झांसी,16 मई (हि.स.)। पिछले कुछ दिनों से झांसी की सड़कों पर महाराष्ट्र के हजारों वाहन दौड़ रहे हैं। झांसी के लोग यह देखकर चकमा खा रहे हैं कि वे महाराष्ट्र में है या उत्तर प्रदेश में? हजारों वाहन शनिवार की सुबह से भी निकल रहे हैं। इनमें मोटर साईकिल से लेकर बड़े-बड़े ट्रक व ट्राला भी शामिल हैं। मोटरसाइकिल और टैक्सियों की तो गिनती ही नहीं है। सड़कों पर एमएच, एमएच और सिर्फ एमएच नंबर देखकर लोग हैरान हैं। लोग यह पूछने लगे हैं कि ये उत्तर प्रदेश का झांसी शहर ही है न?
कल्पना कीजिए क्या मुंबई से लेकर बनारस या लखनऊ या गोरखपुर तक कोई मोटरसाइकिल,ऑटो या साइकिलों से चला सकता है? भारत के यह कामगार ऐसा करते हुए नजर आ रहे हैं। सड़क पर कोई बंधु लाल शर्मा है जो ऑटो चलाते हुए अपने परिवार के साथ मुंबई से चल दिए। 4 दिन पहले अपने भाई भाभी और उनके दो बच्चों को लेकर चले थे। बीती शाम झांसी के बाईपास से होकर निकल रहे थे। बनारस स्थित अपने घर की ओर चले जा रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या लाॅकडाउन हट जाने के बाद सबकुछ सामान्य होते ही दोबारा यहां वापस आने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं। तो उन्होंने बड़ा संक्षिप्त परन्तु संतुष्टि भरा उत्तर दिया अपना घर नहीं छोड़ेंगे। इनके के लिए महाराष्ट्र सरकार ने कोई साधन की व्यवस्था नहीं की है।
मुंबई से बिहार के लिए बाईक से निकल पड़ा रोहित और उसका मित्र
इसी रास्ते से बाईक पर बैठकर अपने साथी जाहिद के साथ रोहित भी मुंबई से निकल पड़े हैं। उनकी बाईक का नम्बर भी एमएस से शुरु होता है। ये बिहार जाना चाहते हैं। मुंबई में ये और इनका साथी रिलाइंस की कम्पनी में कार्य करते थे। दो दिन पहले निकले थे। शायद शनिवार को इन्हें भी बिहार स्थित अपने गांव में पहुंचना मिल जाएगा।
झांसी के बाईपास बने हैं सभी के पनाहगाह
झांसी शहर के बगल से निकलती हुई बाईपास सड़क है जो झांसी से कानपुर भी जाती है,यही रास्ता, लखनऊ और गोरखपुर भी जाता है। यही रास्ता, इलाहाबाद और बनारस भी जाता है। यही रास्ता बिहार को भी जोड़ता है। और इस रास्ते पर आने के लिए मुंबई,कोटा,राजस्थान,गुजरात आदि सारी सीमाएं कोटा-शिवपुरी मार्ग स्थित मप्र बाॅर्डर पर खुल रही हैं। कुल मिलाकर अधिकांश राज्यों की सीमा झांसी की सड़कों पर खुल रही है।
ऐसे हजारों रोहित और बंधुलाल सड़कों पर
ऐसे हजारों रोहित, अलताफ और बंधुलाल सड़कों पर डोल रहे हैं। जब किसी को कुछ नहीं मिलता है तो महाराष्ट्र से आने वाले ट्रक इनका साधन बन जाते हैं। न इन्हें कोई रास्ते में रोकता है न इन्हें कोई टोकता है। एक बात अवश्य है कि जैसे ही इन्होंने महाराष्ट्र की सीमा छोड़ी इनका दुख दर्द बांटने वालों का तांता इन्हें जरुर मिला। चाहे मप्र का इंदौर रहा हो या फिर मप्र की राजधानी भोपाल। कम से कम इनके भोजन पानी की व्यवस्था जरुर हुई है। जबकि महाराष्ट्र में ऐसा नहीं हुआ।
भूसे की तरह वाहनों में भरकर जा रहे मजदूर
भूसे की तरह यह इंसान भरे हुए हैं। यह कोई भेड़ बकरी नहीं है। ट्रांसपोर्ट कंपनियों ने अपने लाभ के लिए भेड़ बकरी बनाकर रख दिया। सभी वाहन महाराष्ट्र से चले आ रहे हैं। ये बाइक सवार और टैक्सी यात्री सभी चले आ रहे हैं। जिन को वाहन नसीब नहीं हुआ, वह पैदल चले जा रहे हैं। हालांकि केन्द्र व प्रदेश सरकारें मजदूरों को उनके घर भिजवाने का दावा कर रहीं हैं। लेकिन सड़कों पर ये दावे खोखले दिखाई दे रहे हैं।