नीलकंठ सिंह मुंडा के समक्ष किला बचाने की चुनौती

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मुंडा 2000 से लगातार विरोधियों को पटखनी देते आये हैं, चाहे निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस का उम्मीदवार हो या झामुमो का।



खूंटी (झारखण्ड )19 दिसंबर(हि स)। पिछले बीस साल से खूंटी की राजनीति के केंद्र बिंदू बने भाजपा के कद्दवार नेता और सूबे के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा एक बार फिर खूंटी(सु) सीट से चुनावी समर में उतरे हैं। भाजपा ने नीलकंठ सिंह मुंडा पर भरोसा जताते हुए पांचवीं बार उन्हें मैदान में उतारा है। उनके समक्ष अपना किला बचाने की चुनौती है।
 मुंडा 2000 से लगातार विरोधियों को पटखनी देते आये हैं, चाहे निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस का उम्मीदवार हो या झामुमो का। राजनीति की शुरूआत से लेकर उन्होंने विधानसभा चुनाव में कभी हार का मुंह नहीं देखा।  2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा ने कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा को पराजित किया था। झारखंड गठन के बाद पहली बार हुए 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा ने सुषीला केरकेट्टा के बेटे कांग्रेस प्रत्याषी रोषन सुरीन को और 2009 में झामुमो के मसीह चरण पूर्ति को परजित किया था। उस समय पूर्ति महज 436 वोटों से चुनाव हार गये थे। 2019 के चुनाव में मसीह चरण पूर्ति निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खूंटी से ही किस्मत आजमा रहे हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में नीलकंठ ने झामुमो के जीदन होरो को 10 हजार से अधिक मतों से मात दी थी। इस चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा के खिलाफ दलीय और निर्दलीय 17 चुनावी योद्धा ताल ठोंक रहे हैं। झामुमो ने खादी बोर्ड के सेवानिवृत्त अधिकारी सुशील कुमार लांग उर्फ सुशील पाहन को मैदान में उतारा है। वहीं झाविमो की दयामनी बारला, भारतीय ट्राइबल पार्टी की मीनाक्षी मुंडा, बहुजन समाज पार्टी के  सोमा कैथा, निर्दलीय मसीह चरण मुंडा, राष्ट्रीय सेंगेल पार्टी की सिविल कंडुलना, झारखंड पार्टी के सोमा मुंडा, अखिल भारतीय जनता पार्टी के विलसन पूर्ति, जनता दल यू के श्याम सुंदर कच्छप, निर्दलीय दामू मंुडा, राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी के बिनसाय मुंडा, निर्दलीय पास्टर संजय कुमार तिर्की, एपीआई पार्टी के कल्याण नाग, झारखंड पार्टी के राम सूर्या मुंडा,  निर्दलीय पंकज पूर्ति, निर्दलीय अजय टोप्पो और निर्दलीय जैतून टूटी भी विधानसभा पहुंचने की आस में जोर आजमाईष कर रहे हैं। क्षेत्र की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीलकंठ सिंह मुंडा के कद-काठी का उम्मीदवार झामुमो या अन्य दलों ने नहीं दिया है।
उल्लेखनीय है कि झामुमो प्रत्याशी को कांग्रेस और राजद का भी समर्थन प्राप्त है। इसके बावजूद कहा जा रहा है कि झामुमो ने नीलकंठ सिंह मुंडा के पक्ष में दमदार उम्मीदवार नहीं दिया। झामुमो कार्यकर्ता भी सुशील पाहन को प्रत्याशी बनाने पर आश्चर्यचकित हैं। वहीं झाविमो ने दयामनी बारला को मैदान में उतारा है। बारला इसके पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अन्य दलों से भाग्य आजमा चुकी हैं, पर कभी वह  जमानत तक नहीं बचा सकीं।  खूंटी विधानसभा की राजनीति पिछले पचास वर्षों से भाजपा, कांग्रेस और झामुमो के इर्द-गिर्द घूमती रही है। पचास साल में अन्य किसी भी दल ने यहां से अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज नहीं करायी है। बीस साल से तो भाजपा का एकछत्र राज्य रहा है।
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कड़िया मुंडा ने दिया जीत का आशीर्वाद
खूंटी: भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद कड़िया मुंडा और नीलकंठ सिंह मुंडा के बीच मनमुटाव की खबरें यदा-कदा मीडिया में सुर्खियां बनती रही हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नीलकंठ सिंह मुंडा पर अपने भाई और कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में परोक्ष रूप  से काम करने के आरोप लगे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा की उम्मीदवारी के दौरान भी इस तरह की बातें सामने आयी थीं, पर पद्भूषण से अलंकृत पूर्व सांसद कड़िया मुंडा ने इन मतभेदों पर विराम लगाते हुए नीलकंठ सिंह मुंडा सहित अन्य सभी भाजपा प्रत्याषियों को जीत का आषीर्वाद भी दे दिया। दोनों नेता एक साथ एक वैवाहिक समारोह में शामिल भी हुए। जानकार कहते हैं कि कड़िया मुंडा ने सभी अफवाहों पर विराम लगा दिया। इसका लाभ नीलकंठ सिंह मुंडा को आसन्न विधानसभा चुनाव में मिल सकता है।

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