मौसम के अनुकूल फसल चक्र अपनाने से किसानों की बढ़ेगी आमदनी :नीतीश कुमार

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मुख्‍यमंत्री ने किया मौसम आधारित कृषि योजना का उद्घाटन, राज्‍य के सभी 38 जिलों में योजना लागू जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए सभी जिलों के 5-5 गांवों का चयन फसल अवशेषों को नहीं जलायें किसान, उसका सदुपयोग करें, इससे फायदा होगा और आमदनी भी बढ़ेगी धान अधिप्राप्ति का न्यूनतम लक्ष्य 45 लाख मीट्रिक टन



पटना, 14 दिसम्बर (हि.स.)। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को किसानों को अधिक आमदनी और ज्यादा उपज दिलाने को लेकर मौसम आधारित कृषि योजना का उद्घाटन किया। यह योजना राज्य के सभी 38 जिलों में शुरू की गई। शेष आठ जिलों में यह पहले से ही लागू है। इस योजना के तहत प्रयास किया जा रहा है कि किसान मौसम के अनुसार सालोंभर कोई न कोई फसल लगा सकें। इससे खेती में लागत कम आयेगी और किसानों की आय बढ़ेगी। कृषि विभाग ने जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए सभी जिलों के 5-5 गांवों का चयन किया है, जिससे किसान जागरूक और लाभान्वित होंगे। जलवायु के अनुकूल कृषि से किसानों की लागत में कमी आती है और उन्हें अधिक लाभ होता है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाना है। यह पांच वर्ष की योजना नहीं, स्थायी कार्यक्रम है। अभी पांच वर्ष के लिए राशि आवंटित की गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र के लिए यह योजना जरूरी है। इससे किसानों की खेती की लागत कम होती है और आमदनी बढ़ती है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में जल-जीवन-हरियाली अभियान की शुरूआत की गई। इसमें 11 अवयवों को शामिल किया गया है। मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम तथा फसल अवशेष प्रबंधन भी इसमें शामिल है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में 76 प्रतिशत लोगों की आजीविका का आधार कृषि है। बाढ़, सुखाड़ की स्थिति निरंतर राज्य में बनी रहती है। मौसम के अनुकूल फसल चक्र अपनाने से किसानों को काफी लाभ होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि धान अधिप्राप्ति का कार्य तेजी से किया जा रहा है। इस बार धान अधिप्राप्ति का न्यूनतम लक्ष्य 45 लाख मीट्रिक टन रखा गया है। हमलोग बिहार में ऐसी आदर्श व्यवस्था बनाएंगे जिसका लोग अध्ययन करेंगे। बिहार के जल-जीवन-हरियाली अभियान की चर्चा यूनाइटेड नेशन में भी हुई है।

कार्यक्रम में उन जिलों के किसानों और अधिकारियों ने भी अपनी बातें रखीं जहां पूर्व में मौसम के अनुकूल कृषि योजना पर काम शुरू हुआ था। इस मौके पर मुख्यमंत्री के परामर्शी अंजनी कुमार सिंह, मुख्य सचिव दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार, सचिव मनीष कुमार वर्मा, अनुपम कुमार, ओएसडी गोपाल सिंह, कृषि विभाग के सचिन एन सरवनन और निदेशक आदेश तितरमारे भी मौजूद थे। जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पूर्व कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार, बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के प्रबंध निदेशक अरुण कुमार जोशी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कुलपति आरसी श्रीवास्तव, बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति अजय कुमार सिंह, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फउंडेशन के प्रतिनिधि कृष्णन सहित वरीय वैज्ञानिक, कृषि विशेषज्ञ, कृषक और विभागीय पदाधिकारी जुड़े थे।

हवाई सर्वेक्षण कराकर पराली जलाने का आकलन करायें

मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे बिहार में फसल अवशेषों को जलाया जा रहा है। किसानों को यह बात समझने की जरूरत है कि फसल अवशेषों को जलाना पर्यावरण के लिए घातक है। साथ ही आने वाली पीढ़ी को समस्या होगी। उन्होंने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि कृषि विभाग के वरीय अधिकारियों से हवाई सर्वेक्षण कराकर इसका आकलन करायें। किसानों को इसके लिए समझाएं और जागरूक करें। फसल अवशेषों को जलाने की जरूरत नहीं है, बल्कि किसान उसका सदुपयोग करें। इससे किसानों को फायदा होगा और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी। फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है साथ ही खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।

कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुसूचित जाति-जनजाति, अतिपिछड़ों को 80 प्रतिशत अनुदान

सीएम ने कहा कि फसल कटाई के वक्त खेतों में फसलों का अवशेष नहीं रहे इसके लिए रोटरी मल्चर, स्ट्रॉ रिपर, स्ट्रॉ बेलर और रिपर कम बाइंडर का उपयोग किसान करें। इन यंत्रों की खरीद पर राज्य सरकार किसानों को 75 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अतिपिछड़े समुदाय के किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान दे रही है।

पांच साल तक कृषि वैज्ञानिक करेंगे खेती

मौसम के अनुसार कृषि योजना के अंतर्गत राज्‍य में 190 मॉडल गांव तैयार किए जाएंगे। वहां वैज्ञानिक खुद हर मौसम के अनुसार खेती करेंगे। वैज्ञानिक पांच साल तक खुद खेती करेंगे, जिसे बिहार के लाखों किसानों को दिखाया और सिखाया जाएगा। इस वैज्ञानिक खेती को बोरलॉग इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशिया, राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय (पूसा), कृषि विश्वविद्यालय (सबौर, भागलपुर) के वैज्ञानिक सफल बनाएंगे।


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