नागरिकता विधेयक अधिकार देता है, छीनता नहीं : अमित शाह

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पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना का शिकार लोगों को 31 दिसंबर 2020 तक भारत की नागरिकता हासिल हो सकेगी। इन अल्पसंख्यकों में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई शामिल हैं।



नई दिल्ली, 09 दिसम्बर (हि.स.)। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (नासंवि) किसी धार्मिक समुदाय से अधिकार नहीं छीनता बल्कि पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार अल्पसंख्यकों को अधिकार देता है।

शाह ने लोकसभा में विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना का शिकार लोगों को 31 दिसंबर 2020 तक भारत की नागरिकता हासिल हो सकेगी। इन अल्पसंख्यकों में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि इन तबकों के लोग चाहे किसी भी कालखंड में भारत आए हों उन्हें नागरिकता मिल सकेगी। भारत में उनके प्रवास के दौरान उन्होंने संपत्ति अर्जन, आवास निर्माण और नौकरी हासिल करने जैसे जो विशेषाधिकार हासिल किए हैं। वे पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। देश में अवैध प्रवेश या निवास के लिए उनके खिलाफ चल रही कानूनी कार्रवाई में भी उन्हें राहत मुहैया कराई जाएगी तथा वे नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे।

गृहमंत्री ने पूर्वोत्तर भारत के राज्यों की चिंताओं का निराकरण करते हुए कहा कि वर्तमान विधेयक के प्रावधानों का उनके उपर कोई असर नही पड़ेगा। अरुणांचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम,त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर में बाहरी लोगों के प्रवेश और निवास के संबंध में  कायम मौजूदा व्यवस्था बरकरार रहेगी।

शाह ने घोषणा की कि पहली बार मणिपुर में पूर्वोत्तर के कुछ अन्य राज्यों की तरह ‘इनर लाइन परमिट’ व्यवस्था लागू की जा रही है। इससे मणिपुर घाटी के लोगों की वर्षों से चली आ रही पुरानी मांग पूरी होगी। ‘इनर लाइन परमिट’ के तहत बाहरी लोगों के प्रवेश और निवास को नियंत्रित किया गया है।

शाह ने कहा कि दुनिया का हर देश शरणार्थी और घुसपैठिए में अंतर करता है । कोई भी देश विदेशी व्यक्ति को मनमाने तरीके से देश में प्रवेश की अनुमति नही देता। हर देश ने नागरिकता के संबंध में कानूनी प्रावधान किए हैं। उन्होंने धर्म के आधार पर भेदभाव किए जाने के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है और यहां किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नही किया जाता।

गृहमंत्री ने कांग्रेस सहित विपक्षी सदस्यों को चुनौती दी कि यदि वे यह साबित कर दें कि यह विधेयक किसी धर्म विशेष  के साथ अन्याय करता है तो वह इस विधेयक को वापस ले लेंगे। उन्होने विपक्षी सदस्यों के इस कथन का भी खंडन किया कि संसद नागरिकता के संबंध में  ऐसा कानून बनाने के लिए सक्षम नही है।

भारत में शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने के इतिहास का जिक्र करते हुए शाह ने कहा कि 1947 में देश के विभाजन के बाद लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आए थे और हमने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया था। इनमें से बहुत से लोगों ने राजनीति सहित समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्थान बनाया। इस संबंध में उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आड़वाणी का उल्लेख करते हुए कहाकि शरणार्थी के रुप में भारत आए ये लोग कालांतर में देश के प्रधानमंत्री और उप-प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने कहा कि बंगाली शरणार्थियों के लिए दंडकारण्य योजना, 1971 में बांग्लादेश संकट और अफ्रीकी देश युगांडा से भारतीयों के निष्कासन के घटनाक्रम से प्रभावित लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई।

उन्होंने विपक्ष से आग्रह किया कि वह धार्मिक उत्पीड़न का शिकार लोगों को भारत की नागरिकता दिए जाने के राहत संबंधी कदम का विरोध नहीं करें।

शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने 31 दिंसबर 2014 को भारतीय नागरिकता कानून 1955 में संशोधन कर भारत आए लोगों के प्रवेश और निवास को कानूनी स्वरुप प्रदान किया था। अब नए विधेयक के जरिए उन्हें भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए सक्षम बनाया गया है।

भारत आए शरणार्थियों को धीरज बंधाते हुए शाह ने कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार से भयभीत होने की जरुरत नही है। वे किसी भी तारीख को भारत आए हों, उनके पास राशन कार्ड हो या न हो, वे नागरिकता हासिल करने की योग्यता रखते हैं। उनकी संपत्ति, आवास और नौकरी पूरी तरह सुरक्षित है। भारतीय नागरिकता कानून के दंडात्मक प्रावधानों से उनकी सुरक्षा की गई है।

गृहमंत्री ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक तैयार करते समय कांग्रेस सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक संस्थाओं के साथ व्यापक विचार विमर्श किया। इस विचार विमर्श में उन्होंने 119 घंटे तक चर्चा की। विभिन्न पक्षों की ओर से मिले सुझावों को वर्तमान विधेयक में शामिल किया गया।

शाह ने देशवासियों विशेषकर पूर्वोत्तर भारत के लोगों से कहा कि उन्हें चिंता करने और आंदोलन करने की कोई जरुरत नही है। देश अब शांति के रास्ते पर चल पड़ा है।

विधेयक के बारे में असम के लोगों को आश्वस्त करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि राज्य की स्वायत्त विकास परिषद और जनजातीय समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। उन्होने कहा कि वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आंदोलनकारियों के साथ असम समझौता किया था लेकिन उसे लागू करने के लिए कोई कदम नही उठाया गया। राज्य में दशकों तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन असम समझौते को नजरअंदाज किया गया।

 


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