टर एक्‍ट का उदाहरण दिया । भारत के अलग-थलग पड़े राज्‍यों को एकता के सूत्र में पिरोने का शुभारंभ महर्षि दयानंद सरस्‍वती ने ही किया था । उन्‍होंने बताया कि सर्वप्रथम ‘’स्‍वदेशी’’ शब्‍द का प्रयोग ‘’सत्‍यार्थ प्रकाश’’ में ही देखने को मिलता है । उन्‍होंने स्‍वामी जी को महान युगदृष्‍टा बताया और पंजाब नेशनल बैंक और एल.आई.सी को उनकी ही देन कहा । जाति प्रथा को हटाना उनकी दूसरी बड़ी देन थी । हिंदू मैरिज एक्‍ट में बदलाव आर्य समाज की ही देन है । उनकी प्रसिद्ध पुस्‍तक ‘’लोटो वेदों की ओर’’ में दुनिया की हर समस्‍या का साइंस के अनुसार जवाब मौजूद है । स्‍त्री शिक्षा के लिए देश का पहला महिला हॉस्‍टल जालंधर में आर्यकुल द्वारा स्‍थापित किया गया है । उन्‍होंने बताया कि गुरूकुल व्‍यवस्‍था हमारे जीवन का आधार थी । हरिद्वार में गुरूकुल कांगड़ी और रेवाड़ी में पहली गऊशाला आर्य समाज की ही देन है । उन्‍होंने बताया कि स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती को जीवन में 16 बार जहर दिया गया लेकिन वे सत्‍य से नहीं डिगे ।

श्री सुभाष चंद्र कंखेरिया जी ने धन्‍यवाद ज्ञापन प्रस्‍तुत किया और सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्‍यक्‍त किया । उन्‍होंने सभी से स्‍वामी जी की शिक्षाओं को अपनाने, यज्ञ और संध्‍या वंदन करने, गुरूकुल परपंरा अपनाने और ब्रह्मचार्य  का पालन करने के लिए प्रेरित किया ।

अंत में राष्ट्रगान के साथ इस प्रेरणात्मक एवम् ज्ञानवर्धक कार्यक्रम का समापन किया गया ।

 


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