लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के मामले में फैसला सुरक्षित

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सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने लिया यू-टर्न, पलायन रोकने को जारी की गई थी अधिसूचना



नई दिल्ली, 04 जून (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट 12 जून को फैसला सुनाएगा। कोर्ट ने किसी भी कंपनी या फर्म के खिलाफ 12 जून तक कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने के पहले के आदेश को जारी रखा है। कोर्ट ने सभी पक्षों से तीन दिनों के अंदर अपनी दलीलें कोर्ट को सौंपने का निर्देश दिया है।
आज सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यू-टर्न लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कर्मचारियों के काम वाली जगह छोड़कर गृहराज्यों की ओर पलायन को रोकने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी। लेकिन अंततः ये मामला कर्मचारियों और कंपनी के बीच का है और सरकार इसमें दखल नहीं देगी।सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ये कर्मचारियों और कंपनी के बीच का मामला है। तब जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि कर्मचारी को अधिनियम को चुनौती दे रहे हैं। जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि वे केंद्रीय गृह मंत्रालय के 29 मार्च के नोटिफिकेशन को चुनौती दे रहे हैं। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि नेशनल एक्जीक्यूटिव कमेटी इस नीति के लिए जिम्मेदार है। तब जस्टिस भूषण ने कहा कि सरकारी प्राधिकार ही दिशानिर्देश जारी करती है। अटार्नी जनरल ने कहा कि लोग करोड़ों की संख्या में पलायन कर रहे थे। वे चाहते थे कि उद्योग चले। ये नोटिफिकेशन मजदूरों को रोकने के लिए किया गया था। इसमें लोगों की भी सुरक्षा का सवाल था। लेकिन वेतन देने का मामला कर्मचारियों और नियोक्ता के बीच का है।
जस्टिस कौल ने अटार्नी जनरल से पूछा कि आपने 100 फीसदी वेतन देने का नोटिफिकेशन जारी किया। अब सवाल है कि क्या सरकार को अधिकार है कि वो नियोक्ताओं को 100 फीसदी वेतन देने के लिए बाध्य कर सकते हैं या उसमें विफल होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। जस्टिस कौल ने कहा कि नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच समझौता हो सकता है, 100 फीसदी वेतन देना संभव नहीं है। सरकार को इसमें मदद करनी चाहिए। चिंता ये है कि कर्मचारी बिना वेतन के नहीं रहे लेकिन उद्योगों के पास देने के लिए पैसे नहीं हैं। सरकार को इसका व्यावहारिक समाधान निकालना चाहिए। अटार्नी जनरल ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत समझौते का प्रावधान है। सबसे जरूरी बात है कि इसमें मानवतावादी रुख अपनाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान एक उद्योग की ओर से पेश वकील ने कहा कि हमारी स्थिति अलग है। हमारी फैक्ट्री में काफी मजदूर थे। लेकिन उनकी संख्या घटकर 10 फीसदी रह गई है। जब काम ही नहीं हो रहा है तो वेतन कैसे दिया जाए। हम चाहते हैं कि कर्मचारियों के साथ बैठकर समझौता करें और उन्हें जरूरी चीजें मुहैया करायें। हम ठेकेदार को पेमेंट करने को चुनौती दे रहे हैं। उन लोगों को फैक्ट्री के विस्तार के लिए रखा गया था। ईएसआई फंड में करीब 80 से 90 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त फंड हैं। इस फंड में से 30 हजार करोड़ रुपये का इस्तेमाल सरकार मजदूरों के न्यूनतम पेमेंट करने पर खर्च कर सकती है।
मजदूरों की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सरकार कह रही है कि लॉकडाउन में वो संशोधन करने के लिए स्वतंत्र है। हम मास्क पहन रहे हैं इसका मतलब ये नहीं है कि हम बीमार हैं बल्कि हम दिशानिर्देश का पालन कर रहे हैं। उन्होंने आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 22 का हवाला देते हुए कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम को इसकी आड़ में खत्म किया जा रहा है। हम सबसे गरीब की बात कर रहे हैं जिनके सिर पर न छत है और न खाने के लिए भोजन। नियोक्ता कह रहे हैं कि वे ठेकेदार को पेमेंट नहीं कर सकते हैं लेकिन वे ये बताएं कि वे संविदाकर्मियों को कितना पेमेंट कर रहे हैं। जिन्होंने लॉकडाउन घोषित किया उन्हें इसका परिणाम समझना चाहिए। जो काम करना चाहते हैं वे क्यों भुगतें। वर्तमान स्थिति में नो वर्क नो पे का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
जस्टिस अशोक भूषण ने अटार्नी जनरल से कहा कि दो सवालों के जवाब दीजिए। क्या ईएसआई के पास अतिरिक्त फंड का मजदूरों की सहायता के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि उसमें से खर्च नहीं किया जा सकता है उससे कर्ज लिया जा सकता है। जस्टिस भूषण ने दूसरा सवाल किया कि क्या केंद्र का नोटिफिकेशन केवल प्रवासी मजदूरों के लिए ही था।कोर्ट ने 26 मई को लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी थी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि 17 मई को नई अधिसूचना जारी हुई है जिससे 29 मार्च को जारी अधिसूचना समाप्त हो गई है जिसे यहां चुनौती दी गई है। इस पर उद्योगों के वकीलों ने इसे नाकाफी बताया।
कोर्ट ने पिछले 15 मई को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि किसी भी कंपनी या फर्म के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। याचिका कई कंपनियों ने दायर किया है। याचिकाकर्ताओं में राजस्थान की कंपनी टेकनोमिन कंस्ट्रक्शन लिमिटेड, लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन, राजस्थान स्टील चैंबर्स समेत कई उद्योगों ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि 20 और 29 मार्च को केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन में कर्मचारियों को लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन देने का निर्देश दिया गया है। उस नोटिफिकेशन में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया था कि उल्लंघन करनेवालों के खिलाफ कार्रवई करें। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार के दोनों नोटिफिकेशन संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(जी) का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता कंपनी हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के खनन और प्रोडक्शन के लिए कांट्रैक्टर का काम करती है। कंपनी ने राजस्थान के चार स्थानों पर इस कांट्रैक्ट को पूरा करने के लिए 1704 कर्मचारियों को नियुक्ति किया हुआ है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से सारा काम बंद है। उनके लिए कंपनी का आपरेशन जारी रखना असंभव हो गया है।

 


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