कोरोना जैसी आपदा का जन्म क्रियाशील पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ने से: जीव विज्ञानिक

0

जीव वैज्ञानिक व पर्यावरणविदों ने कोरोना जैसी आपदा से बचने के लिए वनों को बचाने पर दिया जोर



नई दिल्ली, 22 अप्रैल (हि.स.)। विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर कोरोना के कहर के मद्देनजर इस संक्रमण की वजहों पर बात करना भी बेहद जरूरी है।  पर्यावरणविद व जीवविज्ञानी  मानते हैं कि अगर समय रहते लोगों ने क्रियाशील पारिस्थितिकी तंत्र(एक्टिव इकोसिस्टम) को बचाया होता तो कोरोना वायरस जैसी आपदा नहीं आती। एक्टिव इकोसिस्टम यानि वो तंत्र जहां हर एक जीव अपने अपने आवश्यक जीवों में पलते हैं, एक साथ रहते हैं।  इकोसिस्टम में अगर कुछ जीव गायब हो जाते हैं, तो उनपर निर्भर रहने वाले जीव मानव को अपना शिकार बनाते हैं। ऐसा ही मार्स, सार्स और ईबोला के मामले में हुआ है।
यमुना बायोडायवर्सिटी के प्रभारी जीवविज्ञानिक फायज खुदसर बताते हैं कि शहरों में प्राकृतिक वन खत्म हो चले हैं। जो जीव, परजीव जंगल में मौजूद जानवरों को अपना शिकार बनाते थे, अब उन्हें वहां अपने शिकार मिल नहीं रहे। नतीजतन मानव को शिकार बना रहे हैं। मार्स,ईबोला, सार्स हो, या अन्य कोई वायरस का प्रकोप आना, प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का ही नतीजा है। हमने इनके पर्यावरण तंत्र में इनके जीव को खत्म कर दिया है। जैव विविधता के बिगड़ने के कारण ही ऐसे वायरस परजीवी मानव को शिकार बना रहे हैं। फयाज खुदसर बताते है कि दिल्ली में मौजूदा समय में सात बायोडायवर्सिटी वन विकसित किए जा रहे हैं। इनमें से यमुना और अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में काफी अच्छा काम हुआ है। इन वनों में इनके स्थानीय पेड़ पौधे, जीव जंतु वापस आ रहे हैं। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में तो कई तरह की तितलियां और सांप 70 साल बाद देखने को मिल रहे हैं। इसी तरह कई तरह के पक्षियों को भी अब वहां देखा जा सकता है। दिल्ली के लिए यह एक अच्छा संकेत है। इसी तरह अरावली में भी विलायती कीकड़ की जगह पर स्थानीय पेड़ पौधे विकसित हो रहे हैं। इसके कारण सियार, काले चील जैसे जानवर वापस लौटने लगे हैं।
गुड़गांव के अरावली पार्क में स्थानीय पेड़ पौधों को वापस लाने की मुहिम चलाने वाले जीव विज्ञानी विजय धसमाना बताते हैं कि लोगों को यह समझना होगा, या कहिए अब समझने भी लगे हैं कि जीव-जंतु और जंगल उनके लिए बेहद जरूरी है। अगर वन नहीं रहेंगे तो कोई भी नहीं बचेगा। इसलिए जंगल- जीव जंतुओं को बचाने के लिए सभी का साथ बेहद जरूरी है। अरावली जंगल में अंग्रेजों ने विलायती कीकड़ के पेड़ लगा दिए जिससे भू जल भी प्रभावित हुआ और जैव विविधता भी बिगड़ा। अब इस वन में स्थानीय पेड़ पौधे लगाए गए हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में यह वन लोगों के लिए यह संजीवनी साबित होगी। बे बताते हैं कि यह सिद्ध करने की बात नहीं है, लोग अंतर खुद देख सकते हैं। जो स्थान वनों से दूर है वहां का प्रदूषण स्तर बेहद खराब होता है और वहीं अरावली और यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के आसपास प्रदूषण का स्तर बेहद कम होता है। इसलिए अगर लोगों को बीमारियों और से बचना है तो अपने वनों को बचाना होगा।

 


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *