जम्मू में सजा केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर सरकार का पहला दरबार

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दरबार खुलने के अवसर पर सचिवालय के ऊपर पहली बार नजर आया राष्ट्रीय ध्वज- पहला दरबार लगने पर इस बार मंत्रियों का तामझाम नजर नहीं आया- उपराज्यपाल जीसी मुर्मू को दिया गया गार्ड ऑफ ऑनर



जम्मू, 04 नवम्बर (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद शीतकालीन राजधानी जम्मू में सोमवार सुबह सरकार का दरबार खुल गया। पिछले छह महीने ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में सिविल सचिवालय के काम करने के बाद अब छह महीने के लिए सचिवालय व अन्य मूव कार्यालय जम्मू में ही काम करेंगे। इस बार की दरबार मूव प्रक्रिया की खास बात यह है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बनने के बाद सरकार का पहला दरबार जम्मू में खुला है। दरबार खुलने के अवसर पर सचिवालय के ऊपर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज नजर आया।
उपराज्यपाल जीसी मुर्मू के सोमवार सुबह सचिवालय पहुंचने पर उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करने के बाद उपराज्यपाल ने विभिन्न विभागों के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक करके दरबार मूव के प्रबंधों, विकास कार्यों और सुरक्षा हालात जैसे कईं अन्य संबंधित मुद्दों का जायजा लिया। इसी बीच पहले की ही तरह सचिवालय रोजाना दो बजे से लेकर शाम चार बजे तक आम लोगों के लिए खुलेगा ताकि जनता अपने आवश्यक कामकाज करवा सकें। इस दौरान आम नागरिक अपनी समस्याओं को लेकर विभिन्न विभागों के प्रशासनिक सचिवों से मुलाकात कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें सचिवालय गेट पर पास बनवाकर अंदर जाने की अनुमति होगी।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का जम्मू में पहला दरबार लगने पर इस बार मंत्रियों का तामझाम नजर नहीं आया। नागरिक सचिवालय के सामने वाली सड़क को लोगों की आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया। सुरक्षा घेरे को मजबूत बना दिया गया। मुर्मू ने गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करने के बाद सचिवालय परिसर में विभिन्न विभागों के कार्यालयों का दौरा भी किया।
जम्मू कश्मीर में जब निर्वाचित सरकार होती थी तो उस समय मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों के काफिले जम्मू पहुंचते थे। चुनी हुई सरकार में मुख्यमंत्री ही सचिवालय में गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करते थे। सभी मंत्री अपने-अपने विभागों का कामकाज संभालते थे। दरबार मूव होने पर जम्मू की सड़कों पर मंत्रियों के काफिले नजर आते थे। इस समय न तो विधानसभा और न ही विधान परिषद है। ऐसे में नेताओं का तामझाम भी नजर नहीं आया। सिर्फ प्रशासनिक, पुलिस व्यवस्था ही नजर आई। मंत्रियों, विधायकों, एमएलसी न होने से इस बार दरबार मूव पर पहले के मुकाबले थोड़ा खर्च कम हुआ है।
उल्लेखनीय है कि महाराजा रणबीर सिंह ने जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया वर्ष 1872 में शुरू की थी। बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था के लिए दरबार को छह महीने श्रीनगर और छह महीने जम्मू में रखने की प्रथा शुरू हुई थी। इस प्रथा को डोगरा शासकों ने वर्ष 1947 तक जारी रखा। राज्य की पिछली सभी सरकारों ने भी इस व्यवस्था को कायम रखा। दरबार मूव की यह प्रक्रिया जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद भी जारी है।

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