रक्षा मंत्रालय 12 विदेशी हथियार कंपनियों के खिलाफ हुआ सख्त

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एक अमेरिकी कंपनी प्रतिबंध लगाने के लिए दिए गए कारण बताओ नोटिस का कर रही विरोध

 कई अमेरिकी, फ्रांसीसी, रूसी और इजरायली फर्मों को निगरानी सूची में डालने की तैयारी



नई दिल्ली, 30 अगस्त (हि.स.)। रक्षा अनुबंधों के तहत अपने ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में बार-बार विफलताओं के कारण दंड लगाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने एक अमेरिकी कंपनी पर प्रतिबंध लगाने और अन्य 11 अमेरिकी, फ्रांसीसी, रूसी एवं इजरायली फर्मों को निगरानी सूची में डालने की चेतावनी दी है। रक्षा मंत्रालय ने विदेशी हथियार कंपनियों को दी चेतावनी में कहा है कि अब पहले की तरह व्यापार नहीं होगा। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने पिछले साल संसद में रखी गई एक रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय की ऑफसेट नीति की आलोचना की थी।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय ने एक अमेरिकी कंपनी पर प्रतिबंध लगाने की बात कही है। इसके अलावा 11 अन्य अमेरिकी, रूसी, इजरायल और फ्रांसीसी फर्मों को जुर्माना लगाने के लिए निगरानी सूची में रखा है। यह वह विदेशी कम्पनियां हैं जो भारत के साथ हथियारों के सौदे करने के बाद रक्षा सौदों में ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में विफल रही हैं। रक्षा मंत्रालय ने इन कंपनियों को चेतावनी देने के साथ ही ‘कड़ा संदेश’ भी दिया है कि अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए बार-बार समय बढ़ाने की मांग करते हुए अब पहले की तरह व्यवसाय नहीं होगा। यह पहली बार है जब रक्षा मंत्रालय ने इस तरह की चेतावनी जारी की है कि यदि कंपनियां अपने ऑफसेट दायित्वों को समय पर पूरा नहीं करती हैं, तो अन्य अनुबंधों में उनकी बैंक गारंटी जब्त की जा सकती है या निर्धारित भुगतान से जुर्माने की कटौती की जा सकती है।

रक्षा सूत्रों का कहना है कि ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में विफल रही विदेशी हथियार कंपनियों को पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा कि उन्हें प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जाना चाहिए। एक अमेरिकी कंपनी को ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने के लिए पांच-छह नोटिस जारी किए जा चुके हैं लेकिन अब प्रतिबंध लगाने के लिए कारण बताओ नोटिस का विरोध कर रही है। पिछले साल मानसून सत्र के दौरान नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी पर संसद में एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में कैग ने पिछले 15 साल में विदेशी कंपनियों से हुए रक्षा सौदों में भारत को 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान जताते हुए रक्षा मंत्रालय की ऑफसेट नीति की आलोचना की थी। कैग ने लड़ाकू विमान राफेल बनाने वाली फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन पर करार के मुताबिक कावेरी इंजन की तकनीक हस्तांतरित न करने पर सवाल उठाया था।

संसद में पेश रिपोर्ट में कैग ने कहा कि भारत ने 2005 से 2018 के बीच विदेशी रक्षा कंपनियों के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के 48 करार किए थे। दिसम्बर 2018 तक भारत को 19,223 करोड़ के ऑफसेट ट्रांसफर होने थे लेकिन केवल 11,396 करोड़ का ही ट्रांसफर किया गया। इनमें से भी सिर्फ 5457 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धताएं ही स्वीकार की गईं हैं। यानी कि केवल 59 प्रतिशत ऑफसेट पॉलिसी का पालन किया गया है। कैग ने कहा है कि विदेशी कंपनियों को अगले छह साल में लगभग 55 हजार करोड़ रुपये के ऑफसेट दावे पूरे करने हैं। फिलहाल हर साल 1300 करोड़ रुपये की ऑफसेट प्रतिबद्धताएं ही अभी पूरी हो पा रही हैं। कैग के सवाल खड़े किये जाने के बाद 28 सितम्बर को नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 जारी करके ऑफसेट पॉलिसी को बदल दिया गया है। नई गाइडलाइंस इस तरह की बनाई गई है कि अब सरकार-से-सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता से रक्षा खरीद में ऑफसेट पॉलिसी लागू नहीं होगी।


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