छठ का त्योहार सामाजिक अर्थव्यवस्था का भी है आधार
बेगूसराय, 09 नवंबर (हि.स.)।सूर्योपासना, आस्था, विश्वास, सुचिता और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक का महापर्व छठ सिर्फ पर्व नहीं, सामाजिक सरोकार और अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार भी है।
इस महापर्व में शहर के बड़े उद्योगपतियों से लेकर समाज के अंतिम पायदान तक बैठे लोगों के अर्थ उपार्जन का अर्थशास्त्र पौराणिक काल में ही समाहित कर दिया गया था। चार दिवसीय इस महापर्व के दौरान बेगूसराय में 50 करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है, जिसमें कम से कम 15 से 20 करोड़ रुपया गांव में पहुंचा, यह गांव की अर्थव्यवस्था को संपन्न बनाने के लिए एक बड़ी बात है।
पर्व के दौरान प्रसाद बनाने के लिए बड़े-बड़े उद्योगपतियों द्वारा तैयार किए गए ब्रांड का रिफाइंड और चीनी चाहिए तो उससे भी जरूरी है, छठी मैया को प्रसाद चढ़ाने के लिए समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठे मलिक समुदाय द्वारा तैयार किए गए बांस के सूप का। लोग डिजिटल हो गए हैं, विभिन्न डिजाइन के पीतल और चांदी के सूप बाजार से निकलकर गांव तक पहुंच गए हैं। लेकिन इसके बावजूद बांस के सूप का जो क्रेज पौराणिक काल में था, वह आज भी कायम है।
मलिक समुदाय के लोग दो महीना पहले से ही छठ के लिए सूप बनाना शुरु कर देते हैं। दुर्गा पूजा से सूप की बिक्री शुरू हो जाती है, लेकिन नहाय-खाय और खरना के दिन इसकी रिकार्ड बिक्री होती है। आज जब खरना को लेकर सुबह से ही बाजार में भी भीड़ लगी है तो बांस का सूप बनाने का सिलसिला जारी है।
इससे हजारों परिवार को रोजगार मिल रहा है तो बांस के सूप को मिथिला पेंटिंग से रंगकर बेगूसराय की एक युवती अंजली आत्मनिर्भर बनने का बेजोड़ प्रयास कर रही है। अंजली ने सूप पर मिथिला पेंटिंग के डिजाइन में भगवान भास्कर का रंग-बिरंगा चित्र बना दिया गया है तो यह लोगों के आकर्षण का केंद्र है और खूब बिक्री भी हो रही है।
छठ में अगर अन्य ग्रामीण आर्थिक विकास की बात करें तो छोटे किसानों द्वारा उगाया जाने वाला सुथनी, ओल और हल्दी, चौरसिया समाज का पान, मुस्लिम लोगों द्वारा तैयार किया जाने वाला बद्धी, हलवाई के यहां का बताशा, किसानों के आजीविका का श्रोत दूध, गन्ना, स्थानीय उत्पादित फल तथा माली के यहां का फूल इस महापर्व का प्रमुख अवयव है। समाज के विभिन्न वर्गों के लोग पूरे साथ छठ में अपने सामान बेचने की योजना बनाते रहते हैं। वैसे भी बिहार का यह महापर्व दुनिया को संदेश देता है।
दुनिया भर में सभी लोग उगते हुए सूर्य की पूजा करते हैं। लेकिन बिहार से शुरू इस लोक पर्व की परंपरा में उगते हुए सूर्य से पहले डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का मतलब कहीं ना कहीं, समाज के निचले पायदान पर बैठे लोगों को आगे बढ़ने का संदेश भी है। फिलहाल हर ओर छठ का उमंग है, बाजार में भीड़ उमड़ी पड़ी है, गांव समृद्ध हो रहे हैं, खरना का प्रसाद बनाने के लिए गंगा घाटों पर जनसैलाब जुटा हुआ है।