दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा “हिंदी भाषा में भारतीय वाङ्मय का लेखन” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन

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नई दिल्ली, 06 जनवरी:  दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 6 जनवरी 2021 को “हिंदी भाषा में भारतीय वाङ्मय (विज्ञान, राजनीतिशास्त्र, इतिहास आदि) का लेखन” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ के सानिध्य तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय की निदेशक डॉ. कुमुद शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया I कार्यक्रम में वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज से सहायक प्राध्यापक डॉ. अमित कान्त अवस्थी एवं सत्यवती कॉलेज (सांध्य) से सहायक प्राध्यापक डॉ. जगबीर सिंह उपस्थित रहे। श्रीमती कीर्ति दीक्षित द्वारा सरस्वती वंदना से वेबिनार का शुभारम्भ किया गया।

डॉ. जगबीर सिंह द्वारा संख्या बल के आधार पर हिंदी भाषा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए अपने वक्तव्य का प्रारंभ किया I  उन्होंने बताया कि वर्तमान में हिंदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय भाषा में से एक है। आज के समय में हिंदी वाङ्मय पर कई पुस्तकें उपलब्ध हैं जिनमे से कुछ पर ही मौलिक कार्य हुआ है जबकि अधिकांश पर अनुवाद कार्य ही किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में अंग्रेजी शासन के कारण हिंदी वाङ्मय का विकास नहीं हो पाया I अभी भी विज्ञान में काफी ऐसे क्षेत्र है जहाँ हिंदी में मौलिक पुस्तकों का अभाव है। इतिहास में भी अधिकतर अनुवादित पुस्तकें ही उपलब्ध हैं I अब एक नयी विचारधारा के अनुरूप इतिहास को एक नये रूप में देखने के प्रयास किये जा रहे हैं जिसमे इतिहास विषय पर पुस्तकों को हिंदी भाषा में लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदी के पीछे छूटने की एक वजह यह भी है कि हिंदी में लिखी गई पुस्तकों को निन्म कोटि का समझा जाता है। उन्होंने रासो साहित्य पर भी विस्तार में चर्चा की। आधुनिक काल में भी हिंदी माध्यम में पुस्तकों को लिखा जा रहा है परन्तु अंग्रेजी पुस्तकों की तुलना में इनकी संख्या काफी कम है। उन्होंने कहा कि हिंदी को पढ़ने, समझने के इच्छुक लोगों के लिए तथा हिंदी वाङ्मय की समृद्धि हेतु हिंदी में पुस्तकें का लिखा जाना अति आवश्यक है।

 

डॉ. अमित कान्त अवस्थी ने हिंदी वाङ्मय पर संगोष्ठी के आयोजन हेतु अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड को धन्यवाद अर्पित करते हुए बताया कि भाषा का विकास एक सतत प्रक्रिया है परन्तु कुछ कारणवश हिंदी वाङ्मय में पुस्तकों के अभाव को समझना और हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु क्रियाशील होना अति आवश्यक हो गया है। हिंदी का इतिहास लगभग 1000 वर्षों से समृद्ध है तथा इसकी बोलियाँ इसे और भी समृद्ध बनाती हैं I  उन्होंने श्रोताओं को बताया कि पंडित शिव गोपाल जी द्वारा विज्ञान परिषद् की 100वीं  सालगिरह में अति उत्तम तरीके से हिंदी वाङ्मय में पुस्तकों को बढ़ाने के उपायों पर चर्चा की गयी थी। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत पर अंग्रेजी को थोपा गया था और बहुत दुःख की बात है कि हम आज भी उसी द्वंद में जी रहे हैं। अपनी मौलिक भाषा में किया गया अध्ययन पढ़ने, समझने में सरल होता ही है साथ ही साथ यह मौलिक भाषा के गौरव को भी बनाये रखता है । उन्होंने यह कहा कि अंग्रेजी पढ़ने व लिखने की होड़ में लगने की बजाय अन्य देशों की भांति भारत में भी इतिहास, विज्ञान, गणित, राजनीतिशास्त्र आदि विषयों पर हिंदी भाषा में मौलिक कार्य किये जाने चाहिए ।

 

डॉ. कुमुद शर्मा ने दोनों वक्ताओं से सहमति रखते हुए कहा कि अनुदित पुस्तकों की अपनी कई समस्याएं हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि अनुदित पुस्तकें मौलिक पुस्तकों की तुलना में पढ़ने व समझने में कठिनता उत्पन्न करती हैं। उन्होंने कहा कि हमें सच्चे अर्थ में हिंदी की सेवा करने हेतु हमें अपनी मातृभाषा हिंदी में मौलिक कार्य प्रारंभ करने की प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अब समय बदल रहा है, नयी शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा के उचित प्रावधान उपलब्ध हैं अतः हिंदी में मौलिक कार्य भी क्रियाशील हैं। उन्होंने ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पर चर्चा करते हुए बताया कि हिंदी भाषियों के हृदय में हिंदी चेतना को जगाये रखने हेतु पराधीनता काल में भी कई महत्वपूर्ण कार्य किये गए। उन्होंने कहा कि देश में हिंदी के विकास और प्रचार के लिए सबसे ज्यादा अनुकूल परिस्थितियाँ हैं इसलिए इस क्षेत्र में चिंतन मनन से आगे बढ़कर मौलिक कार्य करने की आवश्यकता है जिससे कि मातृभाषा का ज्ञान सभी को उपलब्ध हो सके।

 

डॉ. रामशरण गौड़ ने मातृभाषा की सार्थकता पर चर्चा करते हुए बताया कि मातृभाषा अभिव्यक्ति का सबसे अधिक सरल माध्यम है इसके प्रयोग हेतु हमें शब्दकोश का प्रयोग नहीं करना पड़ता है I उन्होंने बताया कि केन्द्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा हिंदी की कई शब्दावली बनाई गयी है परन्तु उनका प्रयोग नही हो पा रहा है क्योंकि लोग अपनी मानसिकता को बदलना नहीं चाहते तथा अंग्रेजी भाषा को ही अधिक महत्व देते हैं और अपनी मातृभाषा का तिरस्कार करते हैं I ज्ञान और विज्ञान प्राचीन काल से उपलब्ध है जिसे हिंदी में उपलब्ध करवाना आवश्यक है I उन्होंने वेबिनार के माध्यम से युवा पीढ़ी को अध्ययन हेतु, प्रतियोगी परीक्षाओं, पुस्तक लेखन आदि में अधिकाधिक हिंदी का प्रयोग करने, भारतीय साहित्य व संस्कृति की दृष्टि से हिंदी भाषा में लेख लिखने तथा सभी को इसके लिए प्रेरित करने का आग्रह किया I उन्होंने दूसरे देशों में हो रहे अनुसंधानों का हिंदी में अनुवाद होने, इसके लिए अनुसंधान अधिकारी की नियुक्ति तथा कार्य की समझ हेतु समय-समय पर प्रशिक्षण पर भी विशेष जोर दिया I

 

अंत में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी श्री आर. के. मीना द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।

 


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