नई दिल्ली, 26 नवम्बर (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध के मामले पर सुनवाई के दौरान मंगलवार सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जो लोक लोगों के लिए समस्या पैदा कर रहे हैं उन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाए। मेहता ने कहा कि उन लोगों को अलग करना कठिन है जिन्हें सुरक्षा देनी है, इसलिए सबके लिए प्रतिबंधों का सामान्य आदेश जारी किया गया। वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान की धारा-19 अधिकारों के संतुलन के लिए है। यही वजह है कि हम पूछ रहे हैं कि लैंडलाइन क्यों बंद किए गए और बच्चे स्कूल क्यों नहीं गए।
सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने बाबूलाल पराते के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि क्षेत्र में अपराध रोकने और शांति बहालली के लिए प्रतिबंध लगाना जरूरी था । उन्होंने कहा कि एहतियात के तौर पर प्रतिबंध लगाए गए थे। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों के नेताओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। मेहता ने मेहबूबा मुफ्ती, फारुक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद और दूसरे नेताओं का 370 और 35ए हटाने पर ट्वीट और बयान कोर्ट को दिखाए। उन्होंने कहा कि इन नेताओं के बयान भड़काऊ थे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के जरिये भड़काने की कोशिश की गई। मेहता ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून व्यवस्था का मसला नहीं है बल्कि एक नीति है जो कार्यपालिका पर नहीं छोड़ा जा सकता है।
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्र सरकार कह रही है कि बोर्ड परीक्षा के समय 98 फीसदी छात्र परीक्षा में शामिल हुए। लेकिन छात्रों के पास दूसरा क्या विकल्प था, उनका एक साल बर्बाद हो जाता। इंटरनेट के जरिये काफी लोग अपना व्यवसाय करते हैं लेकिन इंटरनेट बंद कर दिया गया। इंटरनेट केवल सोशल मीडिया नहीं है। आप कुछ खास वेबसाईट को बंद कर सकते थे , पूरा सोशल मीडिया बंद कर सकते थे, लेकिन दूसरी चीजों को बंद नहीं करना चाहिए था। सिब्बल ने अखबारों की खबरों का हवाला दिया जिसमें कहा गया कि स्थानीय व्यापारी और किसानों को काफी नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि ऐसा कानून नहीं होना चाहिए जिससे 7 मिलियन लोगों को बर्बादी झेलनी पड़े।
पिछले 21 नवम्बर को केंद्र सरकार ने कहा था कि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। इस लिहाज़ से प्रतिबंध लगाए गए। मेहता ने 1990 के बाद जम्मू-कश्मीर में हिंसक घटनाओं का हवाला देकर ये साबित करने की कोशिश की थी कि धारा 370 पर अंतिम निर्णय लेना ज़रूरी हो गया था। उन्होंने कहा था कि राज्य में कुछ प्रतिबंध सिर्फ इसलिए लगाए गए ताकि लोगों की ज़िंदगी और सम्पति की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। अब इंटरनेट के अलावा सब सामान्य है । तुषार मेहता ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के लोगों से अधिकार छीने नहीं गए, बल्कि 70 सालों में पहली बार उन्हें अधिकार मिले हैं। लोगों के हित में 106 क़ानून लागू हुए हैं। अब समाज के सभी तबकों को शिक्षा, रोज़गार, सम्पति का हक़ मिल सकेगा। राज्य से बाहर शादी करने वाली महिलाओं के हित सुरक्षित रहेंगे।
मेहता ने कहा था कि अब जम्मू-कश्मीर में पॉक्सो, बाल विवाह, घरेलू हिंसा के खिलाफ क़ानून लागू हो सकेंगे। पंचायतो को सीधे फंडिग मिल पाएगी। वो विकास के बारे में फैसला ले सकेंगे। लंबे समय से वहां पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा था कि धारा 370 को बेअसर करने का फैसला ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करेगा।
पिछले 7 नवम्बर को कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद की ओर से कपिल सिब्बल ने दलीलें रखते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के पहले 4 अगस्त को राज्य भर में धारा 144 लगाई गई थी। संविधान के मुताबिक 5 अगस्त से पहले जो कानून लागू था उसके तहत आंतरिक गड़बड़ियों के आधार पर धारा 352 के तहत आपातकालीन प्रावधान थे। इसलिए अगर सरकार को लगता है कि प्रतिबंध लगाना जरुरी था तो यह धारा 352 के तहत घोषित किया जा सकता था। 352 के तहत लगाए गए प्रतिबंध की संसद समय-समय पर समीक्षा कर उसे हटा सकती है या रहने दे सकती है।