नागरिकता विधेयक ने संसद के शीतकालीन सत्र को बनाया ऐतिहासिक

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मोदी ने राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई तो गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इन विधेयकों को संसदीय कौशल से अंजाम तक पहुंचाया।



नई दिल्ली, 13 दिसम्बर (हि.स.)। मानसून सत्र की तरह ही संसद का शीतकालीन सत्र भी ऐतिहासिक सिद्ध हुआ। मानसून सत्र में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाया गया तो शीतकालीन सत्र में 70 वर्ष पहले हुए देश के विभाजन का दंश सह रहे लाखों शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन विधेयक के रूप में न्याय मिला।

विधायी कामकाज के लिहाज से इन विधेयकों का पारित होकर कानून बनना देश के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। इस उपलब्धि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन सटीक सिद्ध होता है कि जिन साहसिक फैसलों के बारे में कोई सोचता भी नहीं था उन्हें सरकार ने हकीकत में बदला है।

मोदी ने राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई तो गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इन विधेयकों को संसदीय कौशल से अंजाम तक पहुंचाया। शाह ने विधेयकों के विरोध में विरोधियों के तर्कों को तार-तार कर दिया।

नागरिकता संशोधन विधेयक और अनुच्छेद-370 हटाने सम्बन्धी विधेयक में एक समानता यह है कि दोनों की पृष्ठभूमि 1947 में देश के विभाजन से जुड़ी है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और बाद की कांग्रेसी सरकारों ने अनुच्छेद-370 के अस्थाई प्रावधान को समाप्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जबकि यह स्पष्ट था कि इससे राज्य देश की मुख्यधारा में जुड़ने के बजाय पृथकतावाद की ओर मुड़ रहा है। इसी तरह विभाजन के बाद के वर्षों में पड़ोसी इस्लामी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न सह रहे हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों की कोई चिंता नहीं की गयी। नागरिकता संशोधन विधेयक इन अभागे शरणार्थियों को नए सुरक्षित और सुखद जीवन का सन्देश देता है। वे अब भारत के नागरिक बन सकेंगे, जो उनका हक़ भी है।

नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद का कारण बने विधेयक और नागरिकता संशोधन विधेयक को देश-विदेश में भारी विरोध के बावजूद पारित कराने में सफलता हासिल की। राज्यसभा में बहुमत के लिए अभी तक मशक़्क़त कर रही मोदी सरकार ने राजनीतिक सूझ-बूझ से विपक्ष के खेमे वाले दलों का समर्थन हासिल किया।

विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने दोनों अवसरों पर मोदी सरकार के प्रयासों को विफल करने की पूरी कोशिश की। विशेषकर नागरिकता विधेयक को लेकर अंत तक यह ऊहापोह बना रहा कि विधेयक पारित राज्यसभा में पारित हो पाएगा कि नहीं। अंतिम मत विभाजन में यह विधेयक 20 मतों के अंतर से पारित हुआ जो सरकार की संसदीय कूटनीति की सफलता को उजागर करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले महाराष्ट्र में धुर विरोधी रवैया अपनाने वाले दल शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सदस्यों ने मतदान में अनुपस्थित रह कर विधेयक के पारित होने का रास्ता साफ किया। कांग्रेस की ओर से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को सरकार के खिलाफ लामबंद करने की रणनीति धराशाई हो गयी।

राज्यसभा में मतदान के पहले पकिस्तान और अमेरिका सहित कई देशों की सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं ने यह बंदरघुड़की दी कि मोदी सरकार को अपने इस कदम के अंजाम भुगतने पड़ेंगे। सरकार ही नहीं भारतीय संसद ने भी इस हस्तक्षेप को नजरअंदाज कर दिया।

शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन विधयक के अलावा भी कई अन्य महत्वपूर्ण विधेयक भी पारित किये गए। संविधान संशोधन विधेयक के जरिये अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं में सीट आरक्षण व्यवस्था अगले दस वर्षों के लिए बढ़ा दी गयी। सामाजिक चिंता का कारण बनी इलेक्ट्रॉनिक सिगरेटों को प्रतिबन्धित किया गया तो उभयलिंगी लोगों (ट्रांसजेंडर) के हितों को सुरक्षा देने सम्बन्धी विधयक पारित किया गया।

स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) को रुतबे के लिए इस्तेमाल करने की परिपाटी को भी एक विधेयक के जरिये ख़त्म किया गया। अब केवल प्रधानमंत्री और उन के निकट परिवार जन ही एसपीजी का सुरक्षा कवच हासिल कर पाएंगे। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वडेरा एसपीजी के बजाय जेड प्लस सुरक्षा के दायरे में रहेंगे।

शीतकालीन सत्र में अनेक अवसरों पर कार्यवाही में व्यवधान आया लेकिन लोकसभा में अध्यक्ष ओम  बिरला और राज्यसभा में सभापति एम वेंकैया नायडू ने यह सुनिश्चित किया कि सदन की मर्यादा और व्यवस्था कायम रहे तथा विधायी कार्य संपन्न हो सके। राज्य सभा के लिए यह सत्र इस दृष्टि से महत्वपूर्ण था कि वह 250वें सत्र की साक्षी बनी। इस सदन ने देश की द्विसदनीय व्यवस्था में अपनी उपयोगिता सिद्ध की।


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