लखनऊ, 13 अप्रैल (हि.स.)। कोरोना महामारी को लेकर इस समय पूरी दुनिया दहशत में है। भारत में लाॅकडाउन है। पूरे देश में सामान्य जन जीवन ठप सा हो गया है लेकिन उत्तर प्रदेश में इसके कुछ सुखद पहलू भी देखने को मिल रहे हैं। लाॅकडाउन के चलते प्रदेश में हृदय और सांस संबंधित गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या में एकाएक कमी आई है। संगीन अपराध और सड़क हादसे भी घटे हैं। इससे मौत का ग्राफ नीचे गिरा है।
चिकित्सकों का कहना है कि राजधानी लखनऊ, गाजियाबाद, नोएडा, कानपुर और वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश के अधिकतर शहर कुछ माह पहले तक बेहद प्रदूषित थे। सांस लेने के लिए लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिल पा रही थी लेकिन लाॅकडाउन के कारण वायु प्रदूषण में भारी कमी आई है। ओजोन लेयर रिपेयर हुई है। ऐसे में लोग अब चैन की सांस ले रहे हैं। साथ ही लाॅकडाउन के दौरान लोग घरों में हैं। इससे तनाव कम हुआ है। नतीजतन हृदय और सांस संबंधित गंभीर रोगों से लोगों को राहत मिल रही है।
लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को बताया कि श्वास संबंधी बीमारी के मूल कारण धूल और धुआं हैं। लाॅकडाउन के कारण इस समय सड़कों पर वाहनों की संख्या नगण्य है। इसके अलावा निर्माण कार्य भी इन दिनों बंद हैं। इससे वायुमंडल धूल और धुआं के कण अल्प मात्रा में हो गये हैं। साथ ही लोग घरों में हैं। इसलिए इस समय श्वास संबंधी रोगियों की संख्या अस्पतालों में कम आ रही है।
मोती लाल नेहरु मेडिकल कालेज प्रयागराज से संबंद्ध स्वरुपरानी नेहरु अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. पीयूष सक्सेना कहते हैं कि हार्ट संबंधी बीमारी का मुख्य कारण तनाव होता है। लाॅकडाउन के चलते इस समय लोग घरों में अपने परिवार के साथ बगैर किसी तनाव के रह रहे हैं। इसलिए अधिकतर लोग अपेक्षाकृत स्वस्थ हैं। जो लोग इस रोग से पहले से ग्रसित हैं उन्हें भी इस स्वच्छ वातावरण और तनाव रहित दिनचर्या में काफी राहत है। हालांकि, ऐसे मरीज फोन के जरिये चिकित्सकों से परामर्श लेकर अपनी दवा नियमित खा रहे हैं। स्वरुपरानी नेहरु अस्पताल के फेफड़ा रोग वार्ड में 60 बेड हैं, जो पहले रोगियों से भरे रहते थे, लेकिन इस समय वहां महज दस मरीज ही भर्ती हैं।
संगीन अपराध और सड़क हादसे लाॅकडाउन
लाॅकडाउन के चलते प्रदेश में अकस्मात होने वाली मौतों के ग्राफ में भारी गिरावट आई है। रोड एक्सीडेंट (सड़क हादसे) कम हुए हैं। गंभीर अपराध के मामले भी घटे हैं। हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने इस संबंध में कोई आंकडा जारी नहीं किया है, लेकिन पुलिस विभाग से मिली जानकारी के आधार पर उप्र में आपराधिक घटनाओं में काफी कमी आई है। राज्य के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी का दावा है कि 16 मार्च से अब तक पिछले वर्ष की तुलना में प्रदेश में करीब 65 प्रतिशत अपराध घटे हैं। इस समयावधि में वर्ष 2019 में जहां अपराध के कुल 31441 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2020 में यह संख्या घटकर 10743 तक ही पहुंच पाई है। अपर मुख्य सचिव गृह का कहना है कि अपराधियों में भी संक्रमण का खौफ है। साथ ही पुलिस भी मुस्तैद है। इसलिए अपराधी बाहर नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में हत्या, अपहरण, लूट और दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों में जबरदस्त कमी आई है। दरअसल कोरोना की दहशत इस कदर व्याप्त है कि ग्रामीण इलाकों में आए दिन चोरी की घटनाएं करने वाले चोर भी सहमें हुए हैं।
इसी तरह लाॅकडाउन के कारण सड़कों पर वाहनों की आवाजाही लगभग बंद सी हो गई है। इससे सड़क हादसे कम हो गये हैं। यातायात पुलिस के आकड़ों पर नजर डालें तो सामान्य दिनों की तुलना में लाॅकडाउन के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में करीब 60 से 70 प्रतिशत की कमी आई है। केजीएमयू के ट्रामा सेंटर के प्रभारी डॉ. संदीप तिवारी बताते हैं कि पहले इस अस्पताल में सड़क दुर्घटना के करीब 300 मामले रोज पहुंचते थे, लेकिन यह संख्या अब घटकर 150 के आस-पास पहुंच गई है। हादसों में गंभीर रुप से घायल लोगों के सफल चिकित्सक डॉ. डीसी श्रीवास्तव ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को बताया कि पहले उनके पास प्रतिदिन औसतन 15 से 20 मरीज बड़ी ही गंभीर अवस्था में आते थे पर लाॅकडाउन के दौरान अब सप्ताह भर में बमुश्किल दो तीन मरीज पहुंच रहे हैं।
श्मशान घाटों पर घटे अंतिम संस्कार
अकस्मात होने वाली मृत्यु दर में आई कमी के कारण लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर और वाराणसी समेत प्रदेश के विभिन्न जिलों में स्थित मोर्चरी (शव विच्छेदन गृह) में इन दिनों सन्नाटा नजर आ रहा है। श्मशान घाटों पर भी अंतिम संस्कार के आंकड़े कमजोर हो गये हैं। लखनऊ स्थित वैकुंठ धाम श्मशान घाट के प्रबंधक पंडित विनीत दुबे ने न्यूज एजेंसी को बताया कि लॉकडाउन से पहले रोजाना 25 से 30 शव अंतिम संस्कार के लिए आते थे, लेकिन अब यह संख्या दहाई तक भी नहीं पहुंच पा रही है। वाराणसी में हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट दो प्रमुख श्मशान घाट हैं। सामान्य दिनों में वहां 150 से 200 शवों के दाह संस्कार प्रतिदिन होते थे, लेकिन लाॅकडाउन के दौरान इन घाटों पर बमुश्किल 15 से 20 शव अंतिम संस्कार के लिए आ रहे हैं। यही स्थिति इस समय प्रयागराज, अयोध्या, मथुरा और कानपुर समेत प्रदेश के अन्य नगरों स्थित श्मशान घाटों की भी है।
प्रयागराज में रसूलाबाद स्थित स्वर्गधाम श्मशान घाट के प्रबंधक पंडित जगदीश प्रसाद बताते हैं कि वहां भी पहले 30-32 शवों के अंतिम संस्कार रोज हो जाते थे, लेकिन मात्र पांच से सात शव ही पहुंच रहे हैं। श्मशान घाट के पास लकड़ी आदि बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि लाॅकडाउन के कारण दूर से आने वाले शवों का अंतिम संस्कार अब स्थानीय स्तर पर ही कर दिया जा रहा है। इसलिए श्मशान घाटों पर शवों के आने की संख्या घट गई है। इस संबंध में केजीएमयू के चिकित्सक डॉ. वेद प्रकाश कहते हैं कि इस समय मौतें भी अपेक्षाकृत कम हो रही हैं। इसलिए भी श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए आने वाले शवों की संख्या घटी है।