बक्सर, 07 जून (हि.स.)। गंगा और ठोरा नदियों के संगम पर बने बक्सर किले के आस्तित्व को बचाना अब सरकार ,जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग के लिए एक चुनौती बन गया है। राजा भोज द्वारा 10वीं शताब्दी में निर्मित इस किले का अपना एक खूबसूरत इतिहास रहा है। बक्सर के प्रथम युद्ध के दौरान चौसा के मैदान में मुग़ल सम्राट हुमायूं को परास्त कर भारत में अफगानी हुकूमत को कायम करने वाला नायक शेरशाह इसी किले में एक बारूदी विस्फोट में गम्भीर रूप से घायल हो दिल्ली जाने के क्रम में सासाराम के समीप कालकवलित हुआ था।
अगर बात बक्सर के द्वितीय युद्ध की करे तो बंगाल के नवाब मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउदौला और मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज नायक हेक्टर मुनरो से परास्त हो इसी किले में एक संधि पत्र पर करार करते हुए अंग्रेजों की आधीनता स्वीकार की थी।
10वीं सदी के उत्तरार्थ में चेरो और खरवार जन जातियों के आतंक से अपने राज्य की सीमा को सुरक्षित रखने के लिए इस किले का निर्माण भोज शासकों ने किया था। क्योंकि तत्कालीन समय में इन जन जातियों ने गंगा ठोरा और कर्मनाशा नदियों में जल दस्यु के रूप में अपनी एक अलग सत्ता काबिज की थी। इतिहास के पन्नों से इतर अगर बक्सर किले की बात कंरे तो सदियों बाद भी यह किला आज भी जिला मुख्यालय समेत साठ वर्ग किलोमीटर के दायरे को बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाए हुए है। राज्य समेत केंद्र की भी सर्वे टीम का मानना है कि किले के आस्तित्व समाप्त होने पर गंगा के बाढ़ का पानी सीधे तौर पर ठोरा नदी के साथ मिलकर 30 वर्ग किलोमीटर के दायरे को अपनी आगोश में ले लेगी। फिर जिला मुख्यालय के तानेबाने को बचाना बूते से बाहर की बात होगी। कटाव से प्रभावित किले की बात करे तो वर्ष 96 में गंगा तट से किले की दूरी एक सौ साठ फीट की थी जो आज महज साठ फीट की रह गई है।
स्थानीय लोगों की मानें तो बरसात के दिनों में गंगा और ठोरा नदियों का बढ़ा जल स्तर सीधे तौर पर किले के बाहरी आवरण को गम्भीर नुकसान पहुंचाता है।ऐसा नहीं है कि किले के संरक्षण के लिए राज्य सरकार या जिला प्रशासन व पुरातत्व विभाग आंखे मूंदे है। विभागीय सूत्रों की माने तो वर्ष 96 से अब तक दो करोड़ तीस लाख रुपये की राशी को खर्च कर किले के बाहरी आवरण की रक्षा के लिए प्रोटेक्ट वाल का निर्माण किया गया है। जो विभागीय कागजों पर ज्यादा और वास्तविक धरातल पर कम दिखाई देता है। बक्सर को पर्यटकीय क्षेत्र के रूप में विकसित करने का सपना तो सभी जन प्रतिनिधियों की ओर से दिखाया जाता है। अफ़सोस यह है कि स्थानीय लोगों के इस सपने को साकार करने का माद्दा किसी में नहीं है।
बीते विधानसभा चुनाव के दौरान बा हैशियत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजा पद्दम के राजपुर किले रजा भोज के नवरतनगढ़ किले को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर पर्यटकीय क्षेत्र में विकसित करने का भरोसा दिलाया था। शायद यह मात्र घोषणा भर थी जिसे स्थानीय जनता हकीकत मानने की भूल कर रही है। फिलहाल बक्सर किले को अगर बाढ़ जैसी विभीषिका से सुरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले कुछ वर्षों की बात है, जब बक्सर के भगौलिक परिदृश्य कुछ अलग ही होगा और बक्सर का एक ऐतिहासिक धरोहर गंगा में गर्त में होगा।