मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से साधक को शुभ कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है
नवरात्रि के अंतिम दिन देवी दुर्गा की नौवीं शक्ति मां सिद्धिदात्री को कोटिशः वंदन तथा सभी देशवासियों को महानवमी के पुनीत पर्व की अनंत मंगलकामनाएं।
शारदीय नवरात्र की महानवमी तिथि पर जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा उपासना की जाती है। महानवमी प्राथमिक दुर्गा पूजा अनुष्ठान का समापन दिवस है। यह मां दुर्गा की बुराई पर अंतिम विजय और विजयादशमी पर उनके प्रस्थान से पहले उनके भक्तों के बीच उनकी निरंतर उपस्थिति का जश्न मनाता है। इस दिन लोग महाआरती में भाग लेने के लिए एकत्र होते हैं, जो देवी का अपने भक्तों पर आशीर्वाद का प्रतीक है।
शास्त्रों में मां सिद्धिदात्री की महिमा का विस्तार से वर्णन है। शिव पुराण में वर्णित है कि भगवान शिव ने सिद्धि प्राप्ति हेतु मां सिद्धिदात्री की उपासना की थी। धार्मिक मत है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से साधक को शुभ कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। साथ ही साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। अत साधक श्रद्धा भाव से मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिर काल में जब सृष्टि में कुछ भी विद्यमान नहीं था। चारों तरफ केवल अंधेरा ही अंधेरा था। उस समय एक प्रकाश पुंज ब्रह्मांड में प्रकट हुआ। इस प्रकाश पुंज का विस्तार तेजी से होने लगा। इसी पुंज से एक देवी प्रकट हुईं। इसके बाद प्रकाश पुंज का विस्तारीकरण रुक गया। प्रकाश पुंज से प्रकट देवी, मां सिद्धिदात्री थीं। मां सिद्धिदात्री ने अपने तेज से को प्रकट किया। तब मां सिद्धिदात्री ने तीनों देव को सृष्टि संचालन की आज्ञा दी। तब त्रिदेव ने मां सिद्धिदात्री की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने त्रिदेव को शक्ति और सिद्धि प्रदान की।
नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे।
मां सिद्धिदात्री के कई नाम हैं। इनमें अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि शामिल हैं। मां सिद्धिदात्री के मुख मंडल पर तेजोमय आभा झलकती है। इस तेज से समस्त लोकों का कल्याण होता है। मां चार भुजा धारी हैं। मां कमल पर आसीन हैं और सिंह सवारी है। मां के एक हस्त में सुदर्शन चक्र, तो दूसरे में गदा है। तीसरे में शंख तो चौथे में कमल का पुष्प है। ममतामयी मां अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं साथ ही सभी प्रकार के सुख प्रदान करती हैं।
मां की आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। हालांकि, देखा जाए तो आज के जमाने में इतना कठोर तप कोई नहीं कर पाता है। लेकिन अगर व्यक्ति अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना करें तो मां की कृपा उस पर बनी रहती है। मां की कृपा पाने के लिए नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए। इन्हीं शुभ कथा के साथ, मातारानी आप सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की अमृतवर्षा करते हुए आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करे, ऐसी मां से कामना करता हूं।