बदली-बदली नजर आ रही कांग्रेस !
नई दिल्ली, 07 अप्रैल (हि.स.)। लगातार चुनाव दर चुनाव अपनी सियासी जमीन खोती जा रही कांग्रेस की रणनीति इन दिनों कुछ बदली-बदली सी नजर आ रही। महज ‘विरोध के लिये विरोध’ की नीति को छोड़ वह सरकार के उन फैसलों का समर्थन कर रही है जो बड़े स्तर पर जनता को प्रभावित कर रहे हैं या जिनका जनता से सीधा जुड़ाव है। लब्बोलुआब यह कि हाल के दिनों में कांग्रेस ने मोदी सरकार के कई कड़े और बड़े फैसलों का चाहे-अनचाहे समर्थन किया है। भारतीय लोकतंत्र का यह एक धवल पक्ष भी है जो मुश्किल वक़्त में निखर कर सामने आता रहा है। किन्तु, राजनीतिक नजरिये से देखें तो कहना गलत न होगा कि प्रमुख विपक्षी दल अब जमीन से जुड़ने को मचल रहा है। हाल के दिनों में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की क्रियात्मक गतिविधियों को देखकर तो यही लग रहा।
वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी की रणनीति में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कांग्रेस नेता सीधे तौर पर सरकार के किसी भी निर्णय या तरीकों का विरोध नहीं कर रहे बल्कि उसके मद में जनता की भावनाओं और उनकी जरूरतों को भलीभांति समझने का उनका प्रयास स्पष्ट दिख रहा। ऐसा जान पड़ता है कि जैसे कांग्रेस खुद को पिछले 70 साल के शासन काल की परछाई से अलग कर प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका को बेहतर ढंग से अंजाम देने का मन बना मैदान में उतर गई है। तभी तो वैश्विक महामारी कोविड-19 (कोरोना वायरस) के खिलाफ लड़ाई में केंद्र सरकार की तमाम कोशिशों का कांग्रेस पूरी तरह समर्थन कर रही है। यहां तक की कोविड-19 महामारी को हराने के लिए देशवासियों को एकजुटता दिखाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के तहत ताली व थाली बजाने के प्रस्ताव का भी समर्थन किया । ततपश्चात 21 दिन के लॉकडाउन के फैसले को सही ठहराते हुए कांग्रेस ने इसे वक्त की जरूरत बताया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वयं सामने आ प्रधानमंत्री के इस फैसले का समर्थन किया। ये दीगर बात है कि उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला पूर्व तैयारी के बिना लिया गया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील की तर्ज पर ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा ‘कोरोना वायरस का संकट हमारे लिए एक मौका है कि हम एक हों, सभी धर्म-जाति के अंतर को भूल जाएं और एक ही लक्ष्य के लिए एकसाथ आएं।’ राहुल ने कहा कि इस खतरनाक वायरस को हराने के लिए करुणा, सहानुभूति और आत्म बलिदान को केंद्र में रखना होगा। एकसाथ रहकर ही हम सभी इस जंग को जीत पाएंगे।
इतना ही नहीं लॉकडाउन के दौरान दिल्ली के निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात के लोगों के जमावड़े पर सरकार की ओर से इन्हें ‘वायरस कैरियर’ की संज्ञा दिए जाने पर भी कांग्रेस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कांग्रेस के जितिन प्रसाद ने तो बकायदा ट्वीट कर इसकी आलोचना भी की। वहीं, जमाती सदस्यों द्वारा चिकित्सकीय दल के साथ गलत बर्ताव करने एवं वायरस संक्रमण को फैलाने की गतिविधियों पर कांग्रेस ने उनकी निंदा भी की।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जनता से दीए जलाने की अपील पर कई कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन कर दीप भी जलाए और सरकार के इस कदम को उम्मीद का दीपक बताया था। वहीं बीते सोमवार को सांसदों के वेतन में एक साल तक 30 फीसदी की कटौती के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का कांग्रेस नेताओं ने खुले दिल से स्वागत किया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि कोरोना से लड़ने के मद में जरूरत हो तो 30 क्या 50 फीसदी वेतन काट लिए जाए।
हालांकि विपक्षी दल ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (एमपीएलएडी) को दो साल के लिए बंद किए जाने के सरकार के फैसले पर जरूर सवाल उठाया। हालांकि, यह विरोध कम राजनीतिक पैंतरा ज्यादा नजर आया। सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह पैसा किसी सांसद का निजी नहीं है लेकिन अगर सरकार इसे समाप्त करना ही चाहती है तो बस यह सुनिश्चित करे कि उनके क्षेत्रों में विकास कार्यों एवं जरूरत के समय केंद्र मददगार रहेगा।
बहरहाल, प्रमुख विपक्षी दल की नीति में आये बदलाव को देखकर तो यही लगता है कि देर से ही सही पर कांग्रेस को अब जमीनी हकीकत समझ आ रही है। ऐसे में ‘देर आये, दुरुस्त आये’ का मुहावरा कांग्रेस पर सटीक बैठता है।