पूर्वी लद्दाख में एलएसी के करीब चीन बना रहा अपने सैनिकों के आवास

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सीमावर्ती गांवों के लोगों को दे रहा है मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग

 चीन ने लंबी तैनाती के इरादे जमीन पर उतारने शुरू कर दिए



नई दिल्ली, 13 जुलाई (हि.स.)। चीन अपने सीमावर्ती गांवों में डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में जुटा है। इस बार चीन एलएसी के करीब गांवों में रहने वाले लोगों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग और अन्य अन-आर्म्ड लड़ाई के गुर भी सिखा रहा है। चीनी स्थायी ढांचों के निर्माण में सैनिकों के लिए आवास भी शामिल हैं। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ चीन ने लंबी तैनाती के इरादे जमीन पर उतारने शुरू कर दिए हैं क्योंकि चीनी सेना उन क्षेत्रों में स्थायी ढांचे बना रही है, जहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जवान तैनात हैं। भारतीय वायु सेना प्रमुख ने भी इस बात की पुष्टि की है कि चीनी अपने हवाई बुनियादी ढांचे में सुधार कर रहे हैं।

चीन एलएसी पर भारत की सीमा के करीब स्थित 600 गांवों को बसाकर उन्हें मजबूत बनाने में जुटा हुआ है। उन गांवों में आधुनिक सुविधाएं दी जा रही हैं और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अपनी डिफेंस पोस्ट, डिफेंस टॉवर भी मजबूत कर रही है। चीन इन गांवों को 2021 के अंत तक तिब्बत के अन्य शहरों से हाईवे के जरिए जोड़ने की योजना पर भी काम कर रहा है। चीन इस तरीके से सरहद के नजदीक स्थित गांवों में अपनी रणनीतिक पोजिशन को मजबूत करने के लिए डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है। चीन ने 2017 में डोकलाम के बाद तिब्बत से जुड़े बॉर्डर के इलाके में ‘बॉर्डर डिफेंस विलेज’ बनाने की शुरुआत की थी। चीन का मकसद अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब गांव बसाने के पीछे तिब्बत और बाकी दुनिया के बीच एक ऐसा ‘सुरक्षा बैरियर’ बनाना है। उसे वह अभेद्य किले की शक्ल देना चाहता है।

चीन ने पठारी संचालन क्षमताओं के साथ एक मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) विकसित किया है, जिसे कैलाश पर्वत श्रृंखला में भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात करने की योजना बनाई है। चीन ने एलएसी के तीन क्षेत्रों पश्चिमी (लद्दाख), मध्य (उत्तराखंड, हिमाचल) और पूर्वी (सिक्किम, अरुणाचल) में सैनिकों, तोपखाने और अन्य युद्धक सामग्री को भी बढ़ाया है। पीएलए ने उच्च ऊंचाई पर तैनात अपने सैनिकों को बदलने के बाद नए बुनियादी ढांचे और अस्पतालों का भी निर्माण किया है। गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प के एक साल बाद चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ गहरे इलाकों में अतिरिक्त आवास बनाए, जिससे लगता है कि वह भारत के साथ लंबी दौड़ की तैयारी कर रहा है।

पीएलए ने रुडोक, कांग्शीवार, ग्यांटसे और गोलमुड क्षेत्रों में स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के अतिरिक्त आवास बनाए हैं। पीएलए के फील्ड अस्पतालों का निर्माण करने और अतिरिक्त स्नो मोबिलिटी वाहनों की खरीदने से यह भी संकेत मिलता है कि वे लंबे समय तक और स्थायी शीतकालीन कब्जे की तैयारी कर रहे हैं। खुफिया जानकारी के मुताबिक पैन्गोंग झील इलाके में चीनी सैनिकों को बदला गया है। चीन सेना की चौथी और छठी डिवीजनों को फरवरी में पैंगोंग झील के दोनों किनारों से रुतोग काउंटी में वापस ले लिया गया था लेकिन अब वहां 8वीं और 11वीं डिवीजन के सैनिकों को तैनात किया गया है। प्रत्येक डिवीजन में दो मोबाइल पैदल सेना रेजिमेंट, एक बख्तरबंद रेजिमेंट, एक आर्टिलरी रेजिमेंट और एक वायु रक्षा रेजिमेंट है।

मई, 2020 की शुरुआत में गतिरोध शुरू होने के बाद से भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में विघटन और तनाव को कम करने के लिए अब तक 11 दौर की सैन्य वार्ता की है। रक्षा अधिकारियों ने कहा कि अगले दौर की बातचीत कब होगी, इस पर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। दोनों पक्षों ने पैन्गोंग झील के दक्षिण तट पर कैलाश पर्वतमाला की उन ऊंचाइयों को भी खाली कर दिया है, जहां अगस्त के अंत में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) ने ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ चलाया था जिसके बाद भारतीय सेना दशकों बाद एक लाभप्रद स्थिति में थी। हालांकि गोगरा और हॉटस्प्रिंग्स के साथ-साथ डेमचोक और रणनीतिक डेप्सांग घाटी में विस्थापन प्रक्रिया के लिए बातचीत में कोई प्रगति नहीं हुई है। पैन्गोंग झील से दोनों सेनाओं के पीछे हटने के बाद से जमीनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है लेकिन स्थिति शांत है।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में कहा था कि शांतिकाल के दौरान सभी सेनाएं प्रशिक्षण गतिविधियों को अंजाम देती हैं और परिचालन तैयारियों को बनाए रखने के लिए इस तरह के अभ्यास जरूरी हैं। वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल ही में कहा था कि एलएसी के साथ विघटन की प्रक्रिया अधूरी बनी हुई है। पूरी तरह विस्थापन होने और सीमा पर सेनाओं की संख्या कम होने के बाद ही एलएसी के सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति हो सकती है। सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने भी हाल ही में कहा था कि भारत चीन के साथ ‘दृढ़ और गैर-एस्केलेटरी’ तरीके से व्यवहार कर रहा है और आने वाले दौर की बातचीत अप्रैल, 2020 की यथास्थिति की बहाली पर केंद्रित होगी। एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने भी जुलाई के पहले सप्ताह में माना है कि चीन ने सीमा के करीब अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत और अपने हवाई संचालन की दक्षता में सुधार किया है।

रक्षा विश्लेषक मेजर-जनरल (सेवानिवृत्त) एसबी अस्थाना इसे चीन की ‘वृद्धिशील अतिक्रमण रणनीति’ का एक हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि चीन अपनी विस्तारवादी रणनीति के तहत बुनियादी विकास करके और एलएसी की अपनी धारणा को लागू करने की कोशिश कर रहा है। वह सीमा के करीब गांव बसाने और स्थायी संरचना बनाने की कोशिश इसलिए कर रहा है ताकि एक अवधि में उसका दावा मजबूत हो सके। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें भी एलएसी की अपनी धारणा के साथ अपने बुनियादी ढांचे में सुधार करना चाहिए और स्थायी संरचनाएं भी बनानी चाहिए। यहां तक कि गांवों को बसाना चाहिए ताकि चीनी अपने ‘गेम प्लान’ में सफल न हो सकें।


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