लखनऊ, 11 जून (हि.स.)। कली थी चमन की मैं, उड़ना चाहती थी आकाश में। धन नहीं था परिजनों के पास, समाज ने उड़ा दिया हमें परिहास में।। कुछ ऐसी ही कहानी है गाजीपुर जिले के 10 वर्षीय रोमी की, जिसने बालपन में ही पिता को खो दिया। दो भाइयों में सबसे बड़ी रोमी ने अभी स्कूल जाना शुरू ही किया था की उसके पिता गुजर गये। मां मजदूरी करने को विवश हो गयी। अब रोमी भी स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर उसके साथ हाथ बटाती है। यह कहानी सिर्फ रोमी की ही नहीं है। भारत में तमाम कानून और कर्तव्य की व्याख्या के बावजूद इस तरह के बच्चे 25 लाख से ज्यादा हैं, जिनकी बचपन में ही जवानी समाप्त हो जाती है। सपने काफूर हो जाते हैं और जिंदगी दुकानों के वर्तनों को धोने व अन्य मजदूरी के कामों में चली जाती है। 12 जून को सरकार व स्वयं सेवी संस्थाएं विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाती हैं और फिर अपनी दिनचर्या में सब लग जाते हैं। समाज सेवियों की मानें तो बाल श्रम रोकने के लिए कानून से ज्यादा लोगों में जागरुकता लाने की जरूरत है।
बाल मजदूर और उनके एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने, काम कराने की बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इलाहाबाद के जंक्शन रेलवे स्टेशन पर प्रतिमाह 40 बच्चों के पकड़े जाने एवरेज है, जिन्हें किसी एजेंट द्वारा बाहर भेजा जा रहा होता है अथवा बच्चे घर से भाग कर जा रहे होते हैं अथवा वे किसी की संगति में फंसकर भिक्षावृत्ति में पड़ जाते हैं। रेलवे स्टेशन पर डायल 1098 का संचालन कर रहे समाजसेवी अजित सिंह का कहना है कि बड़े घरों में लोग बच्चों को शिक्षा पर तो अच्छा धन व्यय करते हैं लेकिन इस आपाधापी में बच्चों से प्यार करना भूल जाते हैं। उन पर समय न देने के कारण बच्चे संस्कार विहिन होते जा रहे हैं। स्टेशन पर ऐसे बच्चों के भागने की संख्या ज्यादा देखने को मिल रही है।
अपर श्रमायुक्त बीके राय का कहना है कि बाल श्रम को रोकने के लिए भारत में तमाम कानून बन चुके हैं। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। कानून और शासन-प्रशासन की सक्रियता के कारण ही भारत में जहां 2001 में सवा करोड़ बाल श्रमिकों की संख्या थी, वहां 2011 की जनगणना में लाखों में आकर सिमट गयी। आने वाले समय में जल्द ही भारत इससे बाल श्रम के अभिशाप से मुक्त हो जाएगा। इसके लिए जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है। लोगों में जागरुकता बढ़ रही है।