बॉलीवुड के अनकहे किस्से : पहले भारतीय हॉलीवुड स्टार साबू का अधूरा “सौदा”

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अजय कुमार शर्मा
हॉलीवुड में पदार्पण करने वाले वे पहले भारतीय थे। उनका पूरा नाम था साबू दस्तगीर…। वे मैसूर स्टेट के महावत के बेटे थे। 1930-40 में साबू ने हॉलीवुड (अमेरिकन और ब्रिटिश) फिल्मों में बड़े पैमाने पर लोकप्रियता हासिल की। साबू को वृत्तचित्र फिल्म- निर्माता रॉबर्ट फ्लैहर्टी ने खोजा था, जिन्होंने उन्हें 1937 की ब्रिटिश फिल्म “एलीफेंट बॉय” में एक हाथी चालक की भूमिका में लिया था। इसे रुडयार्ड किपलिंग की एक कहानी के आधार पर बनाया गया था और साबू की उम्र उस समय दस बारह वर्ष की थी। फिल्म काफ़ी सफल रही। इसके बाद उन्होंने कई ब्रिटिश और अमेरिकी फिल्मों जैसे ‘द ड्रम (1938), थीफ ऑफ बगदाद (1940), जंगल बुक (1942), अरेबियन नाइट्स (1942), कोबरा वुमन (1944), सॉन्ग ऑफ इंडिया (1949) में प्रमुख मुख्य भूमिकाएं निभाईं। इसके अलावा भी उन्होंने कई अन्य फिल्में की, लेकिन उन्होंने किसी भी हिंदी फिल्म में अभिनय नहीं किया।उन्हें महबूब खान की 1957 की फिल्म मदर इंडिया में बिरजू की भूमिका के लिए कहा गया था किंतु वर्क परमिट आदि की समस्या के चलते वे यह फिल्म नहीं कर पाए। 1963 में, उन्होंने डिज्नी फिल्म ए टाइगर वॉक में ब्रायन कीथ के साथ एक छोटी भूमिका निभाई थी। यह उनकी अंतिम भूमिका थी, क्योंकि इस फिल्म के रिलीज होने के 3 महीने पहले ही दो दिसंबर 1963 को केवल 39 साल की उम्र में उनका अमेरिका के लॉस एंजिल्स में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।

उस जमाने के प्रख्यात निर्माता, निर्देशक एवं अभिनेता किशोर साहू से साबू की मुलाकात रोम में अचानक ही हुई थी जहां वे अपनी फिल्म “मयूरपंख” को कांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाने के लिए ले गए थे। यह वह दौर था जब साबू को काम मिलना काफ़ी कम हो चुका था और साबू भारत आकर अपने संबंधियों से मिलने के लिए झटपटा रहे थे। किशोर साहू ने तुरंत एक प्रस्ताव उसके समक्ष रखा कि तुम भारत आओ मगर एक हफ्ते के लिए नहीं तीन महीने के लिए और इन तीन महीनों में मैं एक फिल्म बना लूंगा जिसके तुम हीरो रहोगे। मैं तुम्हे मुंबई के श्रेष्ठ होटल ताज महल में रखूंगा। तुम्हारे रहने खाने का सारा खर्च में दूंगा। इसके अतिरिक्त चित्र के विदेश वितरण में चौथाई हिस्सा भी दूंगा। साबू तुरंत तैयार हो गए। इस योजना से उन दोनों को ही फायदा था। एक तरफ़ अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अभिनेता किसी भारतीय फिल्म को उपलब्ध हो रहा था तो दूसरी तरफ साबू को अपनी जन्मभूमि में काम करने का मौक़ा मिल रहा था। भारत के समाचार पत्रों में यह खबर सुर्खियों में छपी “साहू टू स्टार साबू इन हिज नेक्सट” (साहू के आगामी चित्र में साबू)। किशोर साहू ने फिल्म का नाम “सौदा” रखा। हीरोइन के लिए शशिकला को लिया गया। अन्य कलाकार थे गोप, जॉनी वॉकर, सूर्य कुमारी, रूपा बर्मन और मनोरमा काटजू आदि। क्योंकि फ़िल्म तीन महीने में बननी थी इसलिए उसे ब्लैक एंड व्हाइट में बनाने की योजना बनाई गई, लेकिन अपने निर्माता मित्र के कहने पर उसको गेवा कलर (रंगीन) में बनाने का निर्णय लिया गया।

साबू के भारत आते ही सारी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में खलबली मच गई। कुछ अन्य निर्माताओं ने भी उनको अपनी फिल्मों में लेने के प्रलोभन दिए पर अनुबंध के अनुसार पहले फिल्म “सौदा” समाप्त हो जाने के बाद ही वह भारत में दूसरी फिल्म कर सकते थे। फिल्म की शूटिंग कोचीन में करने का निर्णय लिया गया और यूनिट वहां 26 दिसंबर 1953 को पहुंच गई, लेकिन किशोर साहू और निर्माता अम्बालाल पटेल के साथ कुछ अनुबंधों पर विवाद शुरू हो गए और फिल्म की चार रीलें शूट करने और दो गाने संगीतबद्ध करने एवं फिल्माने तक ही चार महीने बीत गए। साबू एक महीना और ठहरे मगर विवाद न सुलझते देख वह सपरिवार अमेरिका वापस चले गए। इस तरह पहले भारतीय हॉलीवुड स्टार को भारतीय फिल्म में प्रस्तुत करने का सौदा अधूरा ही रह गया।

चलते चलते:- साबू से “सौदा” फ़िल्म का अनुबंध किशोर साहू ने रोम के एक रेस्टोरेंट में वहां के मेनू कार्ड के पीछे अनुबंध की शर्तें लिखकर और उस पर साबू के हस्ताक्षर कराकर किया था। साबू ने फिर भी इसका पालन पूरी ईमानदारी से किया और भारत में कोई अन्य फ़िल्म नहीं की। इसे आप एक भारतीय की सच्ची हॉलीवुड ईमानदारी कह सकते हैं।

(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)


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