दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती  के  उपलक्ष्य  में  “दीनदयाल उपाध्याय जी का राष्ट्र दर्शन” विषय पर संगोष्ठी (वेबिनार) का आयोजन

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 दिल्ली, 17 अक्टूबर  दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती के उपलक्ष्य में दिनांक 16 अक्टूबर 2020 को “दीनदयाल उपाध्याय जी का राष्ट्र दर्शन” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया । डॉ. रामशरण गौड़, अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया तथा मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. सत्यनारायण जटिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, भारत सरकार एवं वक्ताओं के रूप में श्री महेश चंद्र शर्मा, उपाध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड एवं श्री अनिमेश कुमार चौधरी, सदस्य, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड उपस्थित रहे I श्री सुभाष चंद्र कंखेरिया, सदस्य, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के सानिध्य में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया I डॉ. नीलम सिंह, सदस्या, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहीं I

श्री अनिमेश कुमार चौधरी ने श्रोताओं से दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों को साझा करते हुए बताया कि संस्कृति ही स्वराज का प्राण तत्व है I पं दीनदयाल जी का दृढ़ मत था कि स्वराज तभी सार्थक होगा जब अपनी संस्कृति का सम्मान किया जायेगा I एकात्म दर्शन की व्याख्या करते हुए पंडित जी ने कहा था कि बीज की एकता ही पेड़ के पत्ते, तने व फल में विकसित होती है I राष्ट्रनिर्माण के कुशल शिल्पियों में से एक पं दीनदयाल उपाध्याय ने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा प्रदान की । राष्ट्र के सजग प्रहरी व सच्चे राष्ट्र भक्त के रूप में भारतवासियों के प्रेरणास्त्रोत रहे दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन का उद्देश्य अपने राष्ट्र को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि समस्त क्षेत्रों में बुलंदियों तक पहुँचा हुआ देखने की थी ।

श्री महेश चंद्र शर्मा ने अपने वक्तव्य में बताया कि पं दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन शाश्वत विचारधारा से जुड़ा है I उनके चिंतन को मुख्यतः ‘अंत्योदय’ के रूप में याद किया जाता है । अपनी इसी शाश्वत विचारधारा से उन्होंने भारत के श्रेष्ठ शक्तिशाली और संतुलित रूप में विकसित राष्ट्र बनने की कल्पना की थी I इसी के आधार पर उन्होंने राष्ट्रभाव, सामाजिक समस्याएँ तथा उनके समाधान पर चर्चा की । एक उत्कृष्ट संगठनकर्ता के रूप में दीनदयाल जी ने वैकल्पिक राजनीति की नींव रखी जोकि अब देश के गरीब, वंचित व शोषित वर्ग को विकास की मुख्यधारा में लाने का काम कर रही है। आज सरकार भी दीनदयाल उपाध्याय जी के मार्ग पर चलते हुए जन कल्याण हेतु विभिन्न योजनायें ला रही है I

डॉ. सत्यनारायण जटिया ने अपने वक्तव्य में पं दीनदयाल उपाध्याय की रचनाओं के माध्यम से उनके बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके विचारों से श्रोताओं को रूबरू करवाया I उन्होंने बताया कि एक सुखी राष्ट्र की स्थापना हेतु पं दीनदयाल उपाध्याय ने लम्बे समय तक गहन विचार किया और ‘एकात्म मानववाद’ की दिशा दिखाई तथा भारतीय चिंतन की एकात्म दृष्टि को लोगों के सामने रखा I एकात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान कर ‘अंत्योदय’ अर्थात समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है । पं दीनदयाल उपाध्याय एक ऐसी राजनीतिक विचारधारा के सूत्रधार एवं समर्थक थे, जिसमें राष्ट्रभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी । उन्होंने संस्कारों का निर्माण करने वाली परम्पराओं का पालन करने  तथा दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करने का निवेदन किया ।

डॉ. रामशरण गौड़ ने अपने अध्यक्षीय भाषण में मानवतावाद को संस्कृति का आधार बताया I उन्होंन कहा कि हमने अपने महापुरुषों के विचारों को अमल में न लाकर कई प्रकार के प्रलोभनों से समाज को प्रदूषित कर दिया है I राष्ट्रीय दृष्टि से तो हमें अपनी संस्कृति पर विचार करना चाहिए  क्योंकि स्वराज्य का स्वसंस्कृति से घनिष्ठ संबंध है I स्वराज्य तभी साकार और सार्थक होगा, जब वह अपनी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बन सकेगा I अतः आज राष्ट्रीय और मानवीय दृष्टियों से आवश्यक हो गया है कि हम भारतीय संस्कृति के तत्वों का विचार करें I आत्म शक्ति और आध्यात्म शक्ति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने नैतिक जीवन मूल्यों का आतंरिक पक्ष श्रोताओं को समझाया तथा इन्हें अपने जीवन में सम्मिलित करने का आह्वान किया I

श्री सुभाष चंद्र कंखेरिया द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया ।


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