कोरोना ने किए सामाजिक बदलाव, खत्म हो रही प्रथाएं, टूट रहा अंधविश्वास
बेगूसराय, 14 अगस्त (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोरोना ने ना सिर्फ आर्थिक और सामाजिक बदलाव कर दिया है। बल्कि कोरोना ने कई कुप्रथाओं पर भी प्रहार किया है जिसकी समाप्ति के लिए लोग दशकों से प्रयासरत थे। इसने लोगों को भूखे पेट रह कर भी जीने का रास्ता दिखाया। कोरोना ने ऐसा बदलाव किया कि हर एक व्यक्ति अपने जीवन को शून्य में पा रहे हैं। इस भय के वातावरण में सकारात्मक सोच भी आने लगा है। बहुत सारे सामाजिक बदलाव और धर्म के प्रति दकियानूसी सोच भी टूटती दिखाई दे रही है। इन रिवाजों को सदियों से लोग बगैर समझे अपने कंधों पर ढ़ो रहे थे लेकिन कोरोना ने पूरे सिस्टम को बदल दिया। आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक परिवर्तन के साथ जीवन के सभी जरूरतों को बदल दिया।
मृत्यु भोज में आई 80 प्रतिशत तक की कमी-
किसी की मौत होने पर उस परिवार की आर्थिक स्थिति बदतर रहने के बावजूद समाज और पड़ोस के लोग कर्ज लेकर, जमीन गिरवी रखकर मृत्यु भोज करने के लिए दबाव बनाते थे। लोग अपनी झूठी औकात दिखाने के लिए बढ़-चढ़कर मृत्यु भोज में कई आइटम बनवाते थे। जहां लावारिस लाश को भी जलाया जाता था, वहां अपने भी लाश छोड़ कर भाग रहे हैं। मरने के बाद कंधा देकर श्मसान घाट पहुंचाने वाले चार लोग नहीं मिल रहे हैं। कर्मकांड कराने के लिए ना तो पंडित मिल रहे हैं ना हीं नाई मिल रहे। बगैर मंत्र पढ़े और मल्लिक समुदाय से आग लिए अंतिम संस्कार हो रहा है। लोग उस रास्ते से जाना छोड़ दे रहे हैं। जिसके कारण अपने आप मृत्यु भोज में 80 प्रतिशत तक की कमी आ गई है। लोग किसी तरह कर्मकांड की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं।
सावन-भादो में लगातार हो रही है शादी-
हिंदू धर्म के आधार पर चतुर्मास रहने के कारण सावन-भादो में शादी नहीं होती थी। शादी विवाह के लिए शुभ मुहूर्त पंडित जी जन्मकुंडली देखकर बनाते थे। इस बार भी अप्रैल, मई और जून में पंडित द्वारा कई शुभ मुहूर्त बनाया गया था। लोगों ने कार्ड भी छपा लिए थे लेकिन लॉकडाउन में सब कुछ तबाह कर दिया। लॉकडाउन में ढील मिली तो बड़े पैमाने पर लगातार शादियां हो रही है। लोगों का कहना है कि जब पंडित जी का पतरा फेल हो चुका है तो हम किस शुभ और अशुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा में रहें।
हो रही है बड़ी बचत, आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे लोग-
कोरोना के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई तो परिवार चलाने के लिए, परिवार को व्यवस्थित करने के लिए लोग आपदा को अवसर में बदल रहे हैं। मामूली खर्च पर शादियां हो रही है ना कोई तामझाम, ना विशाल भोज हो रहा है। लोग कम खर्च में आस्था और विश्वास के साथ शादी और श्राद्ध के वैदिक रस्मों को पूरा कर रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता संजय गौतम बताते हैं कि मृत्यु भोज में कमी आई, लोग कर्मकांड कर मुक्त हो रहे हैं। समाज के लिए यह अच्छी बात है, आडंबर और अपना बाह्य रूप प्रस्तुत करने के लिए अर्थ के बोझ तले लोग दब रहे थे। सबसे अधिक फिजूलखर्ची शादी और श्राद्ध में होता था। लेकिन दोनों में कमी आई है, लोग सादे तरीके से शादी और श्राद्ध कर रहे हैं, कोरोना से सीख लेकर फिजूलखर्ची और अंधविश्वास से भी निजात पा रहे हैं।
बाबा-पोता में करवा दिया मुलाकात, रिश्तेदारों को मिलवाया-
कोरोना ने सामाजिक परिवेश पैदा किया है। 30 साल में जिससे भेंट नहीं हो पाती थी वह सब एक साथ रह रहे हैं। कई परिवारों की हालत यह थी कि बैंगलोर में पैदा हुआ पोता, बाबा को पहचानता तक नहीं था, कभी मुलाकात नहीं हुई थी। लेकिन कोरोना में जब सब परदेस को छोड़कर घर की ओर भागे तो बाबा-पोता में मुलाकात हुई। सभी रिश्तेदार-परिजन एक साथ हुए। इससे लोगों को अपनी भाषा और अपनी मिट्टी से जुड़ने का अवसर मिला।
कोरोना ने गरीबी में जीना सिखाया, बढ़ रही है घरेलू हिंसा-
करोना के कारण अधिकांश लोगों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है। बेरोजगारी, मजबूरी और जरूरत पूरा नहीं होने के कारण पति-पत्नी में टकराव बढ़ रहा है। लोग चाह कर भी अपने परिवार की सभी जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण घरेलू हिंसा में पिछले साल की तुलना में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो रही है। आर्थिक तंगी घरेलू हिंसा की ओर ले जा रहा है। आर्थिक तंगी से चिड़चिड़ापन और स्वभाव में कड़ापन से घरेलू हिंसा बढ़ रही है। लगातार जब घर के सभी लोग गांव आ गए हैं तो जमीन विवाद में वृद्धि हुई है और जमीन के कारण सामूहिक मारमीट बढ़ रहा है।