दिल्ली पत्रकार संघ ने पत्रकारों के लिए सुविधायुक्त भवन और पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग की
नई दिल्ली, 16 सितंबर: दिल्ली पत्रकार संघ ने केंद्र और दिल्ली सरकार से दिल्ली में पत्रकारों के लिए सुविधायुक्त भवन और पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के साथ ही कोरोना काल में वापस की गई पत्रकारों को मिलने वाली रेल सफ़र में छूट को दोबारा लागू करने की मांग की है। दिल्ली पत्रकार संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी की हरियाणा भवन सभागार में बुधवार को हुई पहली बैठक में इन मांगों को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया। इस मौके पर अध्यक्ष उमेश चतुर्वेदी और महासचिव अमलेश राजू की टीम ने कार्यभार संभाला। इस मौके पर पूर्व अध्यक्ष मनोहर सिंह ने नए अध्यक्ष और कार्यकरिणी का स्वागत किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में
राजभाषा हिन्दी पखवाड़ा के अवसर पर गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति और दिल्ली पत्रकार संघ के संयुक्त तत्वावधान में प्रौद्योगिकी-क्रांति के नए दौर में हिंदी पत्रकारिता: चुनौतियाँ व अवसर विषय पर संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र, हिन्द मजदूर सभा के महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू, पत्रकार उमेश्वर कुमार, एनयूजे महासचिव सुरेश शर्मा, एनयूजे स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन के अध्यक्ष अशोक मलिक, गांधी स्मृति दर्शन समिति के कार्यक्रम अधिकारी डॉ वेदाभ्यास कुंडू, वरिष्ठ पत्रकार विचित्रा शर्मा और अमरनाथ झा सहित अन्य गणमान्य लोगों ने विचार रखे। इस मौके पर हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि तकनीकी विकास ने पत्रकारिता को सुगम बना दिया है, लेकिन नए दौर में पत्रकारिता को दोबारा से स्थापित करने की चुनौती भी है । मुख्य धारा के मीडिया संस्थानों में खत्म होती जमीनी पत्रकारिता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि जन सरोकारों को तरजीह देने की जरूरत है। डॉ वेदाभ्यास कुंडू ने कहा कि पत्रकारिता को जन परख बनाने के लिए उसे भाषाई स्तर पर सरल व सुग्राही बनाने की जरूरत है। खबरों के पीछे की खबर वाली प्रत्रकारिता की जरूरत है। अशोक मलिक ने कहा कि प्रोद्योगिकी ने संचार की गति को तेज कर दिया है। साथ ही पत्रकारिता में लंबे समय से चली आ रही भाषाई सीमा को इसने खत्म कर दिया है। नए दौर में हिंदी पत्रकारिता पर वक्ताओं का कहना है कि अब हिंदी के बिना किसी का काम नहीं चलता। व्यवसाय में लगे अंग्रेजीदां लोगों ने भी अब यह मान लिया है कि हिंदी के बगैर ‘लक्ष्य’ पाना मुश्किल है। सोशल प्लेटफार्म मुहैया कराने वाली तमाम कंपनियों का हिंदी को अपनाना इसका प्रमाण है ।