टकराव लिए जाना जाएगा यह सत्र, बजट सत्र का समापन बिहार विधानमंडल के

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पटना, 24 मार्च (हि.स.)। बिहार विधानमंडल के बजट सत्र का बुधवार को समापन हो गया। 19 फरवरी को शुरू हुए इस सत्र का समापन दुर्भाग्यपूर्ण रहा। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हुए टकराव ने बिहार की संसदीय परम्परा पर एक धब्बा लगा दिया। हालांकि, एक महीने से ज्यादा लंबे वक्त तक चले बजट सत्र के दौरान सरकार ने कई विधाई कार्य निपटाए। सरकार की तरफ से सदन में कुल 13 विधेयक पेश किए गए और इन्हें स्वीकृत कराया गया।

इसके अलावा सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए अपना बजट भी पेश किया और राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव भी पास हुआ। सदन में सीएजी की रिपोर्ट भी पेश हुई। इस रिपोर्ट में सरकार के बजट निर्माण प्रणाली से लेकर अन्य वित्तीय गड़बड़ियों को उजागर किया गया। सत्र के आखिरी दिन बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष पद पर महेश्वर हजारी का निर्वाचन भी हुआ।

सत्र के दौरान कुल 4,397 प्रश्न प्राप्त हुए, जिनमें 3616 प्रश्न स्वीकृत हुए। स्वीकृत प्रश्नों में 78 अल्पसूचित, 3075 तारांकित एवं 463 प्रश्न अंताराकित थे। सदन में उत्तरित प्रश्नों की संख्या-377, सदन पटल पर रखे गए प्रश्नोत्तर 132, उत्तर संलग्न प्रश्नों की संख्या-1922, अपृष्ठ प्रश्नों की संख्या-130, शेष 1055 प्रश्न अनागत हुए तथा 2847 प्रश्नों के उत्तर ऑन-लाईन माध्यम से प्राप्त हुए।

इस सत्र में कुल-375 ध्यानाकर्षण सूचनाएं प्राप्त हुई, जिनमें 41 वक्तव्य के लिए स्वीकृत हुए, 326 सूचनाएं लिखित उत्तर के लिए संबंधित विभागों को भेजे गये और 08 अमान्य हुए। इस सत्र में कुल-743 निवेदन प्राप्त हुए, जिसमें 720 स्वीकृत हुए एवं 23 अस्वीकृत हुए। कुल-334 याचिकाएं प्राप्त हुई, जिनमें 290 स्वीकृत और 44 अस्वीकृत हुई। इस सत्र में कुल-102 गैर सरकारी संकल्प की सूचना पर सदन में चर्चा हुई।

सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध हर सत्र में देखने को मिला लेकिन इस बार जो कुछ हुआ वह शायद ही भुलाया जा सके। विपक्षी सदस्यों का अध्यक्ष के आसन पर चढ़ जाना, सदन के अंदर पुलिस का बुलाया जाना, विधायकों की तरफ से स्पीकर को बंधक बनाया जाना या फिर सदन पोर्टिको की सीढ़ियों पर विधायकों को घसीट कर बाहर फेंका जाना, यह सब कुछ विधानसभा भवन में पहली बार देखने को मिला।

सदन में पहली बार ऐसा हुआ कि सत्ता पक्ष के ही मंत्री ने अंगुली दिखाई और चुनौती दे डाली। बजट सत्र में कई ऐसे मौके आए जब तय समय पर सदन की कार्यवाही शुरू नहीं हुई। स्पीकर अपने चेंबर में नाराज होकर बैठे रहे या फिर उन्हें बंधक बना लिया गया। पहली बार ऐसा हुआ कि सदन में नेता प्रतिपक्ष अध्यक्ष के आसन तक जाकर खड़े हो गए और शायद पहली बार ही ऐसा हुआ कि मुख्यमंत्री सदन के अंदर विपक्ष के विधायकों को खुलेआम धमकी देते नजर आए।

 


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