परिस्थिति होंगी भयावह बंगाल में घुसपैठ पर लगाम नहीं लगा तो : असीम घोष
कोलकाता, 13 अप्रैल (हि. स.)। डर लगता है यदि इस बार पश्चिम बंगाल में भाजपा सत्ता में नहीं आ सकी और किसी तरह संयुक्त मोर्चा (वाम, कांग्रेस, आइएसएफ) की मदद से तृणमूल ने खिचड़ी सरकार बना ली तो रोहिंग्या और मुस्लिम घुसपैठियों से यह राज्य भर जाएगा और उसके नतीजे बेहद भयावह होंगे। यह चिन्ता भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष असीम घोष ने व्यक्त की है। घोष आज “हिन्दुस्थान समाचार” के साथ विशेष वार्ता कर रहे थे।1999 से 2002 तक पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष रह चुके असीम घोष वर्तमान में भी सक्रिय हैं और चुनाव प्रचार में वे प्रधानमंत्री की कई जनसभाओं में शामिल हो चुके हैं।
मंगलवार को “हिन्दुस्थान समाचार” से वार्ता करते हुए घोष ने बचपन के दिन यादों को साझा किया।1944 में बांग्लादेश के नोआखाली में जन्मे असीम घोष ने बचपन के दिन याद करते हुए कहा कि जब वे छोटे थे तभी उनका परिवार पश्चिम बंगाल चला आया था। हावड़ा शहर उनका नया ठिकाना बना। हावड़ा के विवेकानंद इंस्टीट्यूशन से शुरुआती पढ़ाई के बाद1960 में उन्होंने विद्यासागर कॉलेज में दाखिला लिया।1965 में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण कर यूजीसी की टीचर्स फैलोशिप हासिल कर ली। 1990 में ही घोष का जुड़ाव भाजपा से हो गया था।
एक सवाल के जवाब में असीम घोष ने कहा कि तपन दा (पूर्व केंद्रीय मंत्री तपन सिकदर), विष्णु कांत शास्त्री जैसे नेताओं के साथ काम करने का अवसर मिला।1998 में मैं पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बना। उसी साल लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें चुनौती भरा एक दायित्व सौंपा। उन्होंने बताया कि कृष्णनगर से जलूदा (सत्यव्रत मुखर्जी) चुनाव लड़ रहे थे और मुझसे कहा गया कि हर हाल में उल्हें जिताना है। लगभग तीन महीने तक मैं कृष्णनगर में रह कर उनका चुनावी अभियान संचालित करता रहा। वहां 42 फीसदी मुस्लिम मतदाता थे। इसके बावजूद जलूदा में उनकी जीत हुई। मैं उनका चीफ इलेक्शन एजेंट था। चुनाव जीतकर जलूदा वाजपेयी सरकार में मंत्री बने। इसके ठीक बाद मुझे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व मिला।
असीम घोष ने बताया कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को विभिन्न मामलों में परामर्श देने के लिए सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस, सीए, अधिवक्ता एवं शिक्षाविदों को लेकर एक कार्यकारी समूह होता है। 1993 से 98 और फिर 2004 से 2012 तक मैं इस कमेटी का सदस्य रहा। बीच में 1999 से 2003 तक प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व निर्वहन किया। 2016 से मैं इस कमेटी का चेयरमैन हूं। साथ ही पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी में स्थाई आमंत्रित सदस्य के तौर पर शामिल हूं।
अन्य दलों से भाजपा में शामिल हो रहे तमाम नेताओं को लेकर पार्टी में उठ रहे सवालों पर असीम घोष ने कहा, “आदमी अच्छा मगर किसी काम का नहीं, या फिर काम का लेकिन विवादास्पद छवि। कौन ज्यादा ग्रहण योग्य है? यह बहुत ही कठिन सवाल है। पिछड़ते बंगाल में ‘सोनार बांग्ला’ वापस लाने के लिए एक बड़ी उथल-पुथल की जरूरत है। शिक्षा को राजनीति से मुक्त करना होगा, नए कारखाने लगाने होंगे, उद्योगपतियों को जमीन उपलब्ध करानी होगी। पुराने और रुग्न कारखानों को फिर से चालू करना होगा और श्रमिक संगठनों के गैर जिम्मेदाराना कार्यकलाप और भ्रष्टाचार पर रोक लगाना होगा।
वामपंथी एवं तृणमूल सरकारों पर राज्य के विकास करने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए असीम घोष कहते हैं, “ममता बनर्जी जिस तरह से संवैधानिक रीति-नीति की अनदेखी कर जनाक्रोश मोल ले रही हैं, ज्योति बसु या बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कभी ऐसा नहीं किया। उनकी अपनी समस्याएं रही होंगी लेकिन उन्होंने कभी भी बेशर्म तुष्टीकरण की राह नहीं पकड़ी। वस्तुतः श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ स्थापना के समय हिंदू-मुसलमान दोनों का ही पार्टी में स्वागत किया था।बंटवारे के समय भारत में जो मुसलमान रह गये थे, उनको लेकर हमारी कभी कोई आपत्ति नहीं रही।”
बंगाल के संदर्भ में कौन सी बात आपको सोचने पर मजबूर करती है, के सवाल पर घोष ने कहा, “बदहाल अर्थव्यवस्था, रोजगार के अवसर कम होना यह सब तो है ही, इसके साथ पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की लगातार बढ़ती तादात गंभीर चिंता उत्पन्न करती है। उदाहरण के लिए स्वाधीनता के समय मालदा और 24 परगना जिलों में मुस्लिम आबादी क्रमशः 35 और 27 प्रतिशत हुआ करती थी। वर्तमान में मालदा, दक्षिण 24 परगना और उत्तर 24 परगना में क्रमशः 50, 40 और 38 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है। कुछ और जिलों में भी बड़ी संख्या में घुसपैठिए आ चुके हैं। अगर अभी से इस पर लगाम नहीं लगाया गया तो भविष्य में परिस्थिति अत्यंत भयावह होंगी।