कोलकाता, 29 नवम्बर (हि.स.)। पश्चिम बंगाल के खड़गपुर सदर, करीमपुर और कालियागंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की भले ही हार हुई लेकिन उसके वोट प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। तीनों ही सीटों पर पार्टी को पिछली बार यानी 2016 के विधानसभा चुनाव की तुलना में करीब तीन गुना अधिक वोट मिले हैं। गुरुवार शाम चुनाव आयोग की ओर से स्पष्ट किए गए मतगणना के आंकड़े से यह जानकारी मिली।
कालियागंज विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार तपन देव सिंह मात्र 2300 वोटों से जीत सके। उसके पहले पूरे दिन हुई मतगणना में भाजपा उम्मीदवार कमल चंद्र सरकार के साथ उनकी कांटे की टक्कर रही। यहां 2016 के विधानसभा चुनाव में महज 27 हजार वोट पाकर भाजपा तीसरे स्थान पर थी। हालांकि इस बार उपचुनाव में तीन गुने से भी अधिक वोट उसे मिले हैं। भाजपा उम्मीदवार कमल चंद्र सरकार को 95 हजार से अधिक लोगों ने मत दिया।
इसी तरह करीमपुर विधानसभा सीट पर भी भाजपा के मत प्रतिशत में 3 गुना से अधिक की बढ़ोतरी हुई। यहां से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार विमलेंदु सिंह रॉय ने भाजपा के जयप्रकाश मजूमदार को हराया। मजूमदार को 78 हजार से अधिक वोट मिले हैं। वर्ष 2016 के विस चुनाव में भाजपा को सिर्फ 23,302 वोट मिले थे।
हालांकि खड़गपुर सदर में कहानी थोड़ी अलग रही। यहां 2016 में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने जीत दर्ज की थी, तब उन्हें 61000 से अधिक लोगों के मद मिले थे। जबकि इस बार भाजपा उम्मीदवार को सिर्फ 52 हजार ही मत मिला।
मत प्रतिशत बढ़ना राहत की बात
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने राज्य के 42 में से 18 सीटें जीतीं थीं। इसके बाद से पार्टी के कार्यकर्ता काफी उत्साह में थे लेकिन इस उपचुनाव में तीनों सीटों पर करारी हार ने पार्टी को थोड़ी परेशानी में जरूर डाला। हालांकि पार्टी के सांगठनिक कार्यभार संभालने वाले नेताओं का दावा है कि भले ही तीनों सीटों पर हार मिली लेकिन मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है, जो दर्शाती है कि लोग भाजपा को सत्ता के विकल्प के तौर पर देखने लगे हैं। पार्टी के अन्य नेताओं ने परोक्ष तौर पर कहा कि उपचुनाव में राज्य सरकार पूरे सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करी है, इसलिए यह हार अधिक मायने नहीं रखती। 2021 के विधानसभा चुनाव में परिणाम बदल जाएंगे।
माकपा-कांग्रेस गठबंधन है हार की एक वजह
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तीनों सीटों पर हार के पीछे माकपा और कांग्रेस का एकजुट चुनाव लड़ना भी एक कारण है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटें मिलने के बाद विपक्षी वोट एकजुट हो गए, जिससे वोट बढ़ने के बाद भी भाजपा सीट नहीं जीत सकी। बानगी के तौर पर देखें तो करीमपुर सीट पर तृणमूल कांग्रेस को पिछली बार से केवल 10 हजार अधिक वोट मिले, जबकि भाजपा पिछली बार से 55 हजार अधिक वोट पाकर भी हार गई।
नहीं बटे अल्पसंख्यक वोट
इसके अलावा भाजपा की हार के पीछे एक सबसे बड़ी वजह यह रही कि राज्य में अल्पसंख्यक वोट का बंटवारा नहीं हुआ। माकपा और कांग्रेस का गठबंधन होने की वजह से भाजपा विरोधी गैर मुस्लिम वोट भी तृणमूल के खाते में चले गए और अल्पसंख्यक वोटों का इस बार भी बिखराव नहीं हुआ। कलियागंज सीट रायगंज लोकसभा क्षेत्र में आती है। 55 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाला लोकसभा क्षेत्र होने के बावजूद 2019 में भाजपा की देबश्री चौधरी जीतने में सफल रहीं। लोकसभा चुनाव में सीपीएम और कांग्रेस के बीच मुस्लिम वोट बंट गया था लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में कलियागंज सीट पर तृणमूल के जीतने के पीछे मुस्लिम वोटों का एकजुट होना बताया जा रहा है।