जोधपुर, 16 सितम्बर (हि.स.)। बीस साल पहले हुए बहुचर्चित हिरण शिकार मामले में सीजेएम (ग्रामीण) कोर्ट से बरी हुए बॉलीवुड कलाकारों सैफ अली खान, तब्बू, सोनाली बेंद्रे, नीलम कोठारी और एक स्थानीय निवासी दुष्यंत के खिलाफ सरकारी अपील को राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया है।
दो दशक पुराने हिरण शिकार मामले में सलमान खान के साथ सह-अभियुक्तों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। सीजेएम (ग्रामीण) कोर्ट से बरी हुए बॉलीवुड कलाकारों सैफ अली खान, तब्बू, सोनाली बेंद्रे, नीलम कोठारी और एक स्थानीय निवासी दुष्यंत के खिलाफ सरकारी अपील को राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार को स्वीकार कर लिया है। राजकीय अधिवक्ता की सेक्शन-5 की अर्जी पर पेश दलीलों के बाद लीव-टू-अपील को जस्टिस मनोज गर्ग की कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। अब चार सप्ताह बाद कोर्ट में इस मामले में फिर से सुनवाई होगी। अगली सुनवाई से ही बहस शुरू होगी। एडवोकेट अनीश भूरट एवं महिपाल विश्नोई ने राज्य सरकार का पक्ष रखा है।
देरी से अपील के बाद सेक्शन-5 की अर्जी स्वीकार:
इस केस में सह-आरोपितों के खिलाफ सरकार ने लीव-टू-अपील अर्जी दायर की थी लेकिन कोर्ट में जब अर्जी में तय समय सीमा (तीन महीने तक का समय) से अधिक देरी की बात सामने आई तो सरकार की ओर से सेक्शन-5 की अर्जी (देरी का कारण) पेश की। जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान राजकीय अधिवक्ता महिपाल विश्नोई ने दलील पेश की तो अर्जी स्वीकार कर ली गई।
सीजेएम ग्रामीण कोर्ट ने सह कलाकारों को किया था बरी:
दो दशक पुराने इस कांकाणी हिरण शिकार मामले में सीजेएम ग्रामीण कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए सैफ अली खान, नीलम, तब्बू, सोनाली बेंद्रे और दुष्यंत सिंह को बरी कर दिया था। उसके बाद सरकार की ओर से हाईकोर्ट में लीव टू अपील दायर की गई थी।
दो दशक पुराने इस कांकाणी हिरण शिकार मामले में सीजेएम ग्रामीण कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए सैफ अली खान, नीलम, तब्बू, सोनाली बेंद्रे और दुष्यंत सिंह को बरी कर दिया था। उसके बाद सरकार की ओर से हाईकोर्ट में लीव टू अपील दायर की गई थी।
ये था मामला:
फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ की शूटिंग के दौरान साल 1998 में सलमान खान और सह कलाकारों पर 12 व 13 अक्टूबर की मध्य रात्रि में कांकाणी गांव की सरहद पर दो काले हिरणों का शिकार का आरोप है। उसके बाद इस मामले में सुनवाई करते हुए सीजेएम ग्रामीण कोर्ट ने करीब दो दशक बाद सलमान खान को पांच साल की सजा सुनाई थी, जबकि सह-आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। इस फैसले के बाद राजस्थान सरकार ने राजस्थान हाईकोर्ट में यह अपील पेश की।