कश्मीर पर कांग्रेस कंफ्यूज क्यों है?

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कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 पर अपनी लाइन बदली है। अब वह अनुच्छेद 370 को बेअसर करने की बजाय केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा अपनाई प्रक्रिया का विरोध करेगी।



अनिल बिहारी श्रीवास्तव
अनुच्छेद 370 पर अपनी छीछालेदर करवा चुकी कांग्रेस शायद कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। एक कांग्रेसी नेता का कथित बयान सोशल मीडिया में पढ़ने को मिला। उनका कहना है कि भविष्य में केन्द्र में कांग्रेस को बहुमत मिलने और उसकी सरकार बनने पर जम्मू कश्मीर की पुरानी स्थिति वापस लौटा दी जाएगी। इस तरह की बातों क्या मतलब है? वह कह क्या रहे हैं? क्या वह जम्मू कश्मीर को पुन: विशेष दर्जा देने की बात कह रहे हैं? क्या वह लद्दाख को फिर से जम्मू कश्मीर का हिस्सा बनाने का स्वप्न दिखा रहे हैं? इस बयान की पुष्टि नहीं हुई है लेकिन यदि उन्होंने ऐसा कुछ कहा है तो कहना सिर्फ यह है कि या तो नेताजी की बुद्धि घास चरने गई है या फिर वह अव्वल दर्जे की धूर्तता दिखा रहे हैं। इस बीच एक और नई बात हुई। कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 पर अपनी लाइन बदली है। अब वह अनुच्छेद 370 को बेअसर करने की बजाय केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा अपनाई प्रक्रिया का विरोध करेगी। पार्टी की एक उच्च स्तरीय बैठक में उक्त निर्णय लिया गया। बैठक में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, केसी वेणुगोपाल, अशोक गहलोत, नारायणसामी, सचिन पायलट के अलावा पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष और सांसद मौजूद थे। इस मौके पर गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर की परिस्थितियों और 370 एवं 35ए के विषय में समझाया। आजाद अनुच्छेद 370 पर कांग्रेस के कई नेताओं द्वारा सरकार के फैसले का समर्थन किए जाने से नाराज हैं। चूंकि राहुल और प्रियंका की मौजूदगी में आजाद ने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है। इसलिए माना जा सकता है कि गांधी परिवार भी ऐसे बयानों को पसंद नहीं कर रहा है।
सवाल यह है कि क्या कांग्रेस आत्महत्या पर उतारू है? सोशल मीडिया से लेकर ठेठ आम बातचीत में यही सवाल उठ रहा है। ऐसे सवाल का अपना आधार है। अनेक गंभीर मुद्दों पर कांग्रेस के स्टैण्ड को आमजन के साथ पार्टी में ही बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद नहीं किया है। कांग्रेस नेतृत्व के फैसलों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान उसे घेरने के कांग्रेस के तमाम प्रयास नाकाम हुए थे। अब कांग्रेस नेतृत्व पर गंभीर मुद्दों पर गलत रुख अपनाने को आरोप लग रहा है। तीन तलाक पर कांग्रेस का विरोध पसंद नहीं किया गया। उस पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगा। अनुच्छेद 370 को खत्म करने के प्रस्ताव के विरोध से रही-सही कसर पूरी हो गई। इसे बड़ी गलती माना गया। कांग्रेस के प्रलाप से लोगों में बढ़ी नाराजगी को जमीन से जुड़े कांग्रेसी नेता भी महसूस कर रहे हैं। उधर, भाजपा कांग्रेस पर पाकिस्तान की भाषा बोलने का आरोप लगाती रही है। इससे कांग्रेस के मैदानी कार्यकर्ता और जनता की नब्ज टटोलने में माहिर निचले और दूसरी एवं तीसरी पंक्ति के नेताओं में बेचैनी है। उनकी चिंता और घबराहट महसूस की जा सकती है। पिछले दो माह में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता, नेता और जनप्रतिनिधि कांग्रेस छोड़ चुके हैं। अनुच्छेद 370 पर एक दर्जन से अधिक कांग्रेसी नेताओं और विधायकों ने पार्टी नेतृत्व के निर्णय से विपरीत बयान दिए हैं। आश्चर्य है कि उनकी भावनाओं को समझने की बजाय कांग्रेस में उनके बयानों पर नाराजगी व्यक्त की जा रही है। आजाद तो यह तक कह गए कि जो लोग जम्मू कश्मीर का इतिहास नहीं जानते उन्हें इसे पढ़ने की जरूरत है। ऐसे लोग पहले जम्मू कश्मीर और कांग्रेस का इतिहास पढ़ लें। फिर निर्णय लेने की जरूरत है कि उन्हें कांग्रेस में रुकना चाहिए या नहीं। इस टिप्पणी से क्या निष्कर्ष निकलता है? क्या आजाद ने मान लिया है कि 370 पर पार्टी लाइन से हट कर बयान देने वाले लोग पलायन की तैयारी में हैं। इतिहास सीखने के लिए होता है। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है। स्पष्ट है कि कांग्रेस जनता का मूड समझ नहीं पा रही। यह स्थिति कांग्रेस के लिए आत्महत्या के रास्ते पर बढ़ने जैसी है। पार्टी नेतृत्व के फैसलों से बेचैन एक कांग्रेसी ने कहा कि आत्महत्या का अर्थ केवल जीवन समाप्त कर लेने तक नहीं मानना चाहिए। राजनीतिक, सामाजिक और चकाचौंध भरी दुनिया में कई लोगों को जीते जी मौत से बुरी जिंदगी गुजारते देखा जा चुका है। लोग आपसे नफरत करें, उपेक्षा करें, अविश्वास करें तब यह भी तो आत्महत्या जैसी ही स्थिति होगी। कांग्रेस को समझना होगा कि डॉ. कर्ण सिंह, जनार्दन द्विवेदी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुरली देवड़ा, दीपेन्द्र हुड्डा, जतिन प्रसाद और आर पी एन सिंह समेत कई नेताओं ने जम्मू कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले को क्यों सराहा। क्या यह कांग्रेसियों की सोच में एक बड़े बदलाव का संकेत नहीं है? यह बदलाव हर ओर महसूस किया जा रहा है। यह अलग बात है कि सिर्फ कांग्रेस नेतृत्व के ज्ञानचक्षु बंद हैं।
कांग्रेस में सोनिया-राहुल युग में पहली बार पार्टी लाइन से असहमति के स्वर इस स्तर पर सुनाई दिए हैं। अनुच्छेद 370 को लेकर कांग्रेस में पहला बड़ा धमाका भुवनेश्वर कलिता ने किया। कलिता राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक थे। पार्टी ने उन्हें सरकार के प्रस्ताव के विरूद्ध व्हिप जारी करने का निर्देश दिया था। कलिता ने इसे राष्ट्रहित के विपरीत माना। उन्होंने व्हिप जारी करने की बजाय राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इस धमक को कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व या बुजुर्ग पीढ़ी नहीं समझ सकी। कलिता कहते हैं, मैं ऐसा नहीं करता तो व्हिप जारी करना पड़ता। पार्टी नेतृत्व जनता के मूड को क्यों नहीं पढ़ पा रहा? ऐसे फैसले कांग्रेस को खत्म कर देंगे। कलिता के साहस से अन्य बेचैन कांग्रेसियों की भावनाएं फूट पड़ीं। इनमें से कुछ ने पार्टी लाइन की परवाह नहीं करते हुए मोदी सरकार के फैसले का समर्थन कर दिया। ऐसा करने वालों मध्यप्रदेश और राजस्थान के दो मंत्री, राजस्थान और यूपी की दो विधायक और भाजपा से कांग्रेस में आए फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा शामिल हैं। सिन्हा ने मोदी और शाह के फैसले की सराहना करते हुए शाह को डायनामाइट निरूपित कर डाला। कांग्रेस को एक और बड़ा झटका वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह की साफगोई से लगा। उन्होंने लद्दाख को केन्द्र शासित क्षेत्र बनाने और धारा 35ए समाप्त किए जाने का समर्थन किया है। उन्हें विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर के हालात सुधरते ही उसे पूर्ण राज्य का दर्जा वापस लौटा दिया जाएगा। आजाद और डॉ. कर्ण सिंह दोनों का संबंध जम्मू-कश्मीर से है। डॉ. कर्ण सिंह कश्मीर के महाराजा हरि सिंह पुत्र हैं। उनके बयान के अपने मायने हैं। यह पार्टी की बुजुर्ग लॉबी के लिए झटका है। एक बात अवश्य है डॉ. कर्ण सिंह से उनके कश्मीर इतिहास ज्ञान और समझ पर आजाद सवाल नहीं कर सकते। हालांकि आजाद भी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मूलत: कश्मीरी आजाद को सोनिया गांधी और राहुल गांधी का दरबारी माना जाता है। माना जा रहा है कि अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार के फैसले के विरोध का बीज आजाद ने ही बोया है। यदि यह बात सच है तब कहना होगा कि उनकी इसी मेहरबानी के चलते कांग्रेस आगे कुआं और पीछे खाई जैसी हालत में आ फंसी है।

 


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