11 अक्टूबर इतिहास के पन्नों में

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संकल्प, सेवा और संन्यासः साल- 1977, केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने की तैयारी चल रही थी। मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए महत्वाकांक्षी नेताओं में होड़ लगी थी। दिल्ली के इस राजनीतिक कोलाहल के बीच जनसंघ के वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के सामने मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में शामिल होने की पेशकश रखी गयी। लेकिन उन्होंने 60 साल की अधिक उम्र के लोगों को सरकार से बाहर रहकर समाजसेवा करने की जरूरत बताते हुए मंत्रिपद के प्रस्ताव को एक झटके में ठुकरा दिया। सेवा के प्रति यह संकल्प एक मिसाल बन गया।

नानाजी देशमुख (चंडिकादास अमृतराव देशमुख) का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली कस्बे में हुआ। बचपन में ही माता-पिता को खो देने के बाद मामा ने उनका लालन-पोषण किया। भारी अभावों के बीच रहकर भी शिक्षा के प्रति उनकी ऐसी उत्कंठा थी कि उन्होंने पढ़ाई की फीस और पाठ्य सामग्री जुटाने के लिए सब्जियां भी बेचीं और मंदिरों में रहकर भी गुजारा किया। आखिरकार उन्होंने पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा हासिल की।

वे किशोरावस्था में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित थे। तीस के दशक में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवाकार्यों से प्रभावित होकर इसमें शामिल हुए और उनकी लगन व मेहनत को देखकर प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा गया। वे उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। उन्होंने लगातार संगठन के विस्तार में खुद को झोंक दिया। इसका परिणाम जल्द ही संघ की बढ़ती शाखाओं के रूप में सामने आया।

शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका उल्लेखनीय योगदान है। स्वदेशी शिक्षा पद्धति की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से उन्होंने गोरखपुर में सरस्वती शिशु मंदिर की नींव रखी। जो आगे चलकर देश के बड़े हिस्से में फैल गया। यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए संजीवनी साबित हुआ। बाद में वर्षों में उन्होंने चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की।

नानाजी ने एकात्म मानववाद के आधार पर ग्रामीण विकास की रूपरेखा बनाकर 1972 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। इसके शुरुआती प्रयोगों में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा और महाराष्ट्र के बीड जिलों में ग्रामीण स्वास्थ्य, शिक्षा व आय के साधनों के प्रयोग की शुरुआत की। उन्होंने गरीबी निरोधक और न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाए। उनका नारा था- हर हाथ को काम और हर खेत को पानी।

वे आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रहे और जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर संपूर्ण क्रांति में भी अहम योगदान दिया।

1980 में साठ साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर बाकी जीवन सामाजिक व राजनीतिक कार्यों में लगा दिया। 1989 में वे पहली बार चित्रकूट आए और चित्रकूट को अपने सामाजिक कार्यों का केंद्र बनाया। अंतिम सांस तक वे यहीं रहे, जहां भगवान श्रीराम ने वनवास के चौदह में से 12 वर्ष काटे। उनके कार्यों की प्रशंसा करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने कहा था-चित्रकूट में नानाजी जो कुछ कर रहे हैं, उसे देखकर लोगों की आंखें खुल जानी चाहिए। उन्होंने नानाजी के सेवाकार्यों को भारत के लिए सर्वथा उपयुक्त बताया। चित्रकूट में रहते हुए 27 फरवरी 2010 को उनका देहावसान हो गया। 2019 में मरणोपरांत उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

अन्य अहम घटनाएंः

1902ः सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म।

1942ः महानायक अमिताभ बच्चन का जन्म।

1987ः भारतीय शांति सेना की श्रीलंका में ऑपरेशन पवन की शुरुआत की।


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