कोलकाता, 14 जुलाई (हि.स.) । लोकसभा चुनाव में अलग-अलग लड़ने के बाद कांग्रेस और माकपा अब पश्चिम बंगाल में अगले साल (2020) होने वाला नगर पालिका चुनाव गठबंधन करके लड़ेंगी। इसकी कवायद भी तेज कर दी गयी है। यदि नतीजे संतोषजनक रहे तो यह गठबंधन आगे भी जारी रहेगा और दोनों पार्टियां वर्ष 2021 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ सकती हैं। खास बात यह है कि दोनों पार्टियां अब प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस को नहीं बल्कि भाजपा को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानकर रणनीति बना रही हैं।
विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ने कांग्रेस से गठबंधन की कवायद तेज कर दी है। प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने इसका स्वागत करते हुए माकपा के शीर्ष नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया है।
येचुरी ने शनिवार को कहा था कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कुशासन से लोग त्रस्त हो चुके हैं और इससे जल्द छुटकारा पाना चाहते हैं। प्रदेश में सबसे अधिक माकपा कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में फंसाया गया है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस के साथ किसी तरह का कोई गठबंधन नहीं होगा। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि प्रदेश में भाजपा तेजी से बढ़ रही है और उसे रोकने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया जाएगा।
माकपा के विश्वस्त सूत्रों ने रविवार को बताया कि पार्टी के एक शीर्ष नेता प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के साथ गठबंधन को लेकर पिछले कुछ दिनों से बातचीत कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके सोमेन मित्रा भी इसमें काफी रुचि दिखा रहे हैं। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रदीप भट्टाचार्य और माकपा की ओर से पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य गठबंधन को लेकर मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं।
विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि अगस्त तक दोनों पार्टियों के शीर्ष नेता एक दूसरे के साथ बैठक करेंगे, जिसमें नगर पालिका और विधानसभा के आगामी चुनाव में गठबंधन का रास्ता साफ किया जा सके।
उल्लेखनीय है कि हाल में संपन्न हुए विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस और माकपा को संयुक्त रूप से तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया था। उसके बाद राज्य के कई हिस्सों में माकपा के कब्जाए पुराने दफ्तरों को तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खाली कर दिया था। ममता बनर्जी के निर्देश पर राजारहाट में ज्योति बसु की याद में स्मारक और म्यूजियम बनाने की भी अनुमति दे दी गई है। इसके बाद से ऐसी उम्मीद थी कि माकपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच दूरियां घट रही हैं और विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां मिल कर लड़ सकती हैं। हालांकि प्रदेश में भाजपा की आक्रामक रणनीति को देखते हुए हालात बदले हुए दिख रहे हैं। अब कांग्रेस और माकपा तृणमूल कांग्रेस को नहीं बल्कि भाजपा को मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानने लगी हैं।
माकपा और कांग्रेस की हुई थी करारी हार
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में माकपा और कांग्रेस दोनों की करारी हार हुई। पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से माकपा के 41 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। पिछले चुनाव में माकपा के दो उम्मीदवार जीते थे, लेकिन इस बार उसे एक भी सीट मयस्सर नहीं हुई है। कांग्रेस भी 2014 में चार सीटों के मुकाबले सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई है, जिसमें से एक सीट बहरामपुर से अधीर रंजन चौधरी ने अपने दम पर जीती है। वहीं वर्ष 2014 के चुनाव में दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने इस बार 18 सीटों पर जीत दर्ज की है। भाजपा के तेजी से बढ़ते ग्राफ से दोनों पार्टियां घबरायी हुई हैं।