27 जून 1539 को बक्सर के ऐतिहासिक चौसा की भूमि पर अफगान शासक शेरशाह सूरी और मुग़ल बादशाह ह्मायु के बीच लडा गया युद्ध का परिणाम भले ही अफगानों के पक्ष में गया हो |भले ही पहली बार दिल्ली की सता पर अफगानी हुकुमत काबिज हुआ हो |पर इस युद्ध के मध्य घटित एक घटना ने बक्सर के सपूत को मुगलिया सल्तनत के ताज पहनने का रास्ता साफ़ कर दिया था |
बक्सर 12 जून (हि ,स ) इतिहास के गर्त में चला गया मुगलिया सल्तनत का एक नायक बक्सर की मिट्टी में जन्मा एक आम इंसान जो मुगलिया इतिहास के अभूतपूर्व वाकया को सर अंजाम देकर बगैर युद्ध व् रक्तपात के शहंशाहे मुगलिया सल्तनत के ओहदे पर काबिज हुआ |भले ही यह अवधि एक दिन की हो या सात दिनों की यह अब शोध का विषय है |पर समृति शेष में घटना इतिहास का साक्षी तो बना ही है |यहा हम बात इतिहास की नही करेंगे इससे दीगर बात उसकी होगी जो इतिहास कारो के उपेक्षा का दंश झेलते हुए आज गर्त में समाता जा रहा है |हां यह सच है कि अगर आज भी बिहार पर्यटन विभाग ,जिला प्रशासन व् पुरातत्व विभाग सचेत हो तो बक्सर का महज एक ऐतिहासिक घटना वह कूबत रखता है ,कि पूरे बक्सर को पर्यटकीय क्षेत्र का नजीर बना सके |
27 जून 1539 को बक्सर के ऐतिहासिक चौसा की भूमि पर अफगान शासक शेरशाह सूरी और मुग़ल बादशाह ह्मायु के बीच लडा गया युद्ध का परिणाम भले ही अफगानों के पक्ष में गया हो |भले ही पहली बार दिल्ली की सता पर अफगानी हुकुमत काबिज हुआ हो |पर इस युद्ध के मध्य घटित एक घटना ने बक्सर के सपूत को मुगलिया सल्तनत के ताज पहनने का रास्ता साफ़ कर दिया था |युद्ध के दौरान एक नायकनिजाम भिस्ती का जन्म हो चुका था |महज चार दिनों तक चले इस युद्ध के दौरान घटित इस घटना को जो स्थान मिलना चाहिए था |उसकी हकमारी सभी इतिहासकारों ने की है |
कौन था निजाम ? इसका संक्षेपण यह है कि 27 जून से 30 जून 1539 तक लड़े गये इस यद्ध के दौरान जब मुगल बादशाह हुमायु अति गम्भीर रूप में घायल जान बचाने हेतु गंगा की तरफ भागता है |तो गंगा के तट पर अपने मश्क में पानी भर रहा बक्तुल भिस्ती से उसकी मुलाक़ात होती है |जो हुमायु के आग्रह पर अफगान सैनिको से बचाते हुए अपने मश्क के सहारे बादशाह को गंगा नदी पार कराकर उनके प्राण की भी रक्षा करता है |घटना के महज चार साल बाद पुनः मुगलिया सत्ता पर काबिज होने के बाद इस एहशान का बदला चुकाते हुए , हुमायु इस बक्तुल भिस्ती को मुगलिया सल्तनत का ताज एक दिन के लिए पहनाता है |जहा मुगलिया इतिहास में बक्सर का नाम सदा के लिए दर्ज हो जाता है |
पाक माहे ए जस्न क्या है ?बताते चले कि बक्तुल भिस्ती का जन्म बिहार -यूपी के सीमावर्ती ईलाका बारे गाँव के भिस्ती टोला में 13 जून 1527 को हुआ था |जहा बाद्शाहियत जाने के बाद हुमायु द्वारा उन्हें निजाम पद दिया गया था |अब बक्तुल भिस्ती इतिहास में निजाम भिस्ती बन चुका था |चुकि निजाम भिस्ती के बादशाह बनने की कवायत जून माह के दौरान ही शुरू हुई थी |अतः बारे गांव के भिस्ती टोला वासी आज भी हर साल 13 जून से एक पखवारे तक अपने पुरखे भिस्ती की याद में जस्न मनाते है इस दौरान 15 दिनों में 15 किशम के पकवान खाने का रस्म अदा किया जाता है |इस क्रम में ही आज भी जून माह के दौरान बस्ती के कुछ लोग लखनऊ स्थित निजाम भिस्ती के मकबरे जिसे झुनझुना वाला मजार भी कहा जाता है |वहा जा कर चादर पोशी करते है |
क्यों याद किया जाता है बादशाह भिस्ती ?अपने एक दिन के शासन काल के दरान भिस्ती ने चमड़े का सिक्का चलाकर ,एक नई प्रचलन की शुरुआत की थी |पर हुमायु द्वारा टकशाल पर से प्रभुत्व छीन लिए जाने से इस चमड़े के सिक्के को शाही मुहर का दर्जा नही मिल पाया था |गौर तलब बात यह है कि निजाम भिस्ती को बादशाह बनाने से पूर्व एक शाही फरमान जारी कर मुगलिया सेना ,मुगलिया टकशाल और कोई भी कानून बनाने के अधिकारों से वंचित कर दिया गया था |
आज बक्सर के सहभागी जनपद रोहतास शेरशाह सूरी महोत्सव की धूम से लबरेज है |वही इस ऐतिहासिक जून माह में बक्सर की ऐतिहासिक भूमि का सूनापन बिहार पर्यटक विभाग का वह तमाचा है जिसकी गूंज न स्थानीय जन प्रत निधियो को, नहीं यहां के जिला प्रशासन को सुनाई देती है |बक्सर के प्रति इस सौतेलेपन पर सवाल तो होगा ही |