नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (हि.स.)। कारोबारी संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के साथ ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन और फ्लिपकार्ट की शुक्रवार को बैठक बेनतीजा रही। दरअसल कैट की शिकायत के बाद केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के निर्देश पर वाणिज्य मंत्रालय के डीपीआईआईटी के अतिरिक्त सचिव शैलेंद्र सिंह की अध्यक्षता में मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ आयोजित बैठक में कोई ठोस हल नहीं निकला।
इस बैठक में कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल, फ्लिपकार्ट के सीओओ रजनीश कुमार और अमेजन के उपाध्यक्ष गोपाल पिल्लई ने किया। दरअसल यह बैठक कैट की ओर से वाणिज्य मंत्री को दी गई शिकायत के बाद आयोजित की गई थी, जिसमें कैट ने पीयूष गोयल से मिलकर इन ई-कॉमर्स कंपनियों के द्वारा भारत सरकार की एफडीआई नीति का उल्लंघन करने और अपने वेब पोर्टल पर बेचे जाने वाले समानों पर अनैतिक व्यवसायिक प्रथाओं को अपनाते हुए लागत से भी कम मूल्य पर समान बेचने और ज्यादा छूट देने संबंधित शिकायत की थी और सबूत रखे थे।
बैठक के बाद खंडेलवाल ने बताया कि दोनों ई-कॉमर्स कंपनियों ने सभी आरोपों का खंडन किया और कहा कि वे पूरी तरह एफडीआई नीति का पालन करते हैं। वहीं, भारी छूट पर कहा कि वे ये छूट नहीं दे रहे हैं और यह ब्रांड हैं जो छूट प्रदान करते हैं। इन दोनों कंपनियों ने कैट के आरोप को सिरे से खारिज किया।
खंडेलवाल ने बैठक की निराशाजनक परिणाम को देखते हुए बताया कि इस पूरे मामले को एक बार फिर पीयूष गोयल के पास कैट रखेगा और अमेजन और फ्लिपकार्ट दोनों के बिजनेस मॉडल की जॉच की मांग करेगा। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर ब्रांडों को उनकी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कैट प्रतिस्पर्धा आयोग ऑफ इंडिया या कोर्ट से भी संपर्क करेगा। साथ ही कैट जल्द ही दिल्ली में एक सम्मेलन आयोजित करेगा और सभी ब्रांडों से अपना-अपना रुख स्पष्ट करने को भी कहेगा। उन्होंने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि कौन छूट दे रहा है, इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए और यदि ब्रांड इतनी भारी छूट दे रहे हैं, तो ऑफलाइन व्यापारी उन ब्रांडों का सीधे तौर पर बहिष्कार करेंगे और देशभर में उनके उत्पाद को नहीं बेचेंगे।
खंडेलवाल ने कहा कि कैट ऑफलाइन व्यापारियों के कारोबार की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है और जरूरत पड़ने पर इन दोनों पोर्टलों के खिलाफ कार्रवाई के लिए देशव्यापी आंदोलन शुरू कर सकता है। उन्होंने कहा कि उनके लागत से भी कम मूल्य पर सामान बेचने और भारी डिस्काउंट की वजह से देश में करीब 30 हजार से अधिक मोबाइल दुकानें बंद हो गई हैं। इसके अलावा 30 फीसदी ऑफलाइन कारोबार का नुकसान हुआ है।