राजा मानसिंह हत्याकांड में डिप्टी एसपी सहित 11 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद

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सुनवाई के दौरान 35 साल में 1700 तारीखें पड़ीं और इस बीच 25 जिला जज बदल गए राजस्‍थान सरकार मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को 30-30 हजार मुआवजा देगी  घायलों के परिजनों को मुआवजे के तौर पर मिलेंगे दो-दो हजार रुपये  



मथुरा, 22 जुलाई (हि.स.)। राजस्थान के बहुचर्चित राजा मानसिंह हत्याकांड में 11 दोषी पुलिसकर्मियों को बुधवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाये जाने से उनके परिजनों को 35 साल बाद न्याय मिला है। मथुरा की जिला जज साधना रानी ठाकुर के ऐतिहासिक फैसला सुनाये जाने के बाद सभी दोषियों को कड़ी सुरक्षा के बीच जेल भेज दिया गया है।
जिला न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार किया था। तीन पुलिसकर्मियों को न्यायालय ने दोषमुक्त भी किया है जबकि तीन आरोपितों की मौत मुक़दमे के दौरान हो चुकी है। मथुरा जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने बुधवार दोपहर खचाखच भरी अदालत में राजा मानसिंह हत्याकांड में तत्कालीन डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी सहित 11 पुलिसकर्मियों को धारा 148, 149, 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम सिंह ने बताया कि सभी आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुनाए जाने के साथ ही उन पर जुर्माना भी किया गया है। वसूली गई जुर्माना राशि पीड़ित पक्ष को दिए जाने का भी आदेश दिया गया है।
गौरतलब हो कि राजस्थान के भरतपुर राज घराने के राजा मान सिंह के खिलाफ 20 फरवरी, 85 को भरतपुर थाने में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर का हेलीकाप्टर और मंच को तोड़े जाने की एफआईआर दर्ज की गई थी। उसके बाद 21 फरवरी को राजा मान सिंह एवं उनके दो निजी अंगरक्षक सुम्मेर सिंह, हरी सिंह चुनाव प्रचार के लिए अपनी जोगा जीप से लाल कुंडा के चुनाव कार्यालय से डीग थाने के सामने से निकले। तभी पुलिस ने उन्हें घेरते हुए ताबड़तोड़ फायरिंग करके राजा मान सिंह, सुम्मेर सिंह और हरी सिंह को मौत के घाट उतार दिया और उनके शवों को जोगा जीप में रख दिया।
इस वारदात के बाद डीग थाना के एचएचओ वीरेन्द्र सिंह ने राजा मान सिंह के दामाद विजय सिंह सिरोही के खिलाफ 21 फरवरी को ही धारा 307 की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। राजा मानसिंह के दामाद और उनके साथी बाबूलाल को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी रात उनकी जमानत भी हुई और 22 फरवरी को राजा मान सिंह का दाह संस्कार महल के अंदर ही किया गया। 23 फरवरी, 1985 को राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने डीगथाने में राजा मान सिंह और दो अन्य की हत्या का मामला दर्ज कराया। इसमें सीओ कान सिंह भाटी, एसएचओ वीरेन्द्र सिंह समेत 18 पुलिसकर्मी आरोपित थे। तीन चार दिन बाद यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया था।
इस बहुचर्चित हत्याकांड का मुकदमा जयपुर की विशेष सीबीआई अदालत में चला। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वर्ष 1990 में यह केस मथुरा न्यायालय स्थानांतरित हो गया। मुक़दमे के दौरान कांस्टेबल गनेकराम, कॉन्स्टेबल कुलदीप और सीताराम की मौत हो चुकी है, जबकि तत्कालीन सीओ के गाड़ी चालक महेन्द्र सिंह को जिला न्यायालय कोर्ट ने बरी कर दिया। पूरे केस में अभियोजन पक्ष की ओर से 61 गवाह तथा बचाव की ओर से 17 गवाह पेश किए गए जिनमें से बहुत से गवाह चश्मदीद भी थे। 9 जुलाई 2020 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने मुक़दमे की सुनवाई पूरी करते हुए 21 जुलाई को फैसला सुनाने की तारीख तय की थी।
डिप्टी एसपी सहित 11 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास
मथुरा न्यायालय ने 21 जुलाई को डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी, एसओ वीरेन्द्र सिंह, सिपाही सुखराम, जीवनराम, जगमोहन, भंवर सिंह, हरी सिंह, शेर सिंह, छत्तर सिंह, पदमा, सब इन्स्पेक्टर रवि शंकर मिश्रा को दोषी करार देते हुए न्यायिक हिरासत में ले लिया गया। जिला न्यायाधीश ने आज सभी 11 आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा से दण्डित किया।
तीन पुलिसकर्मियों को किया गया दोष मुक्त
जिला न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान निर्दोष मानते हुए हरी किशन, कान सिंह सिरवी, गोविंद सिंह को बरी कर दिया। इस मामले में 18 नामजद थे जिनमें से सीताराम, नेकीराम और कुलदीप सिंह की मौत हो गई। चूंकि तत्कालीन सीओ के गाड़ी चालक महेन्द्र सिंह को जिला न्यायालय कोर्ट ने पहले ही बरी कर दिया था, इसलिए कुल मिलाकर चार पुलिसकर्मी बरी हुए हैं।
आरोपितों की सुरक्षा में खर्च हुए 15 करोड़ रुपये से अधिक
मुकदमे में आराेपित बनाए गए 18 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा में 15 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च भी हुआ। राजपरिवार की तरफ से विजय सिंह, गिरेंद्र कौर, कृष्णेंद्र कौर दीपा, दुष्यंत सिंह, गौरी सिंह, दीपराज सिंह कोर्ट में मौजूद रहे। राजस्‍थान सरकार मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को 30-30 हजार और घायलों के परिजनों को दो-दो हजार रुपये मुआवजा देगी। 21 फरवरी 1985 को हुए इस बहुचर्चित हत्याकांड की सुनवाई के दौरान 1700 तारीखें पड़ीं और इस बीच 25 जिला जज बदल गए।

 


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