दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा “इन्टरनेट के युग में पढ़ने की आदतों में सुधार” विषय पर वेबिनार द्वारा व्याख्यान का आयोजन

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नई दिल्ली, 10 मार्च: दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 10 मार्च 2021 को “इन्टरनेट के युग में पढ़ने की आदतों में सुधार” विषय पर वेबिनार द्वारा व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ के सानिध्य एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. पूरन चंद टंडन की अध्यक्षता में किया गया। वक्ताओं के रूप में इंडियन काउंसिल आफ सोशल वेलफेयर के सीनियर कंसलटेंट एंड एडवाइजर डॉ. सुदर्शन नायडू तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. संजीव कुमार शर्मा उपस्थित रहे। श्रीमती कीर्ति दीक्षित द्वारा सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।

डॉ. संजीव शर्मा ने वेबिनार के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के समय में इन्टरनेट का उपयोग काफ़ी बढ़ गया है और यह सभी के लिए बेहद मददगार भी है। इन्टरनेट आज के रफ़्तार भरे युग में हमें गति प्रदान करता है। पर्यावरण के प्रति अनुकूलता की संकल्पना इन्टरनेट के बिना सोचना भी संभव नहीं है। इन्टरनेट पर उपलब्ध पठन सामग्री को हम जैसे चाहे वैसे पढ़ सकते हैं। इसकी डाउनलोडिंग और रिकॉर्डिंग की सुविधा हमें पठन सामग्री को अपनी आवश्यकता के अनुसार पढ़ने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसके माध्यम से आज एक क्लिक पर वांछित जानकारी कुछ ही क्षणों में हमें मिल जाती है। हालांकि पुस्तक की तुलना में इन्टरनेट के माध्यम से पढ़ना इतना सुविधाजनक नहीं है। उन्होंने इन्टरनेट की सीमाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि हमें आवश्यकतानुसार इन्टरनेट का उपयोग करना चाहिए और उस पर पूर्णतः निर्भर नहीं होना चाहिए।

डॉ. सुदर्शन नायडू ने श्रोताओं को बताया कि हम भारतवासियों में पढ़ने के प्रति अमित रुचि रही है। मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही हम किसी न किसी रूप में उपलब्ध पठन सामग्रियों के माध्यम से पढ़ते आ रहे हैं। विश्व की पुरानी सभ्यताओं में से एक होने के कारण भारत उच्च शिक्षा के लिए एक केंद्र रहा है। भारत में नालंदा, तक्षशिला, पुष्पागिरी, ओदान्तापुरी जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालय रहे हैं। इस पुरातन ज्ञान और ज्ञान स्रोतों का संरक्षण, पठन व सहभाजन इंटरनेट के आगमन से संभव हुआ है। उन्होंने सभी संभावित तरीकों को अपनाकर इन स्रोतों को आसानी से उपलब्ध कराने के तरीकों पर विस्तार में चर्चा की। साथ ही, उन्होंने गहन अध्ययन के माध्यम से भारतीय शिक्षा पद्यति में इन्टरनेट के उपयोग पर भी प्रकाश डाला। अपने वक्तव्य में डॉ. सुदर्शन नायडू द्वारा इन्टरनेट के युग में पढ़ने की आदतों में सुधार हेतु निम्न बिन्दुओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा की गई:-

·         भारतवासियों में संस्कृति, आयु, राज्य/स्थान के आधार पर पढ़ने हेतु रुचि।

·         राष्ट्रीय स्तर पर सभी प्रकाशनों को ऑनलाइन करना।

·         पुस्तकों और अभिलेखों तक पहुँचने के लिए हर आम आदमी के लिए पहुँच और सामर्थ्य।

·         छात्रों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए विशेष डोमेन(Domain) ।

·         पुस्तकों, पत्थर के शिलालेख, तांबे और पीतल की नक्काशी, और ताड़ के पत्तों आदि को जन सामान्य द्वारा उपयोग हेतु उपलब्ध करवाने के लिए विशेष डोमेन (Domain) ।

·         सभी उपयोगकर्ताओं के लिए भाषा और  पाठ आधारित पठन हेतु ऐप।

·         निरक्षरों के लिए एक उपयुक्त ऐप विकसित करना तथा उसे उपयोगकर्ता के अनुकूल मोड पर उपलब्ध कराना।

·         केंद्रीकृत रीडर सर्विसिंग तंत्र जहां किसी भी पाठक को 24 घंटे में उनकी शिकायत का निवारण मिलेगा।

प्रो. पूरन चंद टंडन ने अपने अध्यक्षीय भाषण में बताया कि इन्टरनेट हमारी जीवन शैली का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। हमने जिस तरह से कोरोना महामारी के दौरान अपनी शिक्षा प्रणाली में इन्टरनेट का उपयोग किया है उसने शिक्षा को होने वाली हानि को काफी हद तक कम कर दिया है। डिस्टेंस एजुकेशन में इन्टरनेट ने एक साधन की तरह काम किया है। आज के समय में यह हमारी कार्य पद्यति की भी एक अनिवार्यता बन गया है। इस बाज़ार और तकनीक के युग में इन्टरनेट ने हमें जो गति प्रदान की है तथा हमारी सोच को जो पंख प्रदान किए हैं वह वस्तुतः अकल्पनीय थी। उन्होंने इन्टरनेट के लाभ और हानि दोनों पर विस्तार में चर्चा करते हुए कहा कि इन्टरनेट के कई लाभ होने के साथ-साथ कुछ सीमाएं भी हैं। पुस्तक से पढ़ने का सुकून इन्टरनेट में नहीं है। साथ ही, इन्टरनेट पर उपलब्ध सूचना में इतनी प्रमाणिकता भी नहीं है। आज दुनिया हमारे ज्ञान और परंपरा के सामने नतमस्तक है इसमें इन्टरनेट का भी अहम योगदान है परन्तु इसके उपयोग में हमें अपनी शिक्षा पद्यति को नहीं भूलना चाहिए। हमें इसे एक साध्य के रूप में उपयोग करने की बजाय साधक के रूप में उपयोग करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इन्टरनेट में वांछित और अवांछित दोनों ही प्रकार की जानकारियाँ उपलब्ध हैं। अतः यह अत्यधिक आवश्यक है कि छात्रों हेतु इन्टरनेट उपयोग की सीमा तय की जाए।

डॉ. रामशरण गौड़ ने वेबिनार में उपस्थित श्रोतागणों को बेहद ज्ञानवर्धक वक्तव्य प्रदान करने हेतु गणमान्य वक्ताओं का धन्यवाद अर्पण करते हुए अपना वक्तव्य प्रारंभ किया। उन्होंने इन्टरनेट द्वारा ज्ञान अर्जन में विषयगत एवं वर्तनीगत त्रुटियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह शोधार्थियों, विद्यार्थियों द्वारा उपयोग हेतु उचित नहीं है। जो ज्ञान पुस्तक से प्राप्त किया जा सकता है वह इन्टरनेट द्वारा नहीं किया जा सकता है।अतः संवाद, प्रमाणिकता,  ज्ञान और मूल स्रोत की दृष्टि से इन्टरनेट पर निर्भर नहीं किया जा सकता है।

व्याख्यान के पश्चात गणमान्य वक्ताओं द्वारा श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए।

अंत में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी श्री आर. के. मीना द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम का समापन किया गया।


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