अनजाने में लिखी चंद्रबाबू की पटकथा को उनके चार सांसदों ने दिया मुकाम

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टीडीपी में टूट की इस घटना की पटकथा वर्ष 2018 मार्च माह के शुरुआती दिनों में ही तैयार हो गई थी, जब संसद के बजट सत्र के दौरान भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से उन्होंने नाता तोड़ भाजपा को अलविदा कह दिया था।



नई दिल्ली, 21 जून (हि.स.)। लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त और आंध्र प्रदेश की सत्ता से बेदखल होने के बाद तेलूगू देशम पार्टी (टीडीपी) और उसके मुखिया एन. चंद्रबाबू नायडू के लिए यह एक और बुरी खबर है कि उनके अपने ही साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पाले में जा खड़े हुए हैं। राज्यसभा में छह सांसदों वाली टीडीपी अब दो की संख्या पर सिमट गई है और उसके चार सांसदों (टीजी वेंकटेश, वाईएस चौधरी, सीएम रमेश और जीएम राव ने) ने गुरुवार को अलग गुट बनाकर भाजपा में विलय कर लिया है। ये ऐसे वक्त में हुआ है जब नायडू विदेश  सपरिवार छुट्टियां मना रहे हैं। हालांकि, उनका कहना है कि इस टूट से उनकी पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला, किंतु यह तो साफ है कि उनके चार सांसदों के इस कदम से उनकी छुट्टियों में खलल तो पड़ा ही है।

टीडीपी में टूट की इस घटना की पटकथा वर्ष 2018 मार्च माह के शुरुआती दिनों में ही तैयार हो गई थी, जब संसद के बजट सत्र के दौरान भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से उन्होंने नाता तोड़ भाजपा को अलविदा कह दिया था। जाने-अनजाने में खुद नायडू ने ही इस इबारत को लिखा था और भाजपा नेतृत्व ने इसे पढ़-समझ पटकथा को अंतिम मुकाम पर पहुंचा दिया।

मार्च 2018 के पहले सप्ताह में टीडीपी ने राजग और मोदी मंत्रिमंडल से अलग होने का ऐलान कर दिया। उस वक्त सरकार का हिस्सा होने के बावजूद टीडीपी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज की मांग को लेकर संसद में लगातार विरोध प्रदर्शन कर रही थी। हालांकि, उस वक्त टीडीपी के अलावा जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस भी इसी मुद्दे को लेकर सदन की कार्यवाही में अवरोध उत्पन्न कर रही थी। राज्य में चुनाव की आहट देख चंद्रबाबू नायडू ने जगन मोहन रेड्डी को पीछे छोड़ने की चाह में उन सारी हदों को तोड़ दिया जो गठबंधन धर्म में बांधे रखती हैं। इतना ही नहीं सूत्र बताते हैं कि नायडू ने अलग होने का फैसला अपने सांसदों को पूर्ण विश्वास में लिए बगैर किया था, जिससे पार्टी  में अंदरखाने असंतोष का बीज पड़ गया था जिसकी परिणति चार सांसदों के भाजपा में विलय के रूप में सामने आई है।

राजग से नाता तोड़ने के बाद नायडू भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगातार हमलावर रहे और उन पर वादाखिलाफी का आरोप लगा निशाना साधते रहे। बात यहीं तक न रही और वह आगे बढ़ देश की राजनीति में नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रुप में खुद को पेश करने की असफल कोशिश में जुटे रहे।

आलम यह रहा कि लोकसभा चुनाव के साथ ही आंध्र में विधानसभा चुनाव हुए और राज्य की 25 में से टीडीपी को मात्र तीन सीटों पर सिमट कर रह जाना पड़ा और वाईएसआर कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 22 लोकसभा सीटों पर परचम लहराने के साथ ही चंद्रबाबू को राज्य की सत्ता से भी बेदखल कर दिया। एक वक्त राजग के कुनबे का हिस्सा रहने वाले नायडू उससे अब और दूर हो गए हैं और वाईएसआर कांग्रेस आज की तारीख में गठबंधन का हिस्सा तो नहीं, पर फौरी तौर पर मोदी के गुडलिस्ट में जरूर जुड़ गई है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आने वाले दिनों में नायडू को कुछ और सियासी झटके लगने के आसार नजर आ रहे हैं। टीडीपी के राज्यसभा में छह सदस्य थे और दलबदल विरोधी कानून के मुतबिक किसी दल से अलग हुए नए गुट को तभी मान्यता मिलती है, जब उसकी कुल संख्या के दो तिहाई सदस्य नए गुट में शामिल हों। ऐसे में चार सांसदों के भाजपा में विलय पूरी तरह कानून सम्मत है। राज्यसभा की कुल सदस्य संख्या 245 है । उच्च सदन में बहुमत के संकट से जूझ रही भाजपा को चार सदस्यों का समर्थन मिलने से उच्च सदन में तनिक राहत जरुर मिली है। उच्च सदन में सर्वाधिक 71 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है। चार नए सदस्यों के शामिल होने के साथ ही उसकी संख्या अब 75 हो गई है।


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