दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा “अनुपयोगी कानून” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन
नई दिल्ली, 18 जनवरी: दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा अशोक विहार उपशाखा पुस्तकालय कर्मचारियों तथा पाठकों हेतु दिनांक 18 जनवरी 2021 को “अनुपयोगी कानून” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ की अध्यक्षता में आयोजित किया गया तथा वक्ता के रूप में माननीय उच्चतम न्यायालय से सलाहकार (पुस्तकालय) डॉ. आर. के. श्रीवास्तव उपस्थित रहे। श्रीमती कीर्ति दीक्षित द्वारा सरस्वती वंदना से वेबिनार का शुभारम्भ किया गया।
डॉ. आर. के. श्रीवास्तव ने संगोष्ठी के विषय की रूप-रेखा रखते हुए कहा कि प्रत्येक कानून का लचीला व अद्यतन होना आवश्यक है। कई उदाहरणों के माध्यम से उन्होंने अप्रासंगिक कानूनों को हटाने की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए बताया कि बदलती परिस्थितियों में कई कानून अप्रभावी हो जाते हैं इसलिए उन्हें हटा देना जरुरी हो जाता है। उन्होंने बताया कि 26 जनवरी 1950 के बाद से भारत में कई कानून बने जिसकी वजह से संविधा पुस्तक (Statute Book) लम्बी होती गयी परन्तु इसमें से कौन से कानून प्रासंगिक हैं इस पर कार्यवाही नहीं की गयी। लॉ कमीशन द्वारा अपनी रिपोर्ट्स के माध्यम से तमाम अनुपयोगी कानूनों को चिन्हित किया गया परन्तु किसी कारणवश उस पर आगे कार्यवाही नहीं की गयी। अतः कानूनों का मूल्यांकन तथा उनकी समीक्षा किया जाना अत्यावश्यक हो गया। वर्तमान सरकार द्वारा इस बात को गंभीरता को समझते हुए दो सदस्यीय सांविधिक समिति (Statutory Committee) का गठन किया गया जिन्हें भारत की संविधि पुस्तक (Statute Book) में से पुराने, अप्रासंगिक कानूनों को हटाने अथवा परिवर्तित किये जाने हेतु चिन्हित करने का कार्य सौपा गया। इस समिति द्वारा 2784 कानूनों की समीक्षा कर 1741 ऐसे कानून को चिन्हित किया गया जोकि निष्प्रभावी थे। अतः इन्हें वर्ष 2016 के Repealing and Amending Act में खत्म किया गया। तत्पश्चात 2018 के Repealing and Amending Act में 105 भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियमों को खत्म किया गया। भारत सरकार के आदेशानुसार यह समिति सतत रूप से कार्य करती रही और अथक प्रयासों के बाद संविधा पुस्तक (Statute Book) में 2784 कानूनों में से 2044 कानूनों को हटाया/ संशोधित किया गया। उन्होंने श्रोताओं को अधिनियमों के पारित होने, संशोधित करने तथा इनके अप्रासंगिक बनने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को विस्तार में समझाया। डॉ. आर. के. श्रीवास्तव ने कहा कि इस विषय के महत्व को समझते हुए सरकार द्वारा जो आवश्यक कदम उठाया गया उसी के फलस्वरूप हम अनुपयोगी, निष्प्रयोज्य कानूनों को हटाने में सक्षम हुए। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रणाली के सुचारू कामकाज हेतु उसका प्रभावी कानूनों द्वारा संचालित होना जरूरी होता है। कानूनों का नियमित मूल्यांकन, संशोधन करने हेतु भी यह आवशयक है कि अनुपयोगी कानूनों को सर्वप्रथम संविधा पुस्तक (Statute Book) से हटाया जाये। अंत में इस आशा के साथ कि इसी तरह भारत सरकार द्वारा नियमित रूप से कानूनों का मूल्यांकन, अध्ययन तथा संशोधन किया जाता रहेगा उन्होंने अपने वक्तव्य का समापन किया।
डॉ. रामशरण गौड़ ने अपने अध्यक्षीय भाषण का प्रारंभ करते हुए बहुमूल्य वक्तव्य द्वारा श्रोताओं का ज्ञानवर्धन करने हेतु डॉ. आर. के. श्रीवास्तव का धन्यवाद किया। उन्होंने बताया कि देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानून बनाये जाते हैं। अतः यह जरूरी है कि प्रत्येक मनुष्य को इसकी पूरी व सही जानकारी हो ताकि वह बिना किसी कठिनाई के अपने कानूनी अधिकारों व कर्तव्यों का निष्पादन कर सकें। शिक्षा व जागरूकता के अभाव में बहुत सारे नागरिक अपने कानूनी अधिकारों व कर्तव्यों की जानकारी नहीं रख पाते जिसकी वजह से वह परेशानी, धोखेबाजी व भ्रष्टाचार का शिकार बन जाते हैं। साथ ही, निष्प्रयोज्य कानूनों को नियमित रूप से चिन्हित कर हटाना भी आवश्यक है ताकि नागरिकों में उन्हें लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न ना हो।
अंत में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी श्री आर. के. मीना द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।