साकार हुआ सदियों का सपना-मिथिला से चली इलेक्ट्रिक ट्रेन
दरभंगा, 1 जून (हि.स.)। रेलवे के ऐतिहासिक सफर के लगभग डेढ शताब्दी बाद 1 जून को आखिरकार वो दिन भी आया, जब मिथिला में इलेक्ट्रिक ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ। इसी कडी में सोमवार को पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन दरभंगा से नई दिल्ली के लिए रवाना हुई। गार्ड ने दरभंगा-नई दिल्ली बिहार संपर्क क्रांति स्पेशल ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इलेक्ट्रिक ट्रेन की सौगात पाकर मिथिलांचल के लोगों के खुशियोंं का ठिकाना नहीं है।
जिस बाबत ट्रेन के लोको पायलट उमा शंकर पोद्दार ने कहा कि दरभंगा से इलेक्ट्रिक ट्रेन का परिचालन शुरू हुआ है। समस्तीपुर-जयनगर रुट का इलेक्ट्रिफिकेशन होने के बाद इस रूट से पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन नई दिल्ली के लिए बिहार संपर्क क्रांति स्पेशल ट्रेन को ले जाते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है। साथ ही इलेक्ट्रिक इंजन लगने से ट्रेन की स्पीड बढ़ने के साथ-साथ गंतव्य तक पहुंचने में भी कम समय लगेगा। जबकि इस इलेक्ट्रिक ट्रेन से यात्रा करने वाले मो. नौशाद आलम कहते हैंं कि वे भारत सरकार के साथ-साथ खासकर रेल मंत्री पीयूष गोयल को इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। जिन्होंने मिथिलावासियोंं के वर्षों पुरानी मांग को आज पूरा कर दिखाया है। साथ ही दरभंगा से चली पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन से यात्रा करने के अनुभूति रोमांचित नौशाद ने कहा कि यह दिन उनके जीवन में हमेशा यादगार रहेगा।
उल्लेखनीय है कि 17 अप्रैल 1874 को दरभंगा में पहली ट्रेन आई थी। वैसे जहाँ तक मिथिला और उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछवाने का सवाल है, तो इसका श्रेय दरभंगा राज को जाता है। बताते चलेेंं कि 1874 में ट्रेनों का चलन शुरू होने के बाद मिथिलांचल के रेल इतिहास में दूसरा महत्वपूर्ण पड़ाव तब आया, जब 2 फरवरी 1996 को दरभंगा-समस्तीपुर रेलखंड को मीटर गेज से ब्रॉड गेज में बदल कर ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ। जिसका उद्घाटन तत्कालीन रेल राज्यमंत्री सुरेश कलमाडी ने किया था। फिलहाल इस रेलखंड के दोहरीकरण का काम तेजी से चल रहा है। जिसको अगले कुछ महीनों में पूरा कर लिए जाने की संभावना है। हालांकि इतने सारे परिक्रमाओं के बाद बिहार और मिथिला में रेलवे के विकास के परिप्रेक्ष्य में पूर्व रेलमंत्री स्व ललित नारायण मिश्र का जिक्र न हो, तो लिखी गई यह ईबारत अधूरी-अधूरी सी ही लगेगी। जिन्होंने मिथिला में रेल के विकास के लिए बड़ा सपना देखा था। लेकिन उनके असामयिक निधन से यह सपना अधूरा रह गया। अब जब मिथिला के रेल इतिहास में नई उपलब्धियां जुड़ गई हैं, तो लोग उन्हें कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए बरबस ही कहते देखे गए कि “ललित बाबू का सपना साकार हुआ”।