नई दिल्ली, 31 मार्च (हि.स.)। आखिरकार 132 साल बाद सरकार ने बुधवार को औपचारिक रूप से अपने सैन्य डेयरी फार्मों को बंद कर दिया है। इन्हें बंद करने का फैसला लगभग तीन साल पहले लिया गया था, जिसे बुधवार से लागू किया गया है। सरकार ने इन सैन्य फार्म को बंद करने के पीछे देशभर में बढ़ते दूध के कारोबार को बताया है। दूध का कारोबार इतना बड़ा हो गया है कि सेना को खुद के डेयरी फार्म की आवश्यकता नहीं है। सेना को अब प्राइवेट डेयरी के जरिये दूध मुहैया कराया जा सकता है। देश भर के मिलिट्री डेयरी फार्मों को बंद करने के फैसले ने सैन्य कर्मियों ही नहीं बल्कि इन फार्मों में कार्यरत हजारों सिविल कर्मचारियों और दैनिक वेतन भोगियों को भी चिंता में डाल दिया है।
आज से बंद किए गए 39 सैन्य फार्म अंबाला, कोलकाता, श्रीनगर, आगरा, पठानकोट, लखनऊ, मेरठ, इलाहाबाद और गुवाहाटी जैसे शहरों में 20 हजार एकड़ से अधिक रक्षा भूमि में फैले हुए हैं। इन्हें औपचारिक रूप से बंद करने के लिए दिल्ली कैंट स्थित सैन्य फार्म में एक समारोह आयोजित किया गया। सैन्य फ़ार्म बंद होने से 25 हजार से अधिक मवेशियों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और विभिन्न राज्य सरकारों को पालने के लिए दिया जाएगा। इन सैन्य फार्मों से सेना को 21 करोड़ लीटर से अधिक दूध की आपूर्ति होती थी, जो कुल आवश्यकता का 14% हिस्सा है। सेना ने अपनी बाकी जरूरत के दुग्ध उत्पाद स्थानीय स्तर पर खरीदे। मौजूद मवेशियों में फ्राइज़वाल गाय, डच होलस्टीन फ्रेज़ियन और भारतीय साहीवाल नस्ल के क्रॉस ब्रीड शामिल हैं।
अविभाजित ब्रिटिश भारत में सेना के जवानों को शुद्ध और निरंतर गायों के दूध की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सैन्य फार्म स्थापित किए गए थे। 1 फरवरी, 1889 को इलाहाबाद में पहला सैन्य फार्म स्थापित किया गया था। इसके बाद बड़ी संख्या में सैन्य फार्म स्थापित किए गए। आजादी के समय सेना की वर्तमान मध्य, दक्षिणी और पश्चिमी कमान में 100 से अधिक सैन्य फ़ार्म थे। पूर्वी कमान और उत्तरी कमान का गठन होने के साथ ही अतिरिक्त सैन्य फार्म इकाइयां शुरू की गईं। इसके बाद 1993 में भारत सरकार ने स्थायी सैन्य फार्म स्थापित किये। इस तरह आजादी के बाद भी भारतीय सेना ने यह सेवा जारी रखी और विस्तार भी किया। सैन्य फार्मों को स्थापित करने का उद्देश्य शांति क्षेत्र और उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों को ताजा दूध और मक्खन की आपूर्ति करना था।
आजादी के समय देश भर में 20,000 एकड़ भूमि में सैन्य फ़ार्म फैले थे, जिनमें 25 हजार से अधिक मवेशी थे। सेना में सुधारों की राय जानने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 2018 में लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेखतकर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति ने कुल 188 सिफारिशें कीं, जिनमें देश के सभी सैन्य फार्मों को बंद करने का भी फैसला लिया गया। उस समय सैन्य फार्म भारत में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) की शुरुआत करने में अग्रणी बन चुके थे। भारत में संगठित क्षेत्र में डेयरी विकास का श्रेय सैन्य फार्मों को ही दिया जाता है। ‘प्रोजेक्ट फ्रेशवाल’ क्रॉस-ब्रीड मवेशी विकसित करने की परियोजना दुनिया का सबसे बड़ा क्रॉस-ब्रीड मवेशी प्रजनन कार्यक्रम बन गया।
इस सबके बावजूद समिति की सिफारिशों पर सेना ने अपने सैन्य फार्मों को बंद करने का फैसला किया। उस समय सैन्य फार्मों में लगभग 23,600 मवेशी थे, जिनका वार्षिक दुग्ध उत्पादन 33 मिलियन किलोग्राम से अधिक था। दरअसल सैन्य फ़ार्म बंद करने का निर्णय इसलिए लिया गया था, क्योंकि समिति ने पाया कि नागरिक बाजार में गुणवत्ता वाले दूध और दूध उत्पादों की बढ़ती उपलब्धता के कारण सैन्य खेतों की आवश्यकता नहीं थी। सैन्य खेतों के कर्मियों को अन्य विभागों में स्थानांतरित किया जाएगा। सभी फार्म रक्षा भूमि पर हैं, इसलिए इनका उपयोग अन्य रक्षा उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।