दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा महामना मदन मोहन मालवीय जयंती के उपलक्ष्य में “मालवीय जी का राष्ट्रीय चिंतन” विषय पर संगोष्ठी (वेबिनार) का आयोजन
नई दिल्ली, 24 दिसम्बर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 24 दिसंबर 2020 को महामना मदन मोहन मालवीय जयंती के उपलक्ष्य में “मालवीय जी का राष्ट्रीय चिंतन” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष, डॉ. रामशरण गौड़ द्वारा की गई तथा वक्ता के रूप में लेखक एवं कवि प्रो. लल्लन प्रसाद एवं कवि व साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार दीक्षित उपस्थित रहे I सुश्री नीरू द्वारा सरस्वती वंदना से वेबिनार का शुभारम्भ किया गया ।
प्रो. लल्लन प्रसाद ने भारत की सर्वाधिक महान विभूतियों में से एक, मदन मोहन मालवीय जी के असाधारण व्यक्तित्व से श्रोताओं का परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि मालवीय जी आजीवन स्वदेश के खोए गौरव को स्थापित करने हेतु प्रयासरत रहे । उनमें निडरता, उदारता और सर्जनात्मक जिद्द कूट-कूटकर भरी थी। मालवीय जी छात्रावस्था से ही समाज सेवा हेतु कार्यशील रहे तथा छात्र जीवन में ही उन्होंने ‘साहित्य सभा एवं ‘हिन्दू समाज’ नामक संस्थाओं की स्थापना की । वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । मूलतः मालवीय जी एक शिक्षाविद् एवं अध्यापक थे अतः राष्ट्र की नींव को मजबूत करने तथा शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने हेतु प्रयत्नशील रहे । इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान देते हुए उन्होंने 4 फरवरी 1916 को विद्या की नगरी बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। गांधीजी के विचारों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी जी द्वारा महामना को गंगा के समान निर्मल बताया गया था।
श्री कृष्ण कुमार दीक्षित ने श्रोताओं को बताया कि पंडित मदन मोहन मालवीय महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् ही नहीं बल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे जिन्होंने देश से जाति प्रथा की बेड़ियां तोड़ने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने मालवीय जी के जीवन से जुड़े अनेक वृतांत साझा करते हुए बताया कि मालवीय जी ने मंदिरों में दलितों के प्रवेश निषेध की बुराई के खिलाफ देशभर में आंदोलन चलाया। उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी बढ़−चढ़कर भाग लिया। उनका समस्त जीवन भारतवर्ष, सनातन धर्म और हिन्दू संस्कृति की सेवा में बीता। ईश्वर और देश भक्ति उनके जीवन के आधार थे। वे एक प्रखर राष्ट्रवादी और उच्च कोटि के देशभक्त थे। वे तत्कालीन भारतीय समाज की दशा से दुखी थे तथा आत्मनिर्भर समाज की स्थापना, देश की स्वतंत्रता, राष्ट्र गौरव की वृद्धि तथा उन्नति हेतु आजीवन कार्यरत रहे ।
डॉ. रामशरण गौड़ ने बताया कि इस वेबिनार का उद्देश्य श्रोताओं को मालवीय जी के जीवन दर्शन एवं राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान से अवगत करवाना है । उन्होंने श्रोताओं को महामना मालवीय जी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं एवं राष्ट्र के उत्थान हेतु उनके योगदान से श्रोताओं को रूबरू करवाया। उन्होंने बताया कि महामना आजीवन हिन्दी का प्रचार-प्रसार करते रहे। वे हिन्दी को शिक्षा का सशक्त माध्यम बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने हिन्दी में उच्चस्तरीय पाठ्य पुस्तकों की रचना करने और अन्य भाषाओं की अच्छी पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद करने पर जोर दिया तथा हिन्दी के विकास के लिए कार्यशील रहे । वे शिक्षा को मानव जीवन के सम्पूर्ण विकास का माध्यम मानते थे तथा पुरूषों से अधिक स्त्री शिक्षा को महत्व देते थे । उनका मानना था कि राष्ट्र की उन्नति हेतु समाज में लोक कल्याण एवं लोक सेवा की भावना उत्पन्न करना अधिक आवश्यक है । उन्होंने कई श्लोकों के माध्यम से मालवीय जी का व्यक्तित्व चित्रण प्रस्तुत किया । डॉ. रामशरण गौड़ जी ने श्रोताओं से मालवीय जी के विचारों को अपनाते हुए विचारशील एवं मूल्यवान व्यक्तित्व का निर्माण करने का आव्हान किया ।
श्री आर. के. मीना, पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन दिया गया तथा भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को श्रद्धांजलि अर्पित कर राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।
कार्यक्रम के उपरान्त मुख्यालय सभागार में डॉ. रामशरण गौड़, अध्यक्ष, दि. ला. बो. की ओर से श्री आर. के. मीना, पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी एवं दि.प.ला अधिकारियों तथा स्टाफ द्वारा महामना मदन मोहन मालवीय जी एवं भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण किया गया I