दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा “हिंदी भाषा में भारतीय वाङ्मय का लेखन ” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन

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नई दिल्ली, 09 जनवरी  दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 9 जनवरी 2021 को “हिंदी भाषा में भारतीय वाङ्मय का लेखन (भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, गणित शास्त्र एवं समाज शास्त्र)” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ के सानिध्य तथा सांस्कृतिक गौरव संस्थान के संस्थापक एवं सदस्य डॉ. महेश चन्द्र गुप्त की अध्यक्षता में आयोजित किया गया I कार्यक्रम में वक्ता के रूप में कवि एवं साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार दीक्षित एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज से सहायक प्राध्यापक डॉ. सुनील कुमार शर्मा उपस्थित रहे। श्रीमती कीर्ति दीक्षित द्वारा सरस्वती वंदना से वेबिनार का शुभारम्भ किया गया।

 

श्री कृष्ण कुमार दीक्षित ने श्रोताओं को बताया कि केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा उन्हें हिंदी शब्दकोश की रचना का सौभाग्य प्रदान किया गया जोकि लोगों द्वारा काफी सराहा गया इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि लोगों की हिंदी पढ़ने में रूचि नहीं है I आवश्यकता है तो ऐसे विद्वानों के सामने आने की जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों विषयों का ज्ञान रखते हों और हिंदी में उत्तम कृतियाँ प्रस्तुत करने में सक्षम हों। उन्होंने बताया कि अगर सरकार इंटरमीडिएट तक हिंदी में गणित पढ़ना अनिवार्य होने का प्रावधान कर दे तो लोग हिंदी में गणित पढ़ने में भी रूचि लेने लगेंगे। विश्व के सबसे अधिक गणित विद्वान भारत में ही हैं। उन्होंने हिंदी में लिखित गणित की कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के नाम श्रोताओं से साझा किये जैसे हिंदी विश्व कोष गणित, रोचक गणित, गणित शिक्षण, गणित के मूल आधार, हिन्दू गणित शास्त्र का आधार, गणित का इतिहास, गणित की गतिविधियाँ, गणित भारती, गणित कौमुदी, गणित परिभाषा कोष आदि जो वास्तव में अति उत्तम एवं पठनीय हैं I कानून के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि इसे बनाना सरल है परन्तु इसे लिखना व पुस्तक का रूप देना कठिन है। उन्होंने ऐसे लेखकों का भी उदाहरण दिया जिन्होंने जटिल विषयों पर हिंदी में पुस्तक लिखने में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने श्रोताओं से हिंदी भाषा में उपलब्ध पुस्तकों को पढ़ने तथा हिंदी वाङ्मय को बढ़ावा देने का आग्रह किया।

 

डॉ. सुनील कुमार शर्मा द्वारा हिंदी भाषा में लिखित पुस्तकों को उचित मूल्य में पाठकों हेतु उपलब्ध करवाने की आवश्यकता पर अपने विचार रखे गए । उन्होंने कहा कि हिंदी में लिखित अच्छी पुस्तकों का अधिक मूल्य पर उपलब्धता, विषय की कलिष्टता भी उन्हें पाठकों से दूर करती है इसलिए लेखकों और अनुवादकों को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि उनके द्वारा लिखित पुस्तक का भाषा स्वरुप सरलतम हो। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि रसायन शास्त्र, कानून जैसे कई विषय हैं जिनमें मौलिक रूप से हिंदी में लिखित पुस्तकों का अति-अभाव हैI हिंदी की महत्वता को समझते हुए उन्होंने बताया कि यदि ‘कौटिल्य शास्त्र’, ‘चरक संहिता’, ‘अमर्त्य सेन के सुन्दर लेख’, ‘हिन्द स्वराज’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें हिंदी में न लिखी जाती तो क्या इन महत्वपूर्ण विषयों का उत्कृष्ट ज्ञान सभी को कैसे मिल पता। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में लिखने व पढ़ने को निष्कृष्ठता के भाव से नहीं देखा जाना चाहिए। हमें अपनी मातृभाषा को सम्मान देना चाहिए तथा तवज्जो देनी चाहिए। विश्वविद्यालयों की स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा कि उच्च माध्यमिक शिक्षा में छात्रों पर अंग्रेजी को थोपा जाता है। पठनीय समाग्री के अभाव एवं अनुपलब्धता में उन्हें अंग्रेजी माध्यम को अपनाना पड़ता है इसलिए सभी विषयों के विद्वानों को हिंदी भाषा में लिखना प्रारम्भ करने की आवश्यकता है।

 

डॉ. महेश चन्द्र गुप्त ने हिंदी में पढ़ाने, हिंदी में पुस्तकें प्रकाशित करने पर ज़ोर देने की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए बताया कि अपनी पूरी शिक्षा उन्होंने हिंदी माध्यम में ही की है तथा आजीवन हिंदी को पढ़ने लिखने को महत्व दिया। आज के समय में हिन्द वासियों को हिंदी से ही दूर किया जा रहा है। अंग्रेजी इस तरह हमारे ऊपर हावी हो गयी है कि हम हिंदी में लिखा एक सरल फार्म भी नहीं भर पाते वही कठिन से कठिन अंग्रेजी को समझने हेतु पूर्णतः तत्पर रहते हैं । उन्होंने अंग्रेजी के कई शब्दों का उदाहरण देते हुए अंग्रेजी भाषा की कलिष्ठता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदी हमारी मातृ भाषा है, यह जन्म से हमारे भीतर विद्यमान है अतः अंग्रेजी माध्यम में पूरी पढ़ाई करने के बाद भी हम हिंदी माध्यम में अच्छा कार्य कर सकते हैं, आवश्यकता है तो केवल हृदय में हिंदी प्रेम की। साथ ही उन्होंने अपने मस्तिष्क से अंग्रेजी के सरल एवं हिंदी के जटिल होने की धारणा को ख़त्म करने का निवेदन किया। उन्होंने कहा कि हिंदी हमारे जीवन का आधार है इसके विकास हेतु क्रियाशील होना हमारा कर्तव्य है।

 

डॉ. रामशरण गौड़ ने सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए हिंदी की सार्थकता पर विस्तार में चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह अजीब विडंबना है कि जो अंग्रेजी पराधीनता काल में हम पर थोपी गई थी स्वतंत्रता के इतने वषों के बाद भी वह सब भर पूर्णत हावी हैं। उन्होंने हिंदी के विकास हेतु हिंदी वाङ्मय में लिखी गयी पुस्तकों का प्रचार-प्रसार करने, विभिन्न माध्यमों से लोगों को हिंदी पढ़ने हेतु प्रेरित करने का विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सभी हिंदी प्रेमियों को मिलकर हिंदी के विकास हेतु कार्य करने की अत्यंत आवश्यकता है।

 

अंत में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी श्री आर. के. मीना द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।

 


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