कोरोना वैक्सीन को लेकर मुस्लिम धर्म गुरु बोले, इस्लाम में जान की हिफाजत सबसे अहम

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वैक्सीन के आने पर हलाल-हराम के फेर में न पड़कर लोगों से लगवाने की अपील



लखनऊ, 27 दिसम्बर (हि.स.)। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जहां पूरा देश और प्रदेश वैक्सीन के जल्द आने का इंतजार कर रहा है, वहीं इसे लेकर कई तरह की अफवाहों के जरिए लोगों में गलतफहमी पैदा करने की भी कोशिश की जा रही है। वैक्सीन को लेकर एक अफवाह में इसे इस्लाम के मुताबिक हराम बताया जा रहा है। ऐसे में मुस्लिम धर्म गुरु लोगों को जागरूक कर वैक्सीन आने पर उसे लगाने की अपील कर रहे हैं।
 
प्रसिद्ध मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने इस्लाम में जान की हिफाजत सबसे जरूरी बताकर वैक्सीन को लेकर लोगों की मंशा पर सवाल उठाने वालों को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में सुनी सुनाई बातों पर फैसला लेना ही नाजायज है। बगैर किसी तस्दीक के किसी चीज को हराम या हलाल कैसे कहा जा सकता है? जो लोग कोरोना वैक्सीन को हराम कह रहे हैं। उन्हें ये बताना चाहिए कि उन्होंने किस डॉक्टर से जानकारी ली है।
 
उन्होंने कहा कि इस्लाम में जान की हिफाजत को सबसे अहम बताया गया है। पैगम्बर ए इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब ने दवा के जरिए इलाज कराने का हुक्म दिया है। कोरोना बीमारी से दुनिया भर में तमाम लोग मर चुके हैं। इस बीमारी के इलाज का कोई विकल्प भी नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि अगर किसी दवा में कोई हराम चीज भी शामिल हो और जान बचाने के लिए उसका कोई विकल्प न हो तो वो ली जा सकती है। मौलान ने सभी से गुजारिश है कि पोलियो वैक्सीन की तरह कोरोना वैक्सीन के लिए अफवाह न फैलाए बल्कि वैक्सीन का इंतजार करें और डॉक्टर की सलाह लें।
 
इसके अलवा कई अन्य मुस्लिम धर्म गुरु भी मुसलमानों से वैक्सीन को लेकर बातों में न उलझकर इसके आने पर लगाने की अपील कर चुके हैं। मौलाना यासूब अब्बास का कहना है कि इस्लाम धर्म में जान बचाना जायज है। एक जानवर की भी जान बचाना इस्लाम धर्म में जरूरी है, फिर इंसान तो दूर की बात है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कोरोना वैक्सीन को लेकर गलतफहमियां पैदा कर रहे हैं। लेकिन, फिर भी यह दवा है और सबको मिलकर इस वैक्सीन को लगवाना चाहिए और इंसानियत को बचाना चाहिए। 
 
वहीं मौलाना सैफ अब्बास के मुताबिक जो चीज इस्लाम में हराम है, वह नॉर्मल तौर पर हराम है। लेकिन, अगर कोई इमरजेंसी है तो, उसके लिए जो भी दवा बनेगी और जिस चीज से दवा बनेगी, उसके लिए इस्लाम हमें इजाजत देता है। ऐसे में मुस्लिमों को कोरोना वैक्सीन की डोज लेने से परहेज नहीं करना चाहिए।
 
मौलाना सुफियान निजामी के मुताबिक जो भी मुसलमान इस्लाम धर्म को मानते हैं और उसका पालन करते हैं, उनको इस्लाम धर्म की इस बात को भी मानना पड़ेगा, जिसमें कहा गया है कि जान की हिफाजत करना, उसे बचाना सबसे पहली प्राथमिकता है। अगर जान बचाने के लिए कोई ऐसी दवा बनकर आती है, जिसमें गैर इस्लामी चीजें मिली हैं तो भी सेवन करना चाहिए। 
 
उन्होंने कहा कि जो मुम्बई के लोग कह रहे हैं कि इसमें पोर्क है तो वह बताएं कि आज जो भी दवा बनकर आ रही हैं, क्या वह सब क्लियर हैं। अगर आज की दवाओं को भी चेक किया जाए तो उनमें वह चीजें मिली है जो इस्लाम में प्रतिबंधित हैं। लेकिन, क्योंकि हमें जान बचाना है। इसलिए हम उन दवाओं का सेवन करते हैं। इसलिए कोरोना वैक्सीन का सेवन सारे मुसलमानों को करना चाहिए, जैसा कि अरब देशों ने भी इस बात को माना है।
 
दरअसल कोरोना वैक्सीन को लेकर कई तरह की चर्चाएं तेज हो रही हैं। इन्हीं में से एक में कहा कि जा रहा है कि  कोरोना वैक्सीन में ‘पोर्क जिलेटिन’ है। पोर्क इस्लाम में हराम यानि अपवित्र माना गया है। लिहाजा कट्टरपंथी अब इस नजरिए ये सवाल उठा रहे हैं कि कोरोना की वैक्सीन हलाल या हराम है। 
 
इन चर्चाओं में कहा जा रहा है ​कि किसी भी सूरत में वैक्सीन न ली जाए, जब तक कि मौलाना वैक्सीन में पोर्क होने की जांच न कर लें। मुम्बई की रजा अकेडमी ने इसको लेकर फतवा भी जारी किया है कि पहले जब तक मेडिकल विशेषज्ञ और मुफ्ती इसकी इजाजत नहीं देते तब तक मुसलमान इस दवा का इस्तेमाल न करें।
इसके बाद कई मुस्लिम धर्म गुरुओं ने इसे लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए लोगों से वैक्सीन के आने पर लगाने की अपील की है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात की ‘यूएई फतवा काउंसिल’ ने कोरोना वैक्सीन के टीकों में पोर्क जिलेटिन इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिए जायज करार दिया है। इसमें कहा गया है कि इंसान की जिन्दगी बचाना पहले जरूरी है।
 

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