‘अपनापन’ के डोज के साथ मरीज ठीक कर रहे डॉक्टर की दास्तान कोरोना काल में
बलिया, 15 मई (हि.स.)। सड़क किनारे दर्जनों टेम्पो, जीप, ई-रिक्सा व लग्जरी गाड़ियां। वाहन अलग-अलग पर एक ही प्रकार के मरीज। आजकल कोरोना के कहर से चाहे सरकारी हों या प्राइवेट अस्पताल, हर जगह यही दृश्य दिखता है। हालांकि, ऐसे मरीजों का इलाज हर जगह ठीक से हो रहा हो, ऐसा नहीं है। लेकिन शहर के शारदा हॉस्पिटल के संचालक डॉ. जेपी शुक्ल ने अपने अनोखे अंदाज में कोरोना के लक्षण वाले मरीजों का इलाज कर खासी सुर्खियां बटोरी हैं।
कोरोना महामारी के दौरान खांसी, बुखार, सांस फूलने और गिरते ऑक्सीजन लेवल वाले मरीजों के उपचार में दवाओं के साथ मरीज के साथ करीबी प्रदर्शित कर ठीक कर रहे जेपी शुक्ल ने शनिवार को ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से कहा कि मैंने अपने हॉस्पिटल में मरीजों की लम्बी कतारें तो देखी थी पर गाड़ी में मरीजों की लाइनों का पहला अनुभव है। बताते हैं कि मरीज के पास जब पहुंचता हूं, वाहन में ही टेस्ट सैंपल लिया जाता है। एक घण्टे में रिपोर्ट मिलती है। रिपोर्ट के साथ फिर सड़क पर जाकर मरीज को देख कर कुछ दवाओं और सुइयों के साथ घर भेजता हूं। मरीज को लगता है अब वह ठीक हो जाएगा, क्योंकि शायद पहली बार इतने नजदीक से कोई प्राइवेट डॉक्टर उन्हें देख रहा है और सन्तोष दे रहा है।
उन्होंने कहा कि कभी-कभार मेडिकल स्टोर पर कुछ लोग दवा वापस करने भी आते हैं लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं होती कि वे दवा क्यों लौटाने आये हैं? बीस साल के प्रैक्टिस ने इतना तो आत्मविश्वास दे ही दिया था कि ईश्वर की कृपा से अपनी मेहनत और भाग्य के बल पर वह मरीज भी मैंने बचाए थे जो आम तौर पर कहीं और नहीं बचते।
मरीजों से दिल से जुड़कर करता हूं इलाज
डॉ. जेपी शुक्ला ने कहा कि मैं मरीजों से दिल से जुड़ता हूं। लेकिन कोरोना काल में मुझे काफी दुख हो रहा है। कहा कि एक मरीज जब आता है और मैं जब उनके सर पर हाथ रखता हूं तो वह सोचता है कि मेरे हाथ में अमृत है। पर आजकल पता नहीं किसने वह अमृत छीन लिया है? कहा कि मैं यह नहीं कहता कि कुछ मरीज ठीक नहीं हुए हैं। बहुत सारे मरीजों को हॉस्पिटल में प्रवेश कराये बिना उनके वाहनों में ही देख कर और उपचार करके मैंने ठीक किया है। इसके लिये मैंने अपने आप से और सरकर से लड़ाई लड़ी है।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में हम प्राइवेट डॉक्टर्स को कोरोना मरीज के इलाज की अनुमती नहीं थी। कोरोना कन्फर्म होने में कम से कम चार-पांच दिन का समय लग जाता था, पर तब भी हमने अपने मरीजों को समय पर नहीं छोड़ा। आज भी नहीं छोड़ते हैं। पर सरकार के गाइडलाइंस के खिलाफ जाकर इलाज करने में डर तो लगता ही है। मुझे दुख इस बात का है कि कुछ लोगों को बचा नहीं पाया। हालांकि, खुशी इस बात की भी है कि लगभग छह हजार लोग जो ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के लिये मारे फिर रहे थे। वे शायद इस चक्कर में सड़क पर ही मर जाते। उनको घर पर ही अच्छा इलाज देकर मैंने बचाया या बचाने का प्रयास किया।
अच्छे दिन आएंगे बस सब्र कर…
डॉक्टर शुक्ला ने भरोसा जताया कि अच्छे दिन आएंगे बस सब्र कर। माना गर्मी बहुत तेज है। माना हवाएं सब कुच उड़ा देने पर आमादा हैं। माना समन्दर की लहरें सुनामी बन चुकी हैं पर सब्र कर अच्छे दिन आएंगे।
सौ साल पहले आए स्वाइन फ्लू का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि नदियों का पानी तो हर साल जंगल को बहा ले जाता है। हिमालय की बर्फ भी तो हर साल पिघल जाती है। पर जंगल भी वही है, हिमालय भी वही है। हम भी रहेंगे वे भी रहेंगे। अच्छे दिन आएंगे। पहले हम लाचार व मजबूर थे। सिर्फ हौसला ही हमें बचाता था। आज हमारे पास बांध भी है, छत भी है, सरकार भी है, दवा भी है और मेरे जैदी चिकित्सक भी हैं।
डॉक्टर जेपी शुक्ल ने कविता के माध्यम से कहा कि भरोसा तू अपने पर रख, भरोसा तू उपर वाले पर रख, भरोसा तू सरकार पर रख, भरोसा तू अपने शरीर पर रख, बस मास्क पहन दो गज की दूरी रख, भीड़ में न जा क्योंकि बात सिर्फ तेरी जिन्दगी की नहीं, शरीर तेरा है जो मन में आ कर, पर तुझे ये हक नहीं कि तू दूसरों को बीमार कर।
दूसरी लहर में खतरनाक हुआ कोरोना हार्ट और ब्रेन पर कर रहा हमला
दूसरी लहर में अत्यधिक खतरनाक हो गया है कोरोना जेपी शुक्ला ने कहा कि कोरोना की पहली लहर कोई खास नहीं थी। मृत्यु कम हुई थी। हल्ला ज्यादा हुआ था। लेकिन इस बार ठीक उल्टा हुआ है। इस बार का कोरोना अलग-अलग रूप से मृत्यु के तरीके खोज रहा है। पहले हम यह मान कर चलते थे कि चौदह दिन बीत गये तो हम सिकंदर हो गये। पर इधर हमने सात दिनों से महसूस किया है कि कोरोना अगर नेगेटिव हो भी गया तो आप पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। अब जो मामले आ रहे हैं, वह ब्रेन हेमरेज के रुप में आ रहे हैं। बुखार, सर्दी व ऑक्सीजन लेवल सब ठीक रहता है। मैं भी खुश और मरीज भी खुश। अब दवा बन्द करने की बारी है। पर यह क्या, अचानक सिर में दर्द ब्लड प्रेशर हाई, कुछ झटके और मरीज की मौत हो जाती है। यह सब तब होता है, जबकि मरीज को एस्प्रिन दी जा चुकी है, ताकि कोरोना हार्ट व ब्रेन में क्लाटिंग कर हर्ट अटैक या ब्रेन हेमरेज न कर सके। इसलिए अब इलाज में बहुत सावधानी की जरूरत है।