पटना, 17 फरवरी (हि.स.)। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल कोटे से 12 विधान परिषद सदस्यों के मनोनयन को लेकर बयान देकर भाजपा के पाले में गेंद डाल दिया है। बुधवार को उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्यपाल कोटे से 12 विधान पार्षदों के मनोनयन में भी भाजपा ने अड़ंगा लगा रखा है। भाजपा के कारण ही 12 विधान पार्षदों का मनोनयन नहीं हो पा रहा है। जबकि मैं चाहता हूं कि सब कुछ जल्दी निपट जाये। सीएम नीतीश ने कहा कि केंद्र और बिहार में आरक्षण के जो प्रावधान लागू हैं, उसमें छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए। किसी को भी आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि केंद्र में भी बिहार का आरक्षण फॉर्मूला लागू हो।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज जनता दल यूनाइटेड (जदयू) कार्यालय में पार्टी के नेताओं से मिलने पहुंचे थे। पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि विधान मंडल के बजट सत्र से पहले 12 एमएलसी का मनोनयन हो जायेगा? तब जवाब में नीतीश कुमार ने कहा कि आपको मालूम है कि हम सब कुछ करना चाहते हैं लेकिन सब मेरे हाथ में नहीं है। नीतीश के एक इस लाइन ने बता दिया कि आखिरकार क्यों 11 महीने से राज्यपाल कोटे से एमएलसी का मनोनयन लटका हुआ है।
पांच दिन पहले नीतीश कुमार जब पीएम नरेंद्र मोदी से मिलकर पटना पहुंचे थे तो उन्होंने कहा था कि एमएलसी का मनोनयन जल्द हो जायेगा। हालांकि तब भी नीतीश कुमार ने यह कहा था कि उनका विचार है कि मनोनयन जल्द हो जाए। लेकिन आज इशारों में उन्होंने बता दिया है कि उनके विचारों और इच्छाओं पर भाजपा ने ग्रहण लगा दिया है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल मई महीने से बिहार में राज्यपाल कोटे से 12 एमएलसी के मनोनयन का मामला लटका हुआ है। जो पुराने मनोनीत सदस्य थे, उनका कार्यकाल मई, 2020 में ही समाप्त हो गया। पहले भाजपा-जदयू की ओर से कहा गया कि विधानसभा चुनाव के बाद विधान पार्षदों का मनोनयन होगा। लेकिन विधानसभा चुनाव खत्म हुए भी तीन महीने हो चुके हैं।
बिहार राजनीतिक के विश्लेषक की मानें तो सीट शेयरिंग को लेकर भाजपा और जदयू के बीच यह मामला लटका हुआ है। भाजपा चाहती है कि विधायकों की संख्या के आधार पर एमएलसी की संख्या तय हो। उधर जदयू का कहना है कि अगर विधायकों की संख्या पर ही एमएलसी की तादाद तय होना है तो फिर मई, 2020 की संख्या पर बंटवारा हो। मनोनयन तो उसी समय होना था और तब जदयू के विधायकों की संख्या भाजपा से अधिक थी। तब भाजपा के आग्रह पर मनोनयन को टाला गया था। लिहाजा एमएलसी की संख्या पुराने आधार पर ही तय हो। इधर, आरक्षण को लेकर भी बिहार में राजनीति तेज हो गई है। जिन्हें आरक्षण मिली उसे फिर से आरक्षण नहीं दिए जाने पर छिड़ी बहस पर छिड़ गई है। देश में सिर्फ पिछड़ा वर्ग के लिए ही आरक्षण लागू है जबकि बिहार में पिछड़ा और अतिपिछड़ा दोनों वर्ग को आरक्षण दिया गया है। देश में सबसे पहले यह व्यवस्था बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर ने लागू की थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि आरक्षण की व्यवस्था को कोई खत्म नहीं कर सकता। वे चाहते हैं कि बिहार का फार्मूला केंद्र में भी लागू हो। उन्होंने कहा कि पिछले कोटे में अति पिछड़ा को भी अलग से आरक्षण मिले फिलहाल अभी केंद्र में सिर्फ पिछड़ा वर्ग को ही आरक्षण मिल रहा है।